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Exclusive Interview: किसान लड़ रहे अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई, पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही सरकार- सुरजेवाला

किसानों के आंदोलन के साथ खड़ी कांग्रेस का मानना है कि मौजूदा गतिरोध का हल तभी निकलेगा जब सरकार तीनों कानूनों को निरस्त कर किसानों से नए सिरे से वार्ता शुरू करेगी। कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला आंदोलन को किसानों के अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई मान रहे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 16 Dec 2020 09:15 PM (IST)Updated: Wed, 16 Dec 2020 10:10 PM (IST)
Exclusive Interview: किसान लड़ रहे अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई, पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही सरकार- सुरजेवाला
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला का साक्षात्कार (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के साथ खड़ी कांग्रेस का मानना है कि मौजूदा गतिरोध का हल तभी निकलेगा जब सरकार तीनों कानूनों को निरस्त कर किसानों से नए सिरे से वार्ता शुरू करेगी। कांग्रेस महासचिव और मीडिया विभाग के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला आंदोलन को किसानों के अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई मान रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी जैसी मांग की व्यवहारिकता पर उनके मन में संशय है, मगर सरकार के कठोर रुख को देखते हुए इसे वह जायज ठहराते हैं। किसानों के मौजूदा आंदोलन से जुड़े मसलों पर सुरजेवाला ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत की। पेश है इसके अंश :-

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 किसान आंदोलन में विपक्ष दूर से हाथ सेकता दिख रहा है। क्या आंदोलन पर उठ रहे सवालों से आप लोग भी डर गए हैं?

- संसद में कांग्रेस ने दूसरे विपक्षी दलों के साथ मिलकर कानूनों का जमकर विरोध किया था। राहुल गांधी ने पंजाब-हरियाणा में ट्रैक्टर यात्रा के जरिये मुखर आवाज उठाई। भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले 31 किसान यूनियनों ने साफ कहा है कि अगर विपक्षी दल वहां जाकर बैठेंगे तो भाजपा व मोदी सरकार को यह दुष्प्रचार करने का मौका मिल जाएगा कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। इसीलिए हम आंदोलन के बीच बैठकर भाजपा को किसानों पर इल्जाम लगाने का मौका नहीं देना चाहते। हमारा नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक समर्थन किसानों के साथ है।

कृषि सुधारों का आप विरोध कर रहे हैं, मगर कांग्रेस के 2019 के घोषणा पत्र में कृषि व मंडी सुधार का वादा था जिसका प्रधानमंत्री जिक्र कर चुके हैं, अब पार्टी क्यों पलट गई?

- अनाज मंडियों में सुधार होना चाहिए यह बात तो हम आज भी मानते हैं। आज अनाज मंडी का परिधि क्षेत्र 30 से 50 किमी है। 95 फीसद किसान दो एकड़ से कम जमीन के मालिक हैं और 30 किमी अपनी फसल ले जाने में दिक्कत महसूस करते हैं। इसीलिए कांग्रेस ने कहा कि कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) का नाम बदलकर किसान मार्केट रखेंगे और हर 10-15 गांव के कलस्टर पर एक किसान मार्केट बनाएंगे। हम 42 हजार एपीएमसी को डेढ़ से दो लाख किसान मार्केट करना चाहते थे। जबकि भाजपा अनाज मंडी खत्म करके सार्वजनिक राशन प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दोनों को समाप्त करना चाहती है। जब भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) 42 हजार मंडियों में एमएसपी नहीं दे पा रहा तो 18 करोड़ किसानों के खेतों में जाकर एमएसपी कहां से देगा।

बाजार की प्रतिस्पर्धा और निजी क्षेत्र को जोड़कर किसानों को फसल का वाजिब मूल्य दिलाने के मॉडल में दिक्कत क्या है?

- आज भी अनाज मंडी में निजी क्षेत्र अनाज खरीद सकता है और खरीदता है। किसान भी जहां चाहे अपनी फसल बेच सकता है, कोई पाबंदी नहीं है। पर वह क्यों नहीं जाता यह सरकार नहीं समझ रही। 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार, 85 फीसद किसान पांच एकड़ से कम का मालिक है और इसमें भी 80 फीसद दो एकड़ से कम के मालिक हैं। वे मंडी तक फसल नहीं ले जा सकते, ऐसे में हरियाणा-पंजाब का किसान अपनी फसल केरल या तमिलनाडु या बिहार का मक्का किसान अपनी फसल दिल्ली, मुंबई या कोलकाता कैसे ले जा सकता है। साफ है कि सरकार भ्रमजाल फैलाकर पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही है।

संप्रग सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने मंडियों में सुधार के लिए राज्यों को पत्र लिखे और आज आप विरोध में खड़े हैं, क्या यह विरोधाभास नहीं है?

