गेम चेंजर बने किसान, लोकसभा चुनाव तक सियासत के केंद्र में रहेंगे अन्नदाता
Farmer loan waiver, किसानों की बदौलत ही कमलनाथ कांग्रेस की सरकार बना पाए। जाहिर है सरकार बनते ही किसान सियासत के केंद्र में आ गया और जब तक लोकसभा चुनाव नहीं निपट जाते, तब तक सारे सियासी दाव पेंच उसके इर्द-गिर्द ही मंडराएंगे।
भोपाल, ऋषि पाण्डे। Farmer loan waiver, मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री सचिन यादव की मानें तो यहां तीन 'क' की सरकार है। ये तीन 'क' हैं- किसान, कांग्रेस (Congress) और कमलनाथ (kamal Nath)। यह मानने में कोई गुरेज भी नहीं कि गेम चेंजर बने किसानों (Farmers) की बदौलत ही कमलनाथ कांग्रेस की सरकार बना पाए। जाहिर है सरकार बनते ही किसान सियासत के केंद्र में आ गया और जब तक लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) नहीं निपट जाते, तब तक सारे सियासी दाव पेंच उसके इर्द-गिर्द ही मंडराएंगे।
विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद से कांग्रेस, किसानों के हित में फैसले लेकर उनका विश्वास जीतने की कोशिश में जुटी हुई है। जबकि भाजपा, उस एक गलती की ताक में है, जिसके कारण वह किसानों की निगाहों में कांग्रेस का पानी उतरता देख सके। पिछले विधानसभा चुनाव तक किसान भाजपा की जेब में था, लेकिन पिछले पांच सालों में ऐसी एक नहीं, कईं घटनाएं हुई, जिनकी वजह से भाजपा से उसका सबसे मजबूत आधार छिटक गया।
भाजपा से सबसे बड़ी चूक हुई कर्ज माफी से कदम पीछे खींचने की। जून में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर आकर जब कांग्रेस सरकार बनने के दस दिन के भीतर कर्ज माफी की घोषणा की, उसके बाद भाजपा का एक बड़ा वर्ग चाहता था कि उसकी सरकार तत्काल प्रभाव से कर्ज माफी की घोषणा कर दे।
सूत्र बताते हैं कि चुनाव घोषणा पत्र जारी होने से पहले छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह (Raman Singh) ने शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) से फोन कर कर्ज माफी का मुद्दा घोषणा पत्र में जोड़ने का आग्रह किया था, लेकिन चौहान ने यह कहकर इससे इन्कार कर दिया कि किसानों के हित में पहले ही कई फैसले लिए जा चुके हैं, जिनके बाद किसानों पर कर्ज ही नहीं रहेगा। फिर शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण की भी भाजपा को काफी गर्मी थी, जिसके दम पर भाजपा किसानों के आक्रोश को सही ढंग से पढ़ नहीं पाई।
सबसे पहले ऋण माफी की फाइल पर दस्तखत
मध्य प्रदेश में किसानों की तादाद 90 लाख के आसपास है। इन्हें साधकर रखने में कांग्रेस कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही कमलनाथ ने सबसे पहले किसानों की ऋण माफी की फाइल पर दस्तखत किए। पहले यह तय हुआ था कि 31मार्च 2018 तक के कर्ज माफ किए जाएंगे, लेकिन जब भाजपा ने इस पर सियासत करना शुरू की तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसमें भी रियायत दे दी। व्यवस्था यह की गई कि 12 दिसंबर 2018 तक जिन किसानों ने कर्ज चुका दिए हैं, उनके अल्पकालीन कृषि ऋण की रकम वापस लौटाई जाएगी। चूंकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, इसलिए 15 जनवरी से पूरी सरकार किसानों के बीच पहुंच रही है।
इसका उद्देश्य है-किसानों से मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी योजना के फॉर्म भरवाना। इसके लिए जो प्रोफार्मा तैयार किया गया है, उसमें मुख्यमंत्री कमलनाथ का फोटो भी है। इस फॉर्म के जरिए सरकार के पास किसानों का विस्तृत डाटा आ जाएगा। फॉर्म में किसान का नाम, गांव व ग्राम पंचायत का नाम, तहसील, जिला, आधार कार्ड नंबर, मोबाइल नंबर आदि का विवरण मांगा गया है।
हर मौके का उठाया फायदा
कर्ज माफी के अलावा भी किसानों को खुश करने का कोई मौका कांग्रेस सरकार हाथ से नहीं जाने दे रही। सरकार बनते ही जब एक किसान द्वारा ट्रांसफार्मर के लिए कलेक्टर के सामने गिड़गिड़ाने का वीडियो वायरल हुआ तो सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न सिर्फ कलेक्टर को ताना, बल्कि शाम तक उसके खेत के निकट ट्रांसफार्मर भी लगवा दिया। गन्ना उत्पादक किसान अपनी मांगों को लेकर जब भोपाल आए तो खुद कृषि मंत्री उनके बीच पहुंचे और जमीन पर बैठकर उनकी समस्याओं को सुना।
गुना जिले के एक किसान की आत्महत्या पर क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कलेक्टर को मुआवजा लेकर किसान के घर पहुंचाया था। इससे उलट भाजपा अभी तक पराजय के सदमे से उबर नहीं पाई। चुनाव परिणामों के बाद वंदे मातरम् जैसे एकाध विषय को छोड़ भाजपा की सक्रियता दीनदयाल परिसर के बाहर कहीं नहीं दिखी। पार्टी इस कोशिश में है कि किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस एक लूज गेंद पटक दे, जिसे वह लपक ले लेकिन कांग्रेस मौका देने के मूड में नहीं है। वह चुस्ती के साथ मैदान में डटी हुई है।