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राहुल की टीम का सोनिया गांधी ने तैयार कर दिया आधार, आवाज उठाने वाले नेताओं के सुर कमजोर पड़ने तय

पत्र विवाद में सबसे आगे रहने वाले गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं को फिलहाल कांग्रेस कार्यसमिति में कायम रखते हुए उनके लिए ज्यादा सवाल उठाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी गई।

By Tilak RajEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 09:20 PM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 09:20 PM (IST)
राहुल की टीम का सोनिया गांधी ने तैयार कर दिया आधार, आवाज उठाने वाले नेताओं के सुर कमजोर पड़ने तय
राहुल की टीम का सोनिया गांधी ने तैयार कर दिया आधार, आवाज उठाने वाले नेताओं के सुर कमजोर पड़ने तय

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस में चिट्ठी प्रकरण के बाद शुक्रवार को हुए बड़े संगठनात्मक बदलाव में सोनिया गांधी ने भले ही असंतोष की आवाज उठाने वाले नेताओं से पूरी तरह किनारा नहीं किया है। लेकिन फेरबदल के बाद कांग्रेस की जो नई टीम बनाई है उससे साफ है कि पार्टी में बड़े बदलाव की मांग करने वाले कई नेताओं की सियासी धार देर-सबेर कुंद पड़ जाएगी। शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली पर उठाए गए सवालों से पार्टी में मचे बवंडर के बीच संगठन में बदलाव की सोनिया गांधी की इस रूपरेखा से साफ है कि पत्र लिखने कई युवा नेताओं को, तो भविष्य की सियासत के हिसाब से साथ लेकर चलने की रणनीति को ध्यान में रखा गया है।

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पत्र विवाद में सबसे आगे रहने वाले गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं को फिलहाल कांग्रेस कार्यसमिति में कायम रखते हुए उनके लिए ज्यादा सवाल उठाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी गई। हालांकि, हकीकत यह भी है कि सोनिया गांधी की नई टीम में अब अधिकांश ऐसे चेहरे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद राहुल गांधी पार्टी की कमान संभालते हैं तो उन्हें अपनी टीम बनाने की मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।

वस्तुत: पार्टी के अंदरखाने ही दबी जुबान में यह कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी ने राहुल की दूसरी पारी के लिए कांग्रेस संगठन की टीम तैयार कर दी है। चुनाव के बाद राहुल अध्यक्ष बनते हैं तो आजाद और शर्मा सरीखे नेताओं के लिए पार्टी के प्रभावशाली ढांचे में बने रहना मुश्किल होगा। वैसे भी गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा का कार्यकाल अगले साल फरवरी में खत्म हो रहा है और मौजूदा स्थिति में पार्टी उनको फिर से वापस लाने की हालत में नहीं।

इसी तरह आनंद शर्मा का कार्यकाल भी मार्च 2022 में खत्म हो जाएगा, जबकि पत्र विवाद के दौरान मुखर रहने वाले कपिल सिब्बल और वीरप्पा मोइली जैसे वरिष्ठ नेताओं को नये बदलाव में जगह नहीं दी गई है। शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसे वाकपटु चेहरों को भी संभवत: इसी वजह से संगठन की जिम्मेदारी से दूर रखा गया है। जबकि हकीकत यह भी है कि सोनिया की नई टीम में रणदीप सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, जितेंद्र सिंह, राजीव सातव, मणिक्कम टैगोर, सुस्मिता देव, चेल्लाकुमार, सचिन राव जैसे चेहरे राहुल गांधी के करीबी कई नेता शामिल हैं।

कांग्रेस में बदलाव की मांग उठाने वाले नेताओं की धार इसीलिए भी कमजोर पड़ने के पुख्ता आसार हैं कि मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, अरविंदर सिंह लवली से लेकर दीपेंद्र हुड्डा जैसे अपेक्षाकृत युवा चेहरों को संगठन के नये ढांचे में सम्माजनक भूमिका दी गई है। वासनिक को महासचिव बनाए रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देने वाली छह सदस्यीय विशेष समिति तक में रखा गया है। कांग्रेस की राजनीति की मुख्यधारा में मिली जिम्मेदारी के बाद ऐसे नेता असंतुष्टों के साथ अब आगे मुखर आवाज उठाएंगे इसकी गुंजाइश नहीं दिखती।


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