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जानें, BJP-PDP के बीच मतभेद के 12 फैक्‍टर, असमंजस में गुजरे 26 माह

ऐसे कई मुद्दे रहे जिसके चलते दोनों दलों में हमेशा एक दूरी बनी रहती थी। मतभेदों की पड़ताल करती ये रिपोर्ट।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 12:08 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 02:46 PM (IST)
जानें, BJP-PDP के बीच मतभेद के 12 फैक्‍टर, असमंजस में गुजरे 26 माह
जानें, BJP-PDP के बीच मतभेद के 12 फैक्‍टर, असमंजस में गुजरे 26 माह

श्रीनगर [ जेएनएन ] । भाजपा के सहयोग से पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने 4 अप्रैल, 2016 को जम्मू-कश्मीर के 13वें मुख्यमंत्री के रुप में शपथ लीं। मुफ्ती राज्‍य की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनीं। मुफ्ती सरकार के गठन के साथ ही सरकार में शामिल भाजपा और पीडीपी के मधुर संबंध नहीं थे। दोनों दलों के बीच नीतिगत मामलों पर सहयोग से  ज्‍यादा मतभेद हावी रहे। ऐसे कई मुद्दे रहे जिसके चलते दोनों दलों में हमेशा एक दूरी बनी रही। मतभेदों की पड़ताल करती ये रिपोर्ट।

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मतभेद के 12 पड़ाव

1- राज्य ध्वज बना गतिरोध का कारण : जम्मू-कश्मीर का अपना ध्वज है। पीडीपी चाहती थी कि सभी संवैधानिक संस्थानों और संवैधानिक पदों पर आसीन लोग राज्यध्वज को राष्ट्रीय ध्वज की तरह ही सम्मान दें। इस संदर्भ में मार्च, 2015 में एक आदेश भी जारी हो गया, लेकिन भाजपा के विरोध के चलते इस आदेश को वापस लिया गया।

2- बीफ बैन और गोरक्षक : राज्य में गोवंश की हत्या के खिलाफ कानून के अनुपालन पर दोनों दलों के सियासी हित टकराए और रियासत में एक तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा हो गई। राज्य विधानसभा के भीतर भी सदस्यों में आपस में मारपीट की नौबत पहुंच गई थी, लेकिन किसी तरह यह मामला शांत हुआ।

3- मुफ्ती के जनाजे से PM मोदी का दूर रहना : पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद के निधन पर तमाम अटकलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री का शामिल न होना भी पीडीपी को अखरा और दिवंगत नेता के निधन पर लोगों की भीड़ न जुटने से भी पीडीपी ने भाजपा के प्रति परोक्ष रूप से अपने तेवर कड़े रखे।

4- कश्मीर केंद्रित प्रशासन : पीडीपी ने सरकार चलाते हुए विभिन्न प्रशासनिक मामलों में भाजपा के हितों की अनदेखी करते हुए सिर्फ कश्मीर और एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के लिए कदम उठाए। कश्मीरी नौकरशाहों और पीडीपी के चहेते अधिकारियों को लगातार प्राथमिकता देते हुए उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया। वरिष्ठ नौकरशाहों के तबादलों में भाजपा की पूरी तरह अनदेखी हुई।

5-  अनुच्छेद 370 और 35ए : अनुच्छेद 35ए और 370 पर भी पीडीपी और भाजपा में तल्ख मतभेद रहे हैं। बीते साल पीडीपी और भाजपा में 35ए को लेकर स्थिति उस समय और तनावपूर्ण हो गई, जब भाजपा से संबंधित एक संगठन ने इसे खत्म करने के लिए अदालत में याचिका दायर की।

6-  गुज्जर-बक्करवाल समुदाय : गुज्जर-बक्करवाल समुदाय जम्मू संभाग में एक बड़ा वोट बैंक है। बीते कुछ सालों में इन्हें सुनियोजित तरीके से जम्मू संभाग के आसपास इलाकों में बसाया जा रहा है। आम लोग इससे नाराज हैं।

