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उत्तर प्रदेश में ऐसे सिमटा कांग्रेस का जनाधार, आगे भी हैं कई बड़ी चुनौतियां

1984 के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार कांग्रेस का जनाधार गिरा है। पिछले लोकसभा चुनावों में इसका वोट प्रतिशत सात रह गया है।

By Arti YadavEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 07:45 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 07:45 AM (IST)
उत्तर प्रदेश में ऐसे सिमटा कांग्रेस का जनाधार, आगे भी हैं कई बड़ी चुनौतियां
उत्तर प्रदेश में ऐसे सिमटा कांग्रेस का जनाधार, आगे भी हैं कई बड़ी चुनौतियां

नई दिल्ली, जेएनएन। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को भारी बहुमत मिला था। उस वक्त 85 सीटों पर लड़ने वाली देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को 83 सीटें मिली थीं। तब कांग्रेस को सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें वाले इस राज्य में 51.03 फीसद वोट मिले थे। 1984 के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार कांग्रेस का जनाधार गिरा है। पिछले लोकसभा चुनावों में इसका वोट प्रतिशत सात रह गया है। पिछले तीन दशकों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई।

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उत्तर प्रदेश से पुराना रहा है नाता

यूपी ने भारत और कांग्रेस को जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के रूप में प्रधानमंत्री दिए। यूपी का फूलपुर वही इलाका है, जहां से 1952, 1957 और 1962 में जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा चुनाव जीता था। नेहरू का 1964 में अपनी मृत्यु तक सीट पर कब्जा रहा। इसके बाद 1967 में उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित इस सीट पर काबिज रहीं। वहीं रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी सांसद बने थे। और बाद में उनकी बहू और राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने 2004 में यह सीट जीती। 2009 और वर्तमान में 2014 के चुनावों के बाद भी यह सीट उन्हीं के पास है। अमेठी सीट भी नेहरू-गांधी परिवार के पास है।

1980 में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह को हराकर इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी यहां से सांसद बने थे। बाद में उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में इस सीट से जीत हासिल कर उनके बड़े भाई राजीव गांधी सांसद बने। 1991 में उनकी हत्या तक राजीव गांधी ने अमेठी का प्रतिनिधित्व किया। बाद में 2004 से अब तक उनके बेटे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी के सांसद हैं।

किला ढहने की शुरुआत

एक समय था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पकड़ बहुत मजबूत थी। लेकिन राम मनोहर लोहिया आंदोलन, मंडल आयोग और भाजपा र्की हिंदुत्व नीति ने राज्य में इस पार्टी का जनाधार खत्म कर दिया।

कांग्रेस की बड़ी चुनौती

राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को उत्तर प्रदेश में खोई हुई साख वापस लौटाने की है। माना जाता है कि केंद्र का रास्ता यहीं से होकर जाता है। कई जिलों में कोई कमेटी नहीं होने से पार्टी तंत्र खस्ताहाल है। मतदाताओं-कार्यकर्ताओं पर समान रूप से पार्टी की पकड़ ढीली है। पार्टी को पुनर्जीवित करने वाले किसी बड़े चेहरे की कमी भी एक वजहों में से एक है।


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