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Maharashtra Political crisis: जानिए, एकनाथ शिंदे ने कैसे कानून के रास्ते से दी उद्धव ठाकरे को चुनौती

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार पर मंडरा रहा राजनीतिक संकट निर्णायक दौर में पहुंचने जा रहा है। राज्यपाल ने बृहस्पतिवार को सदन में शक्ति परीक्षण का आदेश दिया है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत के मद्देनजर सबकी निगाहें विधानसभा पर रहेंगी।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2022 01:14 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2022 01:40 PM (IST)
Maharashtra Political crisis: जानिए, एकनाथ शिंदे ने कैसे कानून के रास्ते से दी उद्धव ठाकरे को चुनौती
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ब्रजबिहारी, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अगर रोक नहीं लगाई तो बृहस्पतिवार यानी 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में शक्ति परीक्षण होगा। सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति परीक्षण के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के आदेश के खिलाफ दायर शिव सेना की याचिका....। महाविकास अघाड़ी सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिव सेना के अधिकांश विधायक एकनाथ शिंदे की अगुआई में विद्रोह का बिगुल बजा चुके हैं। पहले गुजरात के सूरत और फिर असम के गुवाहाटी के बाद विधायकों को गोवा पहुंचा दिया गया है। वहां से वे शक्ति परीक्षण के लिए सीधे विधानसभा पहुंचेंगे। बता दें कि शक्ति परीक्षण कराने के राज्यपाल के आदेश को शिव सेना ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस पर आज सुनवाई होनी है।

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विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका

शक्ति परीक्षण के मामले में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। चूंकि महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष का पद खाली है, इसलिए उनके अधिकारों का प्रयोग सदन के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल कर रहे हैं। संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार दल बदल करने वाले विधायकों को सदन के अध्यक्ष अयोग्य ठहरा सकते हैं। इस प्रक्रिया को किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है लेकिन उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। बहरहाल, यहां एक पेंच है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 2016 में एक फैसला दिया था जिसके तहत अगर अध्यक्ष को पद से हटाने का नोटिस दिया जा चुका है तो फिर वह दल बदल करने वाले विधायकों को अयोग्य नहीं ठहरा सकता है।

उत्तराखंड में हो चुका है ऐसा

शिंदे और उनके समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले का फायदा उठाने के लिए रणनीति बनाई और पहले विधानसभा उपाध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव भेजा, फिर बाद में बगावत का एलान किया। शिंदे से पहले भी कई राज्यों के विधायक ऐसा कर चुके हैं। वर्ष 2016 में उत्तराखंड में विजय बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को हटाने का प्रस्ताव पेश किया और भाजपा के साथ मिल गए। वर्ष 2018 में एआइडीएमके विधायक एक करुनास ने एक ऐसे समय में सदन के अध्यक्ष को हटाने का नोटिस दिया जब पार्टी उन्हें और तीन विधायकों को बागी गुट के नेता टीटीवी दिनाकरण को समर्थन देने की घोषणा की थी। जून, 2020 में मणिपुर में कांग्रेस ने अध्यक्ष को हटाने का नोटिस दिया और उसके बाद उसके नौ विधायक भाजपा में शामिल हो गए।

अध्यक्ष को हटाने की प्रक्रिया

संविधान के अनुच्छेद 179 में विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की पूरी प्रक्रिया दी गई है। इसके तहत सदन के उस समय की सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव के जरिए अध्यक्ष को उनके पद से हटाया जा सकता है। उस समय की सदस्य संख्या का अर्थ होता है अध्यक्ष को हटाने का नोटिस दिए जाने के समय सदस्यों की संख्या। इसका अर्थ यह हुआ कि अध्यक्ष को हटाए जाने का नोटिस दिए जाने के बाद सदन की संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता है। जब तक इस नोटिस पर फैसला नहीं हो जाता है, अध्यक्ष सदन की संरचना को नहीं बदल सकता है।


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