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कृषि कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिए विशेष सत्र बुलाएंगे कांग्रेस शासित राज्य, दूसरे राज्‍यों को भी भेजा मसौदा

कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रही कांग्रेस ने अब इन कानूनों को निष्प्रभावी करने की दिशा में कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कांग्रेस शासित राज्यों की ओर से जल्द ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 10:13 PM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 10:13 PM (IST)
कृषि कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिए विशेष सत्र बुलाएंगे कांग्रेस शासित राज्य, दूसरे राज्‍यों को भी भेजा मसौदा
कांग्रेस ने कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करने की दिशा में कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है।

नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रही कांग्रेस ने अब इन कानूनों को निष्प्रभावी करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस क्रम में कांग्रेस शासित राज्यों की ओर से जल्द ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। इसमें केंद्र सरकार के नए कानूनों को अपने सूबे में लागू नहीं करने का विशेष कानून बनाने की तैयारी है।

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कांग्रेस ने राज्यों में कृषि सुधार के तीनों केंद्रीय कानूनों का कार्यान्वयन रोकने के लिए मॉडल कानून का एक मसौदा तैयार किया है। यह मसौदा अन्य विपक्षी दलों की सत्ता वाले राज्यों को भी दिया गया है ताकि वे भी संवैधानिक प्रावधानों की कसौटी के अनुरूप अपने सूबे में ऐसा कानून बना सकें जिससे तीनों केंद्रीय कानूनों को लागू करने की बाध्यता न रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मॉडल कानून का मसौदा तैयार किया है।

पार्टी सूत्रों ने पुष्टि की है कि मसौदा भेजे जाने के बाद कांग्रेस शासित राज्यों में विधानसभा का विशेष सत्र जल्द बुलाए जाने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। राहुल गांधी ने जिस तरह सत्ता में आने के बाद कृषि कानूनों को कचरे में फेंकने का एलान किया उससे भी पार्टी शासित राज्यों में ऐसे कदम की संभावना बढ़ गई है। सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार भी केंद्रीय कानूनों को लागू नहीं करने संबंधी कानून पारित कर सकती है।

हालांकि बंगाल में ममता बनर्जी और केरल में वामपंथी गठबंधन की सरकारें कांग्रेस के इस विकल्प का इस्तेमाल करेंगी, इस पर तस्वीर साफ नहीं है। मालूम हो कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद के मानसून सत्र में कृषि कानूनों से जुड़े विधेयकों के पारित होने के तत्काल बाद पार्टी शासित राज्यों से अपने सूबों में इन कानूनों को निष्प्रभावी बनाने का विकल्प तलाशने को कहा था। 


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