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CAA: राजनीतिक दांवपेच में उलझा संवैधानिक अधिकार, केरल विस के प्रस्ताव को करना होगा खारिज

राज्य के लोग योजनाओं में विशिष्ट लाभ से वंचित रहने की आशंका जताते हुए एनपीआर लागू करने की मांग कर सकते हैं।]

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 09:52 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 09:52 PM (IST)
CAA: राजनीतिक दांवपेच में उलझा संवैधानिक अधिकार, केरल विस के प्रस्ताव को करना होगा खारिज
CAA: राजनीतिक दांवपेच में उलझा संवैधानिक अधिकार, केरल विस के प्रस्ताव को करना होगा खारिज

माला दीक्षित, नई दिल्ली। राजनीतिक दांवपेच में केरल विधानसभा ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया है और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का कई राज्य खुलेआम विरोध कर रहे हैं। इस राजनीतिक खींचतान में संविधान के तार भी उलझ रहे हैं। हालांकि सीएए समेत दूसरे केंद्रीय कानून को मानना राज्यों का कर्तव्य है और इसका पालन न करना संवैधानिक तंत्र का फेल होना माना जाएगा, लेकिन इसी संविधान के अनुसार अब यह भी जरूरी हो गया है कि अदालत केरल के प्रस्ताव को असंवैधानिक करार देकर खारिज करे।

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कोर्ट से असंवैधानिक घोषित होने तक केरल विधानसभा के प्रस्ताव को कानून ही माना जाएगा

सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह का साफ मानना है कि केंद्रीय कानून को लागू करने से राज्य सरकारें मना नहीं कर सकतीं, लेकिन केरल के मामले में संवैधानिक अधिकारों का बहुत घालमेल हो गया है। विधानसभा के प्रस्ताव पारित करने के मायने अलग हो जाते हैं। जबतक कि अदालत से उसे असंवैधानिक न घोषित किया जाए तब तक कानून की निगाह में वह प्रस्ताव कानूनी ही माना जाएगा।

सीएए के खिलाफ केरल विधानसभा के प्रस्ताव को करना होगा खारिज

इस मामले में केरल विधानसभा के प्रस्ताव को केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी होगी और वहां बताना होगा कि राज्य विधानसभा को ऐसा प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है इसलिए उसे रद किया जाए। इसके अलावा राज्यसभा अगर केरल विधानसभा के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पारित करती है तो भी दूसरा पक्ष कोर्ट जा सकता है।

राज्य एनपीआर लागू करने से मना नहीं कर सकते

जहां तक एनपीआर की बात है तो संविधान के जानकार कहते हैं कि राज्य एनपीआर लागू करने से मना नहीं कर सकते। इतना ही नहीं एनपीआर लागू न करने वाले राज्य के निवासी इसे लागू कराने के लिए कोर्ट भी जा सकते हैं।

संसद के कानून के खिलाफ सरकारी विज्ञापन हैरान करने वाला

केरल पहला राज्य है जिसने सीएए के खिलाफ सदन से प्रस्ताव पारित किया है। इतना ही नहीं उसने हाल ही में सीएए के खिलाफ अखबारों में विज्ञापन भी दिया है जिसको वहीं के राज्यपाल और जानेमाने कानूनविद आरिफ मोहम्मद खान ने अवांछनीय करार दिया है। उन्होंने कहा कि संसद के कानून के खिलाफ सरकारी विज्ञापन हैरान करने वाला है। दूसरी बानगी पश्चिम बंगाल की है जहां राज्य में सीएए के खिलाफ लगे सरकारी पोस्टरों और विज्ञापनों को हटाने का हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था।

केंद्रीय कानून को लागू करने से राज्य मना नहीं कर सकते- हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज

सीएए, एनपीआर और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तीनों ही चीजें नागरिकता और जनसंख्या गणना से जुड़ी हैं। संविधान के मुताबिक इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है और दोनों ही केंद्रीय कानून हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि नागरिकता संविधान में केंद्रीय सूची का विषय है। ऐसे में केंद्र द्वारा बनाए गए कानून को लागू करने से राज्य आखिर कैसे मना कर सकते हैं। ऐसा करना राज्य में संवैधानिक तंत्र का फेल होना माना जाएगा और इस आधार पर राज्य की सरकारें बर्खास्त हो सकती हैं।

एनपीआर के प्रश्न तय करना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है

एनपीआर के मुद्दे पर भी उनका कहना है कि यह जनगणना से जुड़ा मुद्दा है। इस बारे में केंद्रीय कानून है और राज्य उसे लागू करने से मना नहीं कर सकते। अगर राज्य ऐसा करते हैं तो केंद्र उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। एनपीआर के प्रश्न तय करना भी केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है।

जनगणना से पता चलता है कि व्यक्ति इस देश का नागरिक है या विदेशी घुसपैठिया

जस्टिस सिंह कहते हैं कि वैसे तो उन्हें नहीं मालूम कि एनपीआर में क्या प्रश्नावली तय की गई है, लेकिन फिर भी अगर कोई प्रश्न व्यक्ति के माता पिता और उनके जन्म स्थान के बारे में पूछा जाता है तो उसमें गलत क्या है। यह भारत देश के नागरिकों की जनगणना हो रही है ऐसे में पता होना चाहिए कि व्यक्ति इस देश का नागरिक है या विदेशी घुसपैठिया है।

एनपीआर से प्रभावित नागरिक कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं

एनपीआर न लागू होने पर नागरिकों के अधिकारों पर जस्टिस एसआर सिंह और वकील ज्ञानंत सिंह दोनों का मत है कि इससे प्रभावित होने वाले नागरिक कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। राज्य के लोग योजनाओं में विशिष्ट लाभ से वंचित रहने की आशंका जताते हुए एनपीआर लागू करने की मांग कर सकते हैं।


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