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इन चुनावों में बैलेट पेपर पर नहीं मिलेगा NOTA का विकल्प, चुनाव आयोग ने जारी किए निर्देश

केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के चुनाव आयोग को बैलेट पेपर से नोटा (NOTA) का विकल्प हटाने को कहा है। चुनाव आयोग ने ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद जारी किए हैं।

By Vikas JangraEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 08:50 PM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 12:38 AM (IST)
इन चुनावों में बैलेट पेपर पर नहीं मिलेगा NOTA का विकल्प, चुनाव आयोग ने जारी किए निर्देश
इन चुनावों में बैलेट पेपर पर नहीं मिलेगा NOTA का विकल्प, चुनाव आयोग ने जारी किए निर्देश

नई दिल्ली [एजेंसी]। केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के चुनाव आयोग को बैलेट पेपर से नोटा (NOTA) का विकल्प हटाने को कहा है। चुनाव आयोग ने ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद जारी किए हैं। गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने राज्यसभा और विधान परिषद (MLC) के चुनावों में बैलेट पेपर से उपरोक्त में से कोई नहीं यानि नोटा का विकल्प प्रकाशित नहीं करने के आदेश जारी किए हैं।

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 21 अगस्त को राज्यसभा चुनावों में नोटा को अनुपयुक्त बताते हुए चुनाव आयोग की नोटा लागू करने की अधिसूचना रद कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। ये अहम फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने गुजरात कांग्रेस के नेता और मुख्य सचेतक शैलेश मनुभाई पारमार की याचिका पर सुनाया है। याचिका में चुनाव आयोग के राज्यसभा चुनाव में नोटा विकल्प लागू करने की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नोटा विकल्प सिर्फ प्रत्यक्ष चुनाव (जैसे लोकसभा विधानसभा चुनाव) के लिए है। ये विकल्प अप्रत्यक्ष चुनाव जहां औसत प्रतिनिधित्व की बात होती है (जैसे राज्यसभा चुनाव) वहां लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करने से एक मत के औसत मूल्यांकन की धारणा नष्ट होगी। इससे भ्रष्टाचार और दल बदल को बढ़ावा मिलेगा। यह हमेशा याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र नागरिकों के भरोसे से मजबूत होता है जो कि पवित्रता, निष्ठा, ईमानदारी और सत्यपरायणता के स्तंभ पर टिका है। इस पकड़ को मजबूत बनाना चाहिए ताकि चुनाव प्रक्रिया स्वच्छ रहे और लोकतंत्र गलत ताकतों के खिलाफ अभेद्य दुर्ग की तरह ऊंचाई से खड़ा रहे।

कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करना पहली निगाह में बुद्धिमत्तापूर्ण लगता है, लेकिन अगर उसकी पड़ताल की जाए तो ये आधारहीन दिखता है क्योंकि इसमें ऐसे चुनाव में मतदाता की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है, इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास होता है। शुरुआत में ये सोच आकर्षक लग सकती है लेकिन इसके व्यवहारिक प्रयोग से अप्रत्यक्ष चुनावों में समाहित चुनाव निष्पक्षता समाप्त होती है। वह भी तब जबकि मतदाता के मत का मूल्य हो और वह मूल्य ट्रांसफरेबल हो। ऐसे में नोटा एक बाधा है।

कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करने से न सिर्फ संविधान के दसवीं अनुसूची मे दिये गए अनुशासन का हनन होता है (अयोग्यता के प्रावधान) बल्कि दल बदल कानून में अयोग्यता प्रावधानों पर भी विपरीत असर डालता है। मालूम हो कि चुनाव आयोग ने 2014 और 2015 में दो अधिसूचनाएं जारी की थीं जिसमें राज्यसभा चुनाव में नोटा को लागू किया गया था।


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