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राजनीतिक अखाड़े में पर्यावरण और विकास की बहस, ईआइए मसौदे पर हो रही बयानबाजी

मसौदे का विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें जिस तरीके से 40 से ज्यादा तरीके की परियोजनाओं को ईआइए के दायरे से मुक्त रखा गया है उसका उद्योग और अफसरशाही गलत फायदा उठाएंगे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 08:11 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 08:14 PM (IST)
राजनीतिक अखाड़े में पर्यावरण और विकास की बहस, ईआइए मसौदे पर हो रही बयानबाजी
राजनीतिक अखाड़े में पर्यावरण और विकास की बहस, ईआइए मसौदे पर हो रही बयानबाजी

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। संप्रग-दो सरकार में पर्यावरण विवाद इतना बड़ा विषय बन गया था कि वह चुनावी मुद्दा भी बन गया था। नरेंद्र मोदी सरकार में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) का नया मसौदा प्रस्तावित है तो फिर से राजनीतिक जंग छिड़ गई है जिसमें पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी तक कूद पड़े हैं। उन्हें कुछ पर्यावरणविदों का भी साथ मिल रहा है। लेकिन जिस तरह विकास की भूख बढ़ी है और राष्ट्रीय महत्व के साथ साथ छोटे छोटे काम करने वाले गरीबों के लिए कुछ राहत दी गई है उसके कारण विरोध उल्टा न पड़ जाए।

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मसौदे का विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें जिस तरीके से 40 से ज्यादा तरीके की परियोजनाओं को ईआइए के दायरे से मुक्त रखा गया है, उसका उद्योग और अफसरशाही गलत फायदा उठाएंगे। शायद विरोध करने वालों का ध्यान इस पर नहीं गया कि इसमें कुम्हारों, टाइलों का काम करने वालों, किसानों के द्वारा सिर्फ शारीरिक खनन की इजाजत भी दी गई है। यानी यह सीधे तौर पर रोजगार से जुड़ा मुद्दा है। इसी में सौर उर्जा, खनिज सर्वेक्षण, नहरों व बांधों के रखरखाव कार्य, देशी शराब ईकाई (जिनकी उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 10 किलो लीटर है) आदि को भी इस दायरे में रखा गया है।

कोविड काल के बाद जहां रोजगार के नए नए हर साधन तलाशने की कवायद होगी। उसमें कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेस इसका विरोध कर विकास के खिलाफ खड़ी दिखने लगे। यह परियोजनाओं ऐसी है जिन्हें जनता के साथ विचार-विमर्श के दायरे से बाहर रखा गया। इसके अलावा पड़ोसी देशों की सीमा से 100 किमी की हवाई दूरी वाले क्षेत्र को बार्डर क्षेत्र केरूप में परिभाषित किया गया है।

मसौदे के तहत उद्योग या विकास परियोजनाओं के लिए मंजूरी की नहीं होगी जरूरत

इसके कारण उत्तर-पूर्व का अधिकांश क्षेत्र इस परिभाषा के दायरे में आ जाएगा, जहां देश की सबसे घनी जैव विविधता पायी जाती है। मसौदे के तहत अब यहां उद्योग या विकास परियोजनाओं के लिए मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। मसौदे के विरोधियों का कहना है कि इससे नौकरशाही हावी होगी और पर्यावरण खतरे मे होगा। उनकी आपत्ति मसौदे में सामाजिक भागीदारी कम करने को लेकर है। जिसके तहत अब तक किसी भी परियोजना को मंजूरी देने से पहले लोगों की राय ली जाती है। हालांकि सरकार का कहना है कि मसौदे का मकसद जनसुनवाई की प्रक्रिया को कमजोर करना नहीं है, बल्कि उसे अधिक अर्थपूर्ण बनाना है। 

अनियंत्रित तरीके से नहीं चल सकती कंपनियां

इसके साथ ही मसौदे में पर्यावरण का उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर जुर्माना लगाकर विस्तार या गतिविधियों को शुरू करने के लिए मंजूरी देने को लेकर जो प्रस्ताव है, उसे लेकर भी विरोध है। जबकि सरकार का साफ कहना है कि कंपनियां लंबे समय से अनियंत्रित तरीके से नहीं चल सकती है। वह नए सिरे से ईआइए की मंजूरी ले सकती है। हालांकि पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ सुरेंद्र यादव के मुताबिक सड़क आदि के निर्माण कार्यो को जिस तरीके से रणनीतिक दायरे में रखते हुए मंजूरी से मुक्त किया गया है, उससे मनमाने विकास को बढ़ावा मिलेगा। जो पर्यावरण को भारी क्षति भी पहुंचाएगा।

पर्यावरण प्रभाव आकलन क्या है और क्यों जरूरी

यह पर्यावरण के अनुकूल कार्य करने से जुड़ी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत उद्योग, खनन, विकास परियोजनाओं सहित कोई नया कार्य शुरु करने या उसे विस्तार देने से पहले एक ऐसा अध्ययन किया जाता है कि जिससे पर्यावरण और आसपास के जनजीवन पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। इसका पूर्व आकलन करता है और उससे निपटने के उपाय प्रस्तावित करता है। बाद में इन्हीं रिपोर्टो के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय या दूसरे नियामक परियोजना को मंजूरी देने और न देने का फैसला लेते है। भारत में उद्योगों और परियोजनाओं में ईआइए को 1994 में अनिवार्य किया गया था। हालांकि कई क्षेत्रों में यह अभी भी प्रभावी नहीं हो पाया था।


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