कांग्रेस की तीन राज्यों में मिली कामयाबी, विपक्षी एकता को मिला मजबूत आधार
2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष ने एकजुटता बनाने के लिए सहमति बनाई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस की तीन हिन्दी भाषी राज्यों में मिली कामयाबी ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए शुरू हुई व्यापक विपक्षी गठबंधन की पहल को अब उम्मीदों का नया ठोस आधार दे दिया है। इस बात में अब कोई संशय नहीं रह गया है कि गठबंधन की मुख्य धुरी कांग्रेस होगी और सपा-बसपा भी विपक्षी एकता की इस छतरी के नीचे आएंगे।
कांग्रेस की कामयाबी ने 2019 में विपक्षी गठबंधन में सपा-बसपा के आने की राह बनाई
सेमीफाइनल में विपक्षी खेमे को मिली बढ़त ने यह संकेत तो दे ही दिया है कि अगला लोकसभा चुनाव अब मुकाबले का हो गया है। इसमें विपक्षी एकजुटता की राजनीतिक ताकत भाजपा-एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। सपा और बसपा की विचाराधारा के कांग्रेस से मेल खाने की बात कहते हुए राहुल गांधी ने भी साफ कर दिया कि विपक्षी गठबंधन के लिए आगे बढ़कर इन दोनों दलों को साथ लाने से गुरेज नहीं करेंगे।
कांग्रेस ने छत्तीसगढ, राजस्थान और मध्यप्रदेश में सियासी वापसी जरूर की है मगर जिस तरह राजस्थान व मध्यप्रदेश में भाजपा के साथ कांटे की टक्कर हुई है उसमें पार्टी को गठबंधन नहीं हो पाने की चूक कहीं न कहीं खल रही है। छत्तीसगढ में सत्ता विरोधी लहर में बेशक कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत मिल गया है, लेकिन मध्यप्रदेश में कांटे के मुकाबले में बसपा और सपा से गठबंधन नहीं होने का नुकसान तो कांग्रेस को हुआ ही है। सपा और बसपा के साथ तालमेल होता तो कांग्रेस को बहुमत के लिए शायद इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता। राजस्थान में भी बसपा ने अपनी चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता दिखा दी है। इसीलिए आम चुनाव में पार्टी संभवत: ऐसी चूक दोहराने से बचेगी।
वैसे भी 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए को शिकस्त देने की विपक्ष की चुनौती की असली परीक्षा उत्तरप्रदेश में होनी है। 80 लोकसभा सीटों वाले देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में पिछली बार भाजपा को 73 सीटें मिली थीं और सूबे में करीब तीन तिहाई बहुमत से उसकी सरकार बनी है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह में मुश्किल बढ़ाने के लिए विपक्षी एकजुटता की सबसे बड़ी परीक्षा इसीलिए उत्तरप्रदेश में है। इस सियासी जरूरत का अहसास ही है कि राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में सपा और बसपा के विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का सकारात्मक संकेत दिया।
कांग्रेस ने इन तीन राज्यों में सपा और बसपा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी मगर राहुल ने इस ओर भी साफ इशारा किया कि 2019 के गठबंधन के लिए कांग्रेस का रुख ज्यादा लचीला होगा। वैसे उत्तरप्रदेश की मौजूदा सियासी पृष्ठभूमि में कांग्रेस को सपा और बसपा के सहारे की जरूरत है। सपा-बसपा सैद्धांतिक रुप से लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल पर राजी हैं। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश होगी कि तीन राज्यों की कामयाबी का फायदा वह उत्तरप्रदेश में प्रस्तावित विपक्षी गठबंधन को मूर्त रुप देकर उठाए।
विपक्षी एकजुटता को लेकर सोमवार को हुई 21 पार्टियों की बैठक में पहले ही 2019 में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए साथ आने की सैद्धांतिक सहमति बन गई है। ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल सभी विपक्षी एकता की छतरी में आ गए हैं। जबकि सपा और बसपा चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे और अब जब कांग्रेस नये सिरे से उठ खड़ी होती दिख रही है तो फिर इन दोनों के लिए राहुल के दोस्ती के हाथ को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा।