चुनाव से पहले मिल रहे हैं कर्ज की दरों में भी नरमी के संकेत
चुनाव से पहले कर्ज की दरों में भी नरमी के संकेत थोक महंगाई और खुदरा महंगाई की नरमी को देखते हुए फरवरी, 2019 में आरबीआइ घटा सकता है ब्याज दरें।
नई दिल्ली, जेएनएन। कच्चे तेल की कीमतों में मिली राहत के बाद आप उम्मीद कर सकते हैं कि जल्द ही ब्याज दरों को लेकर भी कुछ राहत भरी खबर मिलेगी। देश की कुछ दिग्गज वित्तीय सलाहकार एजेंसियां मान रही है कि ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी, 2019 में हो सकती है। ये एजेंसियां देश में महंगाई की दर में लगातार हो रही गिरावट और सरकार व आरबीआइ के बीच बेहतर सामंजस्य बनने की उम्मीद में ऐसा कह रही हैं।
कोटक इकोनोमिक रिसर्च ने ब्याज दरों की भावी गति पर विस्तृत रिपोर्ट में कहा है कि देश में खुदरा और थोक महंगाई दर की स्थिति को देखते हुए ब्याज दरों में 50 आधार अंकों (0.50 फीसद) की कमी की सूरत बन रही है। नवंबर, 2018 में खुदरा महंगाई की दर 2.33 फीसद पर रही थी। वैसे आरबीआइ ने इस महीने की शुरुआत में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए अक्टूबर, 2018 तक के महंगाई दर को केंद्र में रख कर ब्याज दरों को स्थिर रखने का फैसला किया था।
अक्टूबर, 2018 में खुदरा महंगाई की दर 3.4 फीसद थी। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट और खाद्य उत्पादों की कीमतों में नरमी को देखते हुए संभावना है कि अभी थोक व खुदरा महंगाई की दर नीचे की तरफ ही अग्रसर होगी। इस आधार पर ही कोटक इकोनोमिक रिसर्च ने कर्ज के सस्ता होने की संभावना जताई है। आरबीआइ 7 फरवरी को मौद्रिक नीति की अगली समीक्षा करेगा।
पिछले मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान आरबीआइ की तरफ से पेश प्रपत्र भी इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कर्ज के सस्ता होने का एक चक्र शुरु हो सकता है। आरबीआइ वर्ष की शुरुआत में महंगाई के दर का लक्ष्य 4 फीसद तय किया था। अक्टूबर, 2018 में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए महंगाई दर के 3.9 से 4.5 फीसद रहने की बात की गई थी। लेकिन पिछली समीक्षा के दौरान इसे घटा कर 2.8-3.2 फीसद कर दिया है। जबकि ताजे आंकड़े बता रहे हैं कि वर्तमान में महंगाई की दर 2.8 फीसद से भी नीचे है। ऐसे में सरकार भी चाहेगी कि ब्याज दरों में कमी हो ताकि आम जनता पर होम लोन व आटो लोन जैसे खुदरा कर्ज सस्ती दरों पर मिल सके।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में भारत में ब्याज दरें चीन, मलयेशिया, इंडोनेशिया समेत अन्य सभी देशों से काफी ज्यादा है। भारत में ब्याज की दरों के चार फीसद सालाना से ज्यादा बताया गया है जबकि चीन में इसके दो फीसद से थोड़ा ज्यादा और मलयेशिया व इंडोनेशिया में तीन फीसद सालाना से नीचे बताया गया है।