EVM पर उठे सवालों के बीच चुनाव आयोग ने शुरू की कवायद, 9 विषयों पर एक कार्य समिति का गठन
आयोग ने गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में अपनी यह बात कही थी लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति न होने के चलते इस मामले पर विशेष कुछ हो नहीं पाया।
शिवांग माथुर, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में आरोपों के दौर से सुरक्षित निकलने के बाद चुनाव आयोग अब आत्मनिरीक्षण के दौर से गुज़र रहा है। चुनाव खत्म होने के बाद आयोग ने हाल ही में बीते चुनाव से मिले अच्छे बुरे अनुभवों से सबक सीखने का मन बनाया है। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार, चुनाव खर्च, आदर्श चुनाव आचार संहिता, मीडिया संपर्क, चुनाव सामग्री, चुनाव प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी आदि नौ विषयों पर एक कार्य समिति का गठन किया है। यह समिति अगस्त माह तक अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद आयोग फिर से अधर में लटके चुनाव सुधार के कामों और चुनाव से जुड़े कानूनों को धार देने का काम करेगा। इसके साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के सीईओ से गत चुनाव के अनुभवों से आयोग को अवगत कराने को कहा है।
राजनीतिक दलों और समाज के अलग-अलग तबको से आलोचना झेल रहा आयोग का मानना है कि सीमित शक्तियों के साथ आयोग काम करता है, ऐसे में आयोग के कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाना आयोग के साथ अन्याय करना है। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार निर्वाचन आयोग की मंशा है कि जल्द से जल्द चुनाव सुधार को लेकर सुझाये गए सुझावों को अमल में लाये जाए ताकि आयोग के हाथ और मजबूत हो सके, लेकिन इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि आमतौर पर चुनाव सुधार का रास्ता शीर्ष अदालत से होकर निकला है।
चुनाव आयोग का मानना है कि राजनीतिक दलों की मान्यता समाप्त करने का अधिकार आयोग को मिलना चाहिए। आयोग ने गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में अपनी यह बात कही थी, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति न होने के चलते इस मामले पर विशेष कुछ हो नहीं पाया। वहीं चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल को रोकने के प्रयास कोरी बातें ही होकर रह गईं, इसका अंदाजा लोकसभा चुनावों के दौरान जब्त की गई नकदी, सोना व शराब की कीमत के आकलन से लग जाता है। देश भर में 3456.22 करोड़ रुपये की नकदी और अन्य सामान जब्त किया गया। अब इसी साल महाराष्ट्र व हरियाणा समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसीलिए आयोग ऐसे मामलों में भी कठोर कारवाही का पक्षधर है।
इसके साथ ही चुनावी खर्च से जुड़े सुधार, राजनीति को अपराध मुक्त करना और मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे पदों पर पारदर्शी नियुक्तियां के लिए समूचित कानून जैसे कई मुद्दे है जिन पर भारत के निर्वाचन आयोग ने सरकार को पत्र लिखा है।
देश में चुनाव सुधार हो सके इसीलिए समय-समय पर चुनाव सुधार समितियों का गठन भी होता रहा है। दिनेश गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति आदि उदाहरण सामने है। हालांकि, सरकार ने इन सिफारिशों को केवल आंशिक रूप से स्वीकार किया है। साफ-सुथरे चुनाव और राजनीतिक पारदर्शिता से ही लोकतंत्र को वैधता मिलती है। ऐसे में महत्त्वपूर्ण चुनावी सुधारों को लागू कराना बहुत ज़रूरी है, ताकि देश भ्रष्टाचार और आपराधिक माहौल से मुक्त होकर विकास और समृद्धि की ओर अग्रसर हो सके।
इसमें कोई दो राय नही की सन् 2000 के बाद चुनाव सुधार का काम तेजी से हुआ है। ईवीएम और वीवीपीएटी का चलन मे आना हो, एक्ज़िट पोल पर प्रतिबंध हो या चुनावी खर्च पर सीलिंग, पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान हो या युवाओ की भागीदारी के लिए किए जाने वाला जागरूकता और प्रसार और या फिर नोटा ऐसे अनेको सुधारो को चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए शामिल किया गया है। बावजूद इसके अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
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