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धमकी के बावजूद नक्सल प्रभावित कोंटा में बिखर रहा चुनावी रंग

अंदर के गांवों में नक्सलियों के पोस्टर लगे हैं, जिनमें चुनाव बहिष्कार का एलान किया गया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 06 Oct 2018 04:11 PM (IST)Updated: Sat, 06 Oct 2018 05:27 PM (IST)
धमकी के बावजूद नक्सल प्रभावित कोंटा में बिखर रहा चुनावी रंग
धमकी के बावजूद नक्सल प्रभावित कोंटा में बिखर रहा चुनावी रंग

नईदुनिया, रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में सुकमा से कोंटा के बीच नेशनल हाइवे 30 पर कंक्रीट की मोटी सड़क लगभग तैयार हो चुकी है। कभी यह सड़क बेहद खतरनाक हुआ करती थी। इसी सड़क के दोनों ओर चुनाव की चहल-पहल दिखती है। अंदर के गांवों में नक्सलियों के पोस्टर लगे हैं, जिनमें चुनाव बहिष्कार का एलान किया गया है। कोंटा, दोरनापाल, सुकमा जैसे शहरी इलाकों में यहां-वहां चुनाव की चर्चा ही हो रही है। जगह-जगह चौपाल लगाकर मोबाइल, टिफिन, आबादी पट्टा, गैस चूल्हा आदि बांटा जा रहा है। भाजपा इन सरकारी योजनाओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत लगा रही है।

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राज्य के निर्माण के बाद से कोंटा विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है। इस बार भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ को भेदने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस विधायक लखमा ने सुकमा में डेरा डाल दिया है। वे रोज गांवों का दौरा कर रहे हैं। नक्सली धमकी के बावजूद वे नक्सल प्रभावित इलाकों में घुस रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेता इससे बेचैन हैं। भाजपा के नेता कोंटा, दोरनापाल, सुकमा समेत सभी शहरी और कस्बाई इलाकों में चौपाल लगाकर भूमि का पट्टा बांट रहे हैं।

भाजपा के लिए आसान नहीं है डगर
2008 में कोंटा सीट पर पहली बार भाजपा के पदम नंदा ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी की थी। तब कांग्रेस के लखमा मुश्किल से 192 वोटों से जीत दर्ज कर पाए थे। 2013 में भाजपा ने प्रत्याशी बदला और धनीराम बारसे को मैदान में उतारा। इस बार जीत का अंतर बढ़कर करीब साढ़े पांच हजार का हो गया। धनीराम कहते हैं पिछली बार जो गढ्डा था उसे भरने में पांच साल से लगा हूं। पता नहीं टिकट मिलेगी या नहीं। पूर्व जिला पंचायत सदस्य मौसम मुत्ती और सलवा जुड़ूम नेता सोयम मुक्का भी भाजपा के प्रबल दावेदार हैं।

विकास के आड़े नक्सली दहशत
इस इलाके में सड़कों पर भरपूर विकास दिखता है। सुकमा में दो नए पेट्रोल पंप लग रहे हैं। दोरनापाल, छिंदगढ़, तोंगपाल आदि जगहों पर तमाम सुविधाएं विकसित की गई हैं। हालांकि, यह विकास सड़क तक ही सीमित है। गांव में घुसना कठिन है। कोंटा में लोगों के भारी दबाव के बाद भी एटीएम इसलिए नहीं लग पाया कि कैश कैसे लाया जाएगा।


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