अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ कई मायनों में है खास
अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमे की सुनवाई के लिए बनी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कई मायनों में खास है। मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने पीठ के गठन में काफी सावधानी बरती है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। बहुप्रतीक्षित अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमे की सुनवाई के लिए बनी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कई मायनों में खास है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुनवाई पीठ का गठन करने में काफी सावधानी बरती है। सबसे पहले तो अहम मुकदमे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में सुनवाई के लिए लगाया, जबकि इससे पूर्व सुनवाई करने वाली पीठ ने मुस्लिम पक्ष के मुकदमे को संविधान पीठ को भेजने की मांग ठुकरा दी थी।
दूसरी खासियत पीठ में शामिल न्यायाधीशों की वरिष्ठता की है। वरिष्ठता क्रम में मुख्य न्यायाधीश के बाद जस्टिस एके सीकरी आते हैं, लेकिन वह दो माह बाद ही छह मार्च को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसलिए पीठ में शामिल नहीं किए गए। पीठ के बाकी सदस्य इनके बाद के वरिष्ठता क्रम में हैं। वैसे सुप्रीम कोर्ट का हर न्यायाधीश बराबर अहमियत रखता है। उसके फैसले की भी समान अहमियत होती है।
पीठ में पुराने न्यायाधीश नहीं
नई पीठ में इस मामले की सुनवाई की तैयारी के आदेश में शामिल रही पीठ के पुराने न्यायाधीश शामिल नहीं हैं। पहले इस मुकदमे की सुनवाई तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ कर रही थी। इसी पीठ ने अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून को सही ठहराने वाले इस्माइल फारुखी फैसले के उस अंश को दोबारा विचार के लिए संविधान पीठ भेजने की मांग ठुकरा दी थी, जिसमें मस्जिद को नमाज के लिए इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं माना गया है। इसके बाद जस्टिस मिश्र सेवानिवृत्त हो गए थे और नई पीठ का गठन होना था।
अयोध्या मामले के वकीलों को संविधान पीठ की भनक तक नहीं थी
अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद में पेश होने वाले वकीलों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि सुप्रीम कोर्ट मामले में पांच जजों की संविधान पीठ गठित करने जा रहा है। मंगलवार को सभी पक्षों के वकीलों ने कहा कि उन्हें जरा भी संकेत नहीं मिला था कि यह मामला संविधान पीठ को सौंप दिया जाएगा। दो वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि लग रहा था कि तीन जजों की बेंच गठित होगा।