- इस पर भी भाजपा झूठ फैला रही है। 2003 में वाजपेयी सरकार ने एपीएमसी के लिए एक मॉडल कानून बनाया था और यह राज्यों की मर्जी पर था। शरद पवार और कांग्रेस ने राज्यों पर यह कानून कभी नहीं थोपा क्योंकि कृषि राज्य का विषय है। मोदी सरकार ने संघीय व्यवस्था के इस पहलू पर प्रहार करते हुए इन तीनों कानूनों के जरिये किसानों के हितों की हत्या कर दी। कांग्रेस-संप्रग ने न तो मंडी खत्म की और न एमएसपी। इसके उलट एमएसपी में 120 से 150 फीसद का इजाफा किया।

एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग क्या गतिरोध के हल का व्यावहारिक रास्ता है?

- एमएसपी की गारंटी मांगने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि सरकार ने कानून बनाकर अनाज मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी। जब अनाज मंडी नहीं होंगी तो सामूहिक संगठन के आधार पर किसान को एमएसपी कैसे मिलेगा। उसके खेत से कोई फसल खरीदकर ले नहीं जाएगा। तब पांच बड़े पूंजीपति आएंगे और 25 लाख करोड़ रुपये के खेती के कारोबार पर कब्जा कर लेंगे। किसान अपने ही खेत में गुलाम बनेगा और खेत मजदूर लावारिस। ऐसे में एमएसपी की गारंटी मांगने के अलावा रास्ता क्या है।

प्रधानमंत्री ने तो विपक्ष को घेरा है कि वह राजनीतिक मंशा के चलते किसानों के कंधे से बंदूक चलाकर इन कानूनों की राह रोक रहा है?

- प्रधानमंत्री पांच उद्योगपतियों के लिए खेती और खलिहान दोनों का गला घोंट रहे हैं। यह लड़ाई केवल 62 करोड़ किसानों की नहीं, 130 करोड़ देशवासियों की भी है। जिस दिन एफसीआइ और सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर फसलें नहीं खरीदेंगी, उस दिन देश के 84 करोड़ लोगों को भोजन के अधिकार के तहत दो रुपये प्रति किग्रा अनाज राशन दुकान पर कैसे मिलेगा। यह देश के गरीबों पर पहला प्रहार होगा और पीडीएस का खात्मा दूसरा।

सरकार के इस नजरिये को कैसे गलत ठहराएंगे कि उसे कृषि सुधारों जैसे कदम उठाने का जनादेश मिला है?

- दुर्भाग्य है कि सत्ता के नशे में चूर कृषि मंत्री ऐसी बेतुकी बातें कर रहे हैं। भाजपा ने चुनाव में तो यह नहीं कहा था कि आप वोट देंगे तो तीन काले कानून लाकर खेती पांच उद्योगपतियों को सौंप देंगे। जनादेश का उदाहरण यह भी है कि 1988 में जब राजीव गांधी के पास 402 सांसद थे तब किसानों ने उनकी सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया था। तब दिल्ली आने के सारे रास्ते खोल दिए गए थे। एक महीने तक राजपथ पर बैठे किसानों से कैबिनेट ने चर्चा कर उनकी मर्जी के मुताबिक हल निकाला था। मोदी सरकार के पास 302 सांसद हैं पर जनादेश के अहंकार में वह किसानों को धूल में मिलाने पर अड़ी है।

कृषि कानूनों के हर प्रावधान पर सरकार ने किसानों से चर्चा की पेशकश की है। तो गतिरोध क्या सही है?

- सरकार ने मान लिया है कि वह कानूनों में 20 संशोधन करने को तैयार है। इसका मतलब साफ है कि ये कानून गलत हैं, तभी बनते ही उनमें संशोधन की आवश्यकता आ पड़ी है। इन काले कानूनों की मांग किसी किसान संगठन या राजनीतिक दल ने नहीं की थी फिर रात के अंधेरे में अध्यादेश के जरिये क्यों लाए गए। कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने संसद में विरोध किया तो बहुमत नहीं होते हुए भी जबरन ध्वनिमत से इन्हें राज्यसभा में पारित करवा लिया गया। कांग्रेस और विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया। इससे साफ है कि ये कानून खेत-खलिहान नष्ट कर किसानों की ¨जदगी पर हमला बोलने वाले हैं। इसलिए सरकार पहले तीनों कानूनों को निरस्त करे और उसके बाद किसानों से वार्तालाप करे। सरकार तो अन्नदाता को देशद्रोही बता रही है। मनोहर लाल उन्हें खालिस्तानी, हरियाणा के कृषि मंत्री चीन और पाक का एजेंट, रविशंकर प्रसाद टुकड़े-टुकड़े गैंग, पीयूष गोयल नक्सलवादी तो कृषि राज्यमंत्री दानवे उन्हें आतंकवादी बताते हैं। क्या समाधान का यही रास्ता है।


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