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सुषमा जी ने हर भूमिका को न्यायपूर्ण तरीके से निभाया, पढ़ें- नितिन गडकरी का विशेष लेख

सुषमा जी ने प्रखर वक्ता आदर्श कार्यकर्ता लोकप्रिय जनप्रतिनिधि और कर्मठ मंत्री जैसे विभिन्न रूपों में भारतीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। पढ़ें- नितिन गडकरी का विशेष लेख।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 10:12 AM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 10:26 AM (IST)
सुषमा जी ने हर भूमिका को न्यायपूर्ण तरीके से निभाया, पढ़ें- नितिन गडकरी का विशेष लेख
सुषमा जी ने हर भूमिका को न्यायपूर्ण तरीके से निभाया, पढ़ें- नितिन गडकरी का विशेष लेख

नितिन गडकरी। सुषमा स्वराज जी हमारे बीच नहीं हैं। उनके साथ बीते पल और साझा की गई बातें मेरे लिए अनमोल हैं, वे जीवनभर स्मरण रहेंगी। उनसे मेरा बहुत गहरा नाता था। वह राजनीति में मेरी पथ प्रदर्शक थीं, पारिवारिक रूप से बड़ी बहन थीं। भारतीय राजनीति की सौम्यता हमसे विदा हुई है। उनका जाना निश्चित तौर पर व्यक्तिगत क्षति है। उनकी बेजोड़ भाषा शैली ने आमजन के मन में हिंदी के प्रति आकर्षण पैदा किया। वह श्रेष्ठ हिंदी वक्ता थीं और सार्वजनिक जीवन में गरिमा, साहस और निष्ठा की प्रतिमूर्ति थीं। लोगों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहती थीं। उन्होंने प्रखर वक्ता, आदर्श कार्यकर्ता, लोकप्रिय जनप्रतिनिधि और कर्मठ मंत्री जैसे विभिन्न रूपों में भारतीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

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भाजपा में शुरुआती कार्यकाल से ही वह जिम्मेदार और समर्पित कार्यकर्ता की भूमिका में रहीं। उनमें विचारधारा के प्रति वचनबद्धता और गंभीरता थी। पार्टी में उन्हें जो भी भूमिका मिली उसे न्यायपूर्ण तरीके से निभाया। जब वह विपक्ष की नेता थीं, तब पूरी ईमानदारी से जनता का पक्ष रखा और जब विदेश मंत्री थीं तब भी पूरी कटिबद्धता के साथ काम को पूरा किया। बतौर विदेश मंत्री उन्होंने दुनियाभर में बसे भारतीयों की जिस तरह मदद की, उससे लोगों के मन में सरकार के प्रति नया विश्वास पैदा हुआ। वह हर काम बहुत कुशलता से करती थीं। मुसीबत में फंसे लोगों को जब तक सहायता नहीं मिल जाती थी, वह चैन से नहीं बैठती थीं।

विपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने सांसदों के साथ संगठनात्मक और पारिवारिक जुड़ाव स्थापित किया। टैलेंट कार्यक्रम के जरिये भाजपा के हर सांसद की अभिरुचि को जानकर उनकी पसंद केमुताबिक काम करने का अवसर उपलब्ध कराया। जब उन्हें लगा कि जनता के लिए पूरी गंभीरता से काम नहीं कर पाएंगी, तब उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिन्हें मैं सार्वजनिक नहीं कर सकता। लेकिन जब मैं भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था, उस समय मुझे उनका बहुत सहयोग मिला। उस दौर में कुछ राज्यों में असहमति की स्थिति थी, संसदीय बोर्ड में भी कई बार मत नहीं बन पाते थे, ऐसे में वह मेरी मदद करती थीं। वह मुझे बताती थीं कि किस मसले का कैसे मार्ग निकलेगा। मेरे लिए सुषमा जी का सहयोग बहुत बड़ा आधार था। पार्टी में कई बार ऐसी स्थिति आई जिसमें निर्णय लेना बहुत कठिन होता था। सुषमा जी ने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया और काम को सहजता से करने का रास्ता बताया। उनके नैतिक समर्थन के कारण मैं बहुत सारे काम कर पाया।

उनका मेरे प्रति अथाह स्नेह था। उनमें मुझे बड़ी बहन का रूप दिखाई देता था। वह उसी तरह मेरी चिंता भी करती थीं। एक बार मैं बीमार हुआ तो वह तत्काल एम्स से चिकित्सक लेकर आ गईं। अधिकार के साथ पूरा चेकअप कराने को कहा। उनके कहने पर मैं एम्स गया, वहां पूरी जांच कराई। उन्होंने मेरी स्वास्थ्य रिपोर्ट के बारे में जाना और मुझे पूरे अधिकार के साथ स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की हिदायत दी। मैं उनकी बात को पूरी गंभीरता से लेता था, लेकिन विभिन्न व्यंजन खाना मेरा स्वभाव है, उसमें मैं फिर लापरवाही करने लगा। जब उन्हें यह पता चला तो नागपुर में मेरी पत्नी कांचन को फोन लगाकर बोलीं कि वह मेरा ध्यान रखें क्योंकि मैं स्वास्थ्य के प्रति बहुत लापरवाही करता हूं। ऐसी चिंता करने वाले विरले ही होते हैं। उन्होंने हर किसी के साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर उसे पूरी तरह से निभाया।

मुझे जब भी समय मिलता उनसे मिलने चला जाता था। मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि वह हमारे लिए दुख-सुख साझा करने वाली जगह बन गई थीं। उनकी बेटी बांसुरी उन्हीं की तरह बुद्धिमान, सहज और सरल बिटिया है। वह अक्सर मेरे यहां आती है। उसे हमारे यहां का बना पराठा और दही बहुत पसंद है। मैंने कह रखा था कि जब भी हमारे यहां पराठा बने, वह बांसुरी के लिए देकर आना है। मैं जब सुषमा जी से मिलने जाता था तो वह मेरे लिए विशेष रूप से पोहा बनवाया करती थीं। सुषमा जी मेरे राजनीतिक और पारिवारिक जीवन की बहुत चिंता करती थीं। जब उन्हें मेरी नागपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे समझाने का प्रयास किया कि वहां से चुनाव लड़ना बहुत जोखिम भरा है क्योंकि वह सीट भाजपा के अनुकूल नहीं है। लेकिन जब मैंने उनसे कहा कि मैंने नागपुर से चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिया है और वहां से जीतकर ही आऊंगा तो वह मेरे इस फैसले से बहुत खुश हुईं। राजनीति में विपरीत परिस्थितियों को चुनने के मेरे निर्णय से वह बहुत प्रभावित थीं।

मैं जब 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर आया तो वह बहुत खुश थीं। इस बार जब मैं लोकसभा चुनाव जीतकर आया तो संयोग से पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित भाजपा कार्यालय मैं और सुषमा जी साथ-साथ पहुंचे। उन्हें देखते ही मैं पास गया तो आदर से मेरा सिर झुक गया। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अभिभावक का अहसास कराया। मैंने कहा कि आज आपके स्नेह में मुझे फिर अपनी बड़ी बहन का अहसास कराया है तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। इसके बाद मैं जब मंत्री बना तो उनसे मिलने घर गया। करीब एक-डेढ़ घंटा हम साथ रहे। पूरे समय घर-परिवार की बातें होती रहीं। उनके निधन से देश ने एक ओजस्वी स्वर खो दिया है।
(लेखक केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग; सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री है)

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