सरकार और आरबीआइ की रजामंदी से होगा रिजर्व फंड पर समिति का गठन
आरबीआइ के रिजर्व फंड के लिए विशेष समिति का गठन जल्द ही आरबीआइ और वित्त मंत्रालय के शीर्ष स्तर पर मशविरा के बाद किया जाएगा।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सोमवार को आरबीआइ की बहुप्रतीक्षित बोर्ड बैठक के बाद क्या सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच विवाद खत्म हो गया है? इस सवाल का अभी साफ साफ जवाब देना मुश्किल है क्योंकि जिन मुद्दों पर दोनो पक्षों में असहमति थी वे ज्यों के त्यों बने हुए है। आगे हालात किस तरफ जाते हैं यह बहुत कुछ आरबीआइ के रिजर्व फंड यानी इकोनोमिक कैपिटल फ्रेमवर्क (ईसीएफ) में बदलाव को लेकर गठित होने वाली समिति के फैसले से तय होंगे।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने जानकारी दी कि इस विशेष समिति का गठन जल्द ही आरबीआइ और वित्त मंत्रालय के शीर्ष स्तर पर मशविरा के बाद किया जाएगा। समिति के सदस्यों के नाम और समिति के कार्याधिकार को लेकर भी फैसला भी दोनो पक्षों के आपसी सहमति से होगा। समिति को दो से तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा जा सकता है।
आरबीआइ की बोर्ड बैठक में रिजर्व बैंक का मुद्दा काफी अहम रहा है। जानकारों के मुताबिक बोर्ड में वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधियों की तरफ से तैयार एक प्रजेंटेशन दिया गया। बोर्ड में सरकार की तरफ से नामित एक सदस्य ने भी आरबीआइ के पास बेहद बड़ी राशि वाले रिजर्व फंड के औचित्य को लेकर सवाल उठाये।
आरबीआइ का पक्ष डिप्टी गवर्नर डॉ. विरल आचार्य ने रखा। इसके बाद सहमति बनी कि एक विशेषज्ञ समिति गठित हो जो इस मुद्दे पर फैसला करे। समिति में आरबीआइ व वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा बाहरी क्षेत्र से भी कुछ विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है।
यह पूछे जाने पर कि समिति की सिफारिशों पर फैसला कौन करेगा, अधिकारियों का कहना है कि निश्चित तौर पर अंतिम फैसला आरबीआइ गवर्नर ही करेंगे। आरबीआइ से तरफ से गठित हर समिति की सिफारिशों पर अंतिम तौर पर फैसला करने या नहीं करने का अधिकार गवर्नर के पास ही होता है।
हालांकि समिति की सिफारिशों पर अमल नहीं होने की स्थिति में बोर्ड की बैठक में दूसरे सदस्य इस बारे में सवाल उठा सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद आरबीआइ गवर्नर को किसी समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
सनद रहे कि वित्त मंत्रालय की तरफ से लगातार यह संकेत दिया जाता रहा है कि वह आरबीआइ के रिजर्व फंड में ज्यादा हिस्सा चाहती है। एक तर्क यह दिया जाता है कि दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक अपनी कुल परिसंपत्तियों का तकरीबन 16 फीसद बतौर रिजर्व फंड रखते हैं। इसका निर्धारण इकोनोमिक कैपिटल फ्रेमवर्क (ईसीएफ) के जरिए होती है। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक कुल परिसंपत्तियों का 26 फीसद रखता है। अभी इस फंड में 9.50 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा की राशि है।