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मोदी कैबिनेट में शामिल हुए इस शख्सियत ने सभी को चौंकाया, कई बड़े चेहरों पर भी पड़े भारी

मोदी कैबिनेट में पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया गया है। उन्‍होंने कई मुद्दों पर अहम भूमिका निभाई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 01:08 PM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 09:09 AM (IST)
मोदी कैबिनेट में शामिल हुए इस शख्सियत ने सभी को चौंकाया, कई बड़े चेहरों पर भी पड़े भारी
मोदी कैबिनेट में शामिल हुए इस शख्सियत ने सभी को चौंकाया, कई बड़े चेहरों पर भी पड़े भारी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। मोदी कैबिनेट में शामिल हुए पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर ने सभी को चौंका दिया। यह वो नाम था जिसका मीडिया में भी जिक्र शपथ ग्रहण समारोह से पहले नहीं हुआ था। जयशंकर को मंत्री बनाना ही महज चौंकाने वाला नहीं था बल्कि पहली ही बार में वह दूसरे मंत्रियों पर भारी पड़े। उन्‍‍‍‍हें विदेश मंत्री बनाया गया है। एस जयशंकर को पीएम नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। इसके अलावा वह चीन के एक्‍सपर्ट भी मानें जाते हैं। वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने देश की कमान पहली बार संभाली थी तब खासतौर पर उन्‍हें विदेश सचिव बनाया गया था। आपको बता दें कि जयशंकर अमेरिका, चीन समेत आसियान के विभिन्न देशों के साथ हुई कई कूटनीतिक बातचीत का हिस्सा रह चुके हैं। इन्हें मोदी के करीबी और चीन एक्सपर्ट के रूप में जाना जाता है।

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जयशंकर हमेशा से ही पीएम मोदी की पसंद रहे हैं। जहां तक इन दोनों की पहचान की बात है तो यह मोदी के प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले से है। इसकी शुरुआत चीन से हुई थी। वर्ष 2012 में नरेंद्र मोदी बतौर गुजरात के मुख्‍यमंत्री चीन के दौरे पर गए थे। इस दौरान जयशंकर वहां पर भारतीय राजदूत के तौर पर तैनात थे। वह यहां 2009 से 2013 तक भारतीय राजदूत के पद पर रहे।

जयशंकर ने विदेश सचिव के रूप में अमेरिका, चीन समेत बाकी देशों के साथ भी महत्वपूर्ण वार्ताओं में हिस्सा लिया। चीन के साथ 73 दिन तक चले डोकलाम विवाद को सुलझाने में भी जयशंकर का अहम रोल निभाया था।इससे पहले 2010 में चीन द्वारा जम्मू कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीजा दिया जाता था। इस पॉलिसी को बदलवाने में भी जयशंकर का अहम रोल रहा।

2013 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री की निगाह में विदेश सचिव पद के लिए दो नाम सामने थे। इनमें सुजाता सिंह और जयशंकर में मुकाबला था, जिसमें सुजाता ने बाजी मारी थी। लेकिन 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने केंद्र में सत्ता संभाली तब उन्‍होंने एस जयशंकर को विदेश सचिव की जिम्‍मेदारी सौंपी। विदेश सचिव के तौर पर उनका कार्यकाल 2017 को समाप्त हो रहा था लेकिन पीएम मोदी ने उनकी काबलियत को देखते हुए ही उनको एक्‍सटेंशन दिया था। इस तरह से जयशंकर साल 2015 से लेकर साल 2018 तक विदेश सचिव रहे। मोदी की साल 2018 तक की लगभग हर विदेश यात्रा के दौरान जयशंकर उनके साथ रहे. साल 2018 में रिटायर होने के बाद उन्होंने टाटा ग्रुप में बतौर वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। भारत और अमेरिका के बीच हुए सिविल न्‍यूक्लियर एग्रीमेंट में जयशंकर की भूमिका काफी अहम थी।

एस जयशंकर ने सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की पहली अमेरिका यात्रा की योजना तैयार की और इसे सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई, जब मोदी ने अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर पर प्रवासी भारतीय सम्मेलन को संबोधित किया। जनवरी 2015 से लेकर जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहते हुए उन्होंने मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति को आकार प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई, जिसके चलते खासतौर से अमेरिका और अरब देशों समेत प्रमुख देशों के साथ भारत के संबंध को महत्वपूर्ण विकास व विस्तार मिला।विदेश सचिव बनने से पहले वह 2013 से अमेरिका में भारत के राजदूत रहे। इस दौरान उन्होंने अमेरिकी प्रशासन और मोदी सरकार को करीब लाने में बड़ी भूमिका निभाई।

एस जयशंकर का जन्म 15 जनवरी 1957 को दिल्ली में हुआ। वह जाने-पहचाने इतिहासकार संजय सुब्रमण्यम और भारत के पूर्व ग्रामीण विकास सचिव एस विजय कुमार के भाई हैं। उन्‍होंने दिल्‍ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल की है। जयशंकर की शादी क्योको जयशंकर से हुई है और उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं। जयशंकर को 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

वह टाटा समूह से भी जुड़े रहे हैं। 1977 बैच के विदेश अधिकारी रहे जयशंकर चीन के अलावा 2014-2015 तक अमेरिका में, 2001-2004 तक चेक रिपब्लिक में, भारतीय राजदूत रहे। वह रूस में भी सेवाएं दे चुके हैं। इसके अलावा 2007-2009 तक वह सिंगापुर में हाई कमिश्‍नर भी रहे थे। क्‍योंकि जयशंकर ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था, इसलिए मुमकिन है कि उन्‍हें राज्‍यसभा में भेजा जाए। आपको बता दें कि छह माह के अंदर जयशंकर को लोकसभा या राज्‍यसभा का सदस्‍य बनना जरूरी होगा। अब पार्टी आलाकमान तय करेगा कि उन्‍हें कहां भेजना है। 

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