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हर तीन साल पर आर्थिक गणना बयां करेगी रोजगार व आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर

आम तौर पर आर्थिक गणना सात-आठ साल के अंतराल पर होती है। अंतिम आर्थिक गणना जनवरी, 2013 से अप्रैल, 2014 तक की गई थी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 08:34 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 09:38 PM (IST)
हर तीन साल पर आर्थिक गणना  बयां करेगी रोजगार व आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर
हर तीन साल पर आर्थिक गणना बयां करेगी रोजगार व आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नौकरियों के मुद्दे पर छिड़ी राजनीतिक बहस के बीच सरकार रोजगार के सटीक आंकड़े जुटाने के तंत्र को मजबूत बनाने जा रही है। इसके तहत न सिर्फ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लेबर फोर्स सर्वे किया जा रहा है बल्कि अब हर तीसरे साल आर्थिक गणना कराने की तैयारी चल रही है। केंद्र ने इस दिशा में कदम उठाते हुए केंद्रीय क्षेत्र की 'कैपेसिटी डवलपमेंट स्कीम' के लिए तीन साल के लिए भारी भरकम 2,250 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया है।

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आम तौर पर आर्थिक गणना सात-आठ साल के अंतराल पर होती है। अंतिम आर्थिक गणना जनवरी, 2013 से अप्रैल, 2014 तक की गई थी। सूत्रों के मुताबिक अब सरकार की योजना इसे हर तीन साल पर कराने की है ताकि रोजगार सहित विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के ताजा और सटीक आंकड़े प्राप्त हो सकें।

आर्थिक गणना के तहत समय-समय पर सभी गैर-कृषि उद्यमों की गणना की जाती है। इससे सामाजिक आर्थिक स्थिति का पता चलता है। इससे पूर्व 2005 में पांचवी आर्थिक गणना, 1998 में चौथी और 1990 में तीसरी आर्थिक गणना हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की आर्थिक मामलों संबंधी समिति ने हाल में केंद्रीय क्षेत्र की 'कैपेसिटी डवलपमेंट स्कीम' के लिए 2017-18 से 2019-20 की अवधि के लिए भारी भरकम 2250 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी है। आर्थिक गणना इसी स्कीम के तहत आती है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार रोजगार के बारे में बेहतर आंकड़े जुटाने के लिए तीन नए सर्वेक्षण कराने की तैयारी भी कर रही है। ये सर्वेक्षण हैं- समय उपयोग सर्वेक्षण (टाइम यूज सर्वे), सेवा क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसएसएसई) और एन्युल सर्वे ऑफ अन-इन्कारपोरेटेड सेक्टर एंटरप्राइजेज (एएसयूएसई)।

नीति आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष अरविंद पानागढि़या की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ समूह ने टाइम यूज सर्वे कराने की सिफारिश थी। विश्व के कई विकसित देशों में बेरोजगारी का पता लगाने के लिए टाइम यूज सर्वे कराया जाता है।

सूत्रों ने कहा कि रोजगार की स्थिति का जायजा लेने के लिए शहरों में हर तिमाही लेबर फोर्स सर्वे किया जा रहा है जबकि गांवों मंे यह सर्वे सालाना किया जाएगा।


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