7- रोहिंग्या शरणार्थी : रोहिंग्या शरणार्थियों को राज्य की शांति और कानून व्यवस्था के लिए खतरा बताए जाने के बावजूद पीडीपी ने इन लोगों को राज्य से बाहर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। जम्मू संभाग में लोग इस मुद्दे पर आंदोलनरत रहे, लेकिन कश्मीर में अलगाववादियों और नेकां व अन्य दलों द्वारा शुरू की गई सियासत और मुस्लिम कार्ड खेले जाने पर पीडीपी ने रोहिंग्या के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया।

8- पत्थरबाजों की रिहाई : पत्थरबाजों के मुद्दे पर भी दोनों दल एकमत नहीं थे। पीडीपी जहां इन लोगों के प्रति नर्म रवैया अपनाए जाने की वकालत करती है, वहीं भाजपा इन्हें राष्ट्रविरोधी मानती है। पूर्व वाणिज्य मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा ने पत्थरबाजों को देशद्रोही करार देते हुए गोली मारने की बात की थी। इस पर पीडीपी ने कड़ा एतराज जताया और कहा कि यह कश्मीरी नौजवानों के प्रति नफरत और पूर्वाग्रह दर्शाता है।

9- मंत्रिमंडल विस्तार : अप्रैल के अंत में महबूबा मुफ्ती द्वारा किए गए मंत्रिमंडल फेरबदल ने भी दोनों दलों के बीच तल्खियां बढ़ाईं। हालांकि भाजपा ने पीडीपी के दबाव के आगे झ़ुकते हुए गठबंधन को बनाए रखने के लिए अपने दो मंत्रियों चंद्रप्रकाश गंगा और चौधरी लाल सिंह से इस्‍तीफा ले लिया था, लेकिन राजीव जसरोटिया को मंत्री बनवाया। इससे पीडीपी के अंदर जबरदस्त गुस्सा था, क्योंकि राजीव जसरोटिया भी कठुआ कांड में कथित आरोपितों के पक्ष में हुई रैलियों में शामिल रहे थे।

10- अलगाववादियों से बातचीत : पीडीपी चाहती थी कि पाकिस्तान और अलगाववादी खेमे से जल्द से जल्द बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो, ताकि 2016 के हिंसक प्रदर्शनों से उसे जो नुकसान हुआ है, उसकी किसी तरह से भरपाई हो। लेकिन केंद्र सरकार और प्रदेश भाजपा इसके खिलाफ थी। भाजपा ने बंदूक उठाने वालों से किसी तरह की बातचीत से इनकार करते हुए कहा कि अलगाववादियों से बातचीत सिर्फ संविधान के दायरे में होगी।

11- कठुआ कांड : कठुआ मामले ने भी दोनों दलों के बीच दूरियां बढ़ाईं। हालांकि भाजपा कहीं भी आरोपितों को बचाती नजर नहीं आ रही थी, वह सिर्फ स्थानीय लोगों की मांग के अनुरूप पूरे मामले की सीबीआइ जांच के समर्थन में थी। सरकार के निर्देश पर ही भाजपा के दो मंत्री कठुआ में आयोजित एक रैली में शामिल हुए थे। लेकिन जब मामले ने पूरी तरह सांप्रदायिक रंग ले लिया तो तो महबूबा भी भाजपा के खिलाफ खड़ी हो गईं।

12- रमजान संघर्षविराम : रमजान संघर्षविराम जिसका फैसला केंद्र सरकार ने प्रदेश भाजपा की नाराजगी के बावजूद महबूबा के कहने पर लिया था, पूरी तरह नाकाम रहा। महबूबा रमजान संघर्षविराम के दौरान कश्मीर में विभिन्न वगरें के साथ संवाद बनाने, जनता तक पहुंच बनाने में पूरी तरह नाकाम रहीं और उल्टा आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी हुई। विभिन्न हल्कों में हो रहे विरोध और आलोचना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे ईद के संपन्न होते ही समाप्त कर दिया। इससे पीडीपी निराश थी, वह चाहती थी कि इसे कुछ और समय के लिए विस्तार दिया जाए।


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