ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का होगा बड़ा असर, भारत को तेल संकट से जूझना पड़ सकता है
ईरान भारत को तेल आपूर्ति करने वाला एक बड़ा देश है। सउदी अरब और ईराक के बाद भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से ईरान परमाणु डील को रद्द किया है उसके असर से भारत भी अछूता नहीं रह सकता। ईरान के साथ आर्थिक व कूटनीतिक रिश्तों को लेकर भारत ने पिछले तीन वर्षो में काफी कुछ दांव पर लगा रखा है। चाहे देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना हो या अफगानिस्तान में पाकिस्तान की साजिशों को मात देना हो या चीन की वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) के मुकाबले अपनी कनेक्टिविटी परियोजना लागू करना हो, हर जगह भारत को ईरान की मदद की दरकार है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंध से अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मचती है तो उसका दंश भी भारत को झेलना पड़ेगा।
1. ईरान है भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश
2. चाबहार में भारत की है दो लाख करोड़ रुपये की निवेश योजना
3. ईरान है भारतीय चावल का एक बड़ा आयातक देश
4. अफगान में पाकिस्तान को रोकने के लिए भारत को चाहिए ईरान का साथ
5. मध्य एशियाई बाजार में सीधे समान भेजने के लिए चाहिए ईरान का रास्ता
6. ईरान के तेल व गैस फील्ड में निवेश कर रही हैं भारतीय कंपनियां
यही वजह है कि भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में इस बात के संकेत दिया है कि वह ईरान पर जबरदस्ती के खिलाफ है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार के मुताबिक, ''भारत का हमेशा से यह मानना है कि ईरान के परमाणु मुद्दे का समाधान बातचीत कूटनीति के जरिए होनी चाहिए। इसमें हमें परमाणु के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के ईरान के अधिकार का आदर होना चाहिए और साथ ही उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शंकाओं का निदान भी होना चाहिए।'' साफ है भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले पर मुहर नहीं लगाई है।
ईरान से जुड़ी है ऊर्जा सुरक्षा:
ईरान भारत को तेल आपूर्ति करने वाला एक बड़ा देश है। सउदी अरब और ईराक के बाद भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता है। अप्रैल, 2017 से जनवरी, 2018 के बीच भारत ने ईरान से 1.84 टन कच्चा तेल खरीद चुका है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसे और बढ़ाने की तैयारी है। अमेरिकी प्रतिबंधों से इस पर असर होगा। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अगर यूरोपीय देश अमेरिकी दबाव में आ जाते हैं तो भारत के लिए ईरान से तेल खरीदने में दिक्कत होगी।
इंडियन आयल कार्पोरेशन के निदेशक (वित्त) ए के शर्मा का कहना है कि तत्काल तो ईरान से तेल आयात पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर यूरोपीय संघ की कंपनियां प्रतिबंध को दरकिनार करके ईरान के साथ कारोबार सामान्य रखती हैं तो भारत के लिए भी ऐसा करना आसान होगा। अमेरिका ने यह कहा है कि वह यूरोपीय व एशियाई देशों पर दबाव बनाएगा कि वे ईरान से क्रूड नहीं खरीदे। क्रूड की कीमतों में तेजी से भी भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
चाबहार पर पड़ेगा असर
अमेरिकी प्रतिबंध का भारत के लिए दूसरा बड़ा असर चाबहार बंदरगाह के निर्माण के तौर पर हो सकता है। भारत इसका पहला बर्थ बना चुका है और इसका संचालन भी भारतीय कंपनी को सौंप दिया गया है। भारत ने अफगानिस्तान को इस रास्ते गेहूं का निर्यात किया है। भारत इस बंदरगाह के जरिए मध्य एशियाई देशों के बाजार में अपने उत्पाद तेजी से पहुंचाने की मंशा रखता है। भारत चाबहार में दो लाख करोड़ रुपये के निवेश से एक औद्योगिक पार्क भी बनाने का प्रस्ताव ईरान के समक्ष रख चुका है।
चाबहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके जरिए भारत अफगानिस्तान में पाकिस्तान को बेअसर करना चाहता है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से भारतीय कंपनियों के लिए चाबहार परियोजना के लिए फंड जुटाने में मुश्किल हो सकती है।
बढ़ेगी कूटनीतिक चुनौती
हाल के वर्षो में राजग सरकार ने ईरान, सउदी अरब और इजरायल तीनों के साथ एक समान तौर पर रिश्तों को मजबूत करने की कवायद शुरु की थी। अब जबकि सउदी अरब और इजरायल अमेरिकी प्रतिबंध के पक्ष में है तो भारतीय कूटनीति के लिए आने वाले वक्त में इन देशों के साथ सामंजस्य बनाना काफी मुश्किल हो सकती है।
वैश्विक कूटनीतिक के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी के मुताबिक, ''हालात भारतीय विदेश नीति के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। पाकिस्तान पर अमेरिकी दबाव में भी कमी हो सकती है। साथ ही भारत चीन के सामने अब झुक सकता है कि वह इरान के जरिए मध्य एशिया व अफगानिस्तान में कारीडोर बनाने की उसकी योजना में मदद करे।''