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कांग्रेस ने राहुल को चेहरा बना गठबंधन के सहारे ठोकी 2019 की ताल

गठबंधन की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए भी पार्टी ने राहुल को पूरा अधिकार देते हुए क्षेत्रीय पार्टियों को यह संदेश दे दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष ही विपक्षी गठबंधन की धूरी होंगे।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 08:38 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 07:56 AM (IST)
कांग्रेस ने राहुल को चेहरा बना गठबंधन के सहारे ठोकी 2019 की ताल
कांग्रेस ने राहुल को चेहरा बना गठबंधन के सहारे ठोकी 2019 की ताल

नई दिल्ली [संजय मिश्र]। कांग्रेस ने राहुल गांधी को अपना 'चेहरा' बनाते हुए गठबंधन के सहारे 2019 के चुनावी महासंग्राम में मोदी सरकार को शिकस्त देने का सियासी बिगुल बजा दिया है। गठबंधन की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए भी पार्टी ने राहुल को पूरा अधिकार देते हुए क्षेत्रीय पार्टियों को यह संदेश दे दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष ही विपक्षी गठबंधन की धूरी होंगे।

कांग्रेस कार्यसमिति में अपने नेतृत्व को मिले मजबूत समर्थन से उत्साहित राहुल ने भी चुनावी गठबंधन पर पार्टियों से बात करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की ओर से राजनीतिक बहस को खास धु्रवीकरण की दिशा में ले जाने को लेकर सचेत करते हुए राहुल ने कांग्रेस नेताओं को भाषा की मर्यादा लांघने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।

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कांग्रेस कार्यसमिति की संसदीय सौध में करीब पांच घंटे चली बैठक में गठबंधन राहुल के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने का फैसला करते हुए चुनाव पूर्व और बाद के गठबंधन का जिम्मा भी उन पर ही सौंप दिया है। राहुल को अपना चेहरा बना कांग्रेस ने यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि उसके नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले विपक्षी खेमे के दलों के दबाव में फिलहाल वह नहीं आएगी।

राहुल को गठबंधन पर चर्चा के लिए अधिकृत किया जाना इसी रणनीति का हिस्सा है। इस फैसले के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी हों या एनसीपी प्रमुख शरद पवार जैसे दिग्गज सबको गठबंधन को लेकर राहुल से ही बात करनी होगी। इसके पहले गठबंधन पर चर्चा के लिए यूपीए अध्यक्ष के नाते सोनिया गांधी अधिकृत थीं।

कार्यसमिति की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत और मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने ऐलान किया कि सीडब्लूसी ने राहुल गांधी को चुनाव पूर्व और चुनाव बाद गठबंधन के लिए अधिकृत किया है।


सुरजेवाला ने कहा कि कोई शक नहीं कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव में जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष ही घटक दलों और संभावित नये साथी दलों से वार्ता करेंगे। हालांकि कांग्रेस ने राहुल को सीधे तौर पर प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया ताकि विपक्षी गठबंधन में नेतृत्व को लेकर खटास जैसी नौबत अभी से पैदा हो जाए।

राहुल को पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किये जाने के सवाल पर सुरजेवाला ने कहा कि इसमंे कोई शक नहीं होना चाहिए कि जब कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगी तो राहुल ही हमारे चेहरा होंगे। उन्होंने कहा कि 2004 में भी सोनिया गांधी पार्टी का चेहरा थीं और जनता ने उस पर फैसला दिया था।

इसके बाद सोनिया और पार्टी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का निर्णय लिया। सूत्रों के मुताबिक बैठक में सचिन पायलट, शक्ति सिंह गोहिल, पीएल पुनिया और रमेश चेन्निथेला जैसे नेताओं ने राहुल को पीएम उम्मीदवार बनाने की बात उठाई थी।

सूत्रों के मुताबिक बैठक के दौरान कुछ नेताओं ने गठबंधन की वजह से कांग्रेस का सियासी आधार कमजोर पड़ने की बात उठाई। इस पर पी चिदंबरम, शीला दीक्षित, आनंद शर्मा से लेकर अधिकांश नेताओं ने मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में गठबंधन को कांग्रेस ही नहीं देश की अपरिहार्य जरूरत माना। इनका कहना था कि मोदी सरकार में देश में जिस तरह का माहौल और संस्थाओं पर दबाव है उसमें गठबंधन के सहारे एनडीए को शिकस्त देना पहली प्राथमिकता है, जबकि कांग्रेस को मजबूत करना दूसरी।

सोनिया गांधी ने भी गठबंधन की मुखर वकालत करते हुए कहा कि मोदी सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है और इसीलिए प्रधानमंत्री घबराहट में विपक्ष पर अनाप-शनाप आरोप लगा रहे। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी पीएम पर निशाना साधते हुए कहा कि वे जुमलों और आत्मप्रशंसा की राजनीति को खारिज करते हैं।


राहुल ने भी समापन बैठक में साफ कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में गठबंधन की सियासत को आगे बढ़ाने से उन्हें कोई गुरेज नहीं है। इसी दरम्यान उन्होंने गठबंधन पर समान विचाराधारा वाली पार्टियों से चर्चा के लिए एक छोटी समिति का गठन कर देने की बात कही।

राहुल ने शशि थरूर के बयान का जिक्र किये बिना ऐसी टिप्पणी करने वाले नेताओं को चेतावनी दी कि भाषा की मर्यादा लांघने पर कार्रवाई होगी। इस पर कुछ सदस्यों ने कहा कि पीएम मोदी और भाजपा को उनके ही शब्दों में जवाब देना होगा। मगर राहुल का साफ कहना था कि कांग्रेस इस समय एक बड़ी लड़ाई लड़ रही है और इसमें महात्मा गांधी के सिखाये रास्ते पर चलना ही वक्त की मांग है क्योंकि दूसरा पक्ष सुनियोजित रणनीति के सियासी संवेदनशीलता का दांव खेल रहा।


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