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कोरोना ने झकझोरा तो था लेकिन नहीं जागीं सरकारें, स्वास्थ्य बजट पर नहीं दिया गया ध्‍यान

महामारी में राष्ट्रीय सोच की भी जरूरत होती है और उसे अमल में लाने के लिए केंद्रीय मदद की भी... लेकिन हैरत की बात यह है कि राज्य सरकारें शायद यह मान बैठी हैं कि भविष्य में ऐसी किसी भी आपात स्थिति की तैयारी केवल केंद्र को ही करनी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 01 May 2021 08:49 PM (IST)Updated: Sat, 01 May 2021 11:02 PM (IST)
कोरोना ने झकझोरा तो था लेकिन नहीं जागीं सरकारें, स्वास्थ्य बजट पर नहीं दिया गया ध्‍यान
कोरोना की पहली लहर ने झकझोरा तो था लेकिन राज्‍य सरकारों ने ध्‍यान नहीं दिया...

आशुतोष झा, नई दिल्ली। एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना महामारी से निपटने में केंद्र सरकार को विशेष जिम्मेदारी निभानी होगी। यह सच भी है, तब भी जबकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है। दरअसल ऐसी महामारी में राष्ट्रीय सोच की भी जरूरत होती है और उसे अमल में लाने के लिए केंद्रीय मदद की भी लेकिन हैरत की बात यह है कि राज्य सरकारें शायद यह मान बैठी हैं कि भविष्य में ऐसी किसी भी आपात स्थिति की तैयारी भी केवल केंद्र को ही करनी है। 

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स्वास्थ्य बजट पर नहीं दिया ध्‍यान 

वरना कोई कारण नहीं है कि सात आठ महीने पहले ही कोरोना की पहली लहर और असामान्य स्थिति का सामना कर चुके राज्यों ने बजट में इसे लगभग नजरअंदाज कर दिया। महामारी से निपटने के लिए व्यापक ढांचागत तैयारी की सोच किसी राज्य के बजट में नहीं दिखी। जबकि केंद्र सरकार ने जिस वैक्सीन को लेकर बजट में सोच दिखाई थी, उसे जमीन पर उतारने में कमी रह गई।

महज 12-15 फीसद का इजाफा 

एक फरवरी को केंद्र सरकार का आम बजट पेश हुआ और उसके बाद अलग अलग दिन राज्य सरकारों ने भी संबंधित विधानसभाओं में अपना बजट पेश किया। पहले उसे ही देखते हैं। केंद्र सरकार ने यूं तो स्वास्थ्य बजट में पिछले साल के बजट के मुकाबले 123 फीसद बढ़ोत्तरी का दावा किया लेकिन दूसरा पहलू यह है कि पेयजल और स्वच्छता का आवंटन हटा दिया जाए तो बढ़ोत्तरी 12-15 फीसद की थी। 

महामारी की पहचान पर नहीं रहा जोर 

केंद्र ने बजट में 35,000 करोड़ रुपये का आवंटन वैक्सीन के लिए किया था। यही एक संकेत था कि सरकार फिलहाल बहुत सीमित वर्ग तक ही अपने खर्च पर वैक्सीनेशन करेगी। दरअसल यह पैसा देश के पांचवें हिस्से के वैक्सीनेशन के लिए ही पर्याप्त है। यह सबसे अहम हथियार है, जिसे केंद्र की निगरानी में ही पूरा होना है, लेकिन गति ही कमजोर पड़ गई। केंद्र ने बजट में महामारी की पहचान, उसकी रोकथाम जैसी व्यवस्था के लिए भी घोषणा की थी, जो अभी शुरू ही नहीं हो पाई है।

नहीं किए गए फौरी उपाय 

बहरहाल, स्वास्थ्य राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी है और अगर राज्यों के बजट को देखें तो साफ हो जाएगा कि कोरोना की पहली लहर ने उन्हें केवल झकझोरा था, नींद से उठाया नहीं था। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से शुरू करें तो स्वास्थ्य के बजट में लगभग 30 फीसद वृद्धि की गई लेकिन ऐसा कोई उपाय नहीं किया गया, जो तत्काल अस्पताल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त कर सके। 

क्‍या कहते हैं आंकड़े 

योजना की कमी इसी से आंकी जा सकती है कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम के लिए महज 50 करोड़ रखा गया, जबकि यह आम आकलन है कि केंद्र की ओर से आधी आबादी का वैक्सीनेशन हो तब भी राज्यों को अपने स्वास्थ्य बजट का 15-20 फीसद हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश को पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा वैक्सीन पर ही खर्च करना होगा। छत्तीसगढ़ ने 2020-21 में 3,998 करोड़ का स्वास्थ्य बजट रखा था। कोरोना के बाद आए बजट में इसमें महज 90 करोड़ का इजाफा हुआ। 

झारखंड ने पार कर दी हद 

पंजाब ने अपने स्वास्थ्य बजट में पिछले साल के मुकाबले 44 लाख रुपये की वृद्धि की तो झारखंड ने हद पार करते हुए इसे घटा दिया। गुजरात सरकार ने भी 2020-21 के 12,261 करोड़ रुपये के मुकाबले 2021-22 में इसे 11,323 करोड़ कर दिया। 

दिल्‍ली सरकार ने भी नहीं दिया ध्‍यान 

दिल्ली में लगभग 30 फीसद की वृद्धि तो की गई लेकिन पूरा जोर लांग टर्म योजना पर रहा। पहले से मौजूद अस्पतालों में बेड बढ़ाने, अस्पतालों को आक्सीजन आत्मनिर्भर करने जैसी योजना पर नहीं। बिहार की स्थिति भी कुछ वैसी ही रही। लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी भी हुई, 10 जिलों में नए अस्पताल बनाने की घोषणा भी हुई, लेकिन इसकी फिक्र नहीं हुई कि कोरोना की दूसरी लहर की मांग तत्काल पूरी करनी होगी। 

टीकाकरण पर करना होगा खर्च 

फिलहाल आंकड़े बताते हैं कि हर राज्य ने अपने स्वास्थ्य बजट में जो बढ़ोत्तरी की है उससे दो तीन गुना ज्यादा तो केवल वैक्सीन में खर्च करना पड़ेगा। ध्यान रहे कि कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा अफरा-तफरी बेड, आक्सीजन और दवाइयों को लेकर रही। कुछ ऐसी ही स्थिति पहली लहर में दिख चुकी थी। लेकिन न तो राज्यों ने कोई तैयारी दिखाई और न ही कोरोना के वक्त बार-बार आगाह करते रहे केंद्र ने उन्हें जगाने की कोशिश की।


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