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दो दिन में कांग्रेस के दो वरिष्‍ठ नेताओं का निधन, दोनों गांधी परिवार के भरोसेमंद

कांग्रेस ने 36 घंटे के भीतर दो वरिष्ठ नेताओं को खो दिया। सोमवार शाम को असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और बुधवार तड़के दिग्गज नेता अहमद पटेल का निधन हो गया। दोनों को गांधी परिवार का करीबी माना जाता था।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 01:29 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 01:29 PM (IST)
दो दिन में कांग्रेस के दो वरिष्‍ठ नेताओं का निधन, दोनों गांधी परिवार के भरोसेमंद
असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बाद दिग्गज नेता अहमद पटेल का निधन।

नई दिल्ली, जेएनएन। कांग्रेस के लिए बीते दो दिन में दो झटके लगे है। पार्टी ने दो वरिष्ठ नेताओं को खो दिया है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बाद दिग्गज नेता अहमद पटेल का निधन हो गया। दोनों ही नेताओं की गिनती कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद नेताओं में गिनती होती थी। वे गांधी-नेहरू परिवार के काफी करीबी माने जाते थे। दोनों ही नेता कोरोना से संक्रमित होने के बाद बीमार चल रहे थे। इसके चलते गोगोई का सोमवार शाम और पटेल का आज तड़के निधन हो गया।  

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2001 से 2016 के बीच असम के तीन बार मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई असम के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। कहा जाता है कि  उन्होंने राज्य की काफी मुश्किल समय में कमान संभाली थी और इसे धीरे-धीरे विकास के रास्ते पर ले आए। गोगोई ने जमीनी स्तर से उठकर कांग्रेस पार्टी में अपनी जगह बनाई थी। 2001 में मुख्यमंत्री चुने जाने से पहले वह कई संगठनात्मक पदों पर रहे और छह बार लोकसभा सांसद चुने गए। उन्होंने पार्टी को असम में लगातार तीन बार जीत दिलाई और 2016 में मुख्यमंत्री के रूप में पंद्रह साल पूरे किए। उन्हें 1971 में असम की युवा कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए इंदिरा गांधी द्वारा चुना गया था। 

गोगोई पहली बार 1971 में लोकसभा सांसद चुने गए

गोगोई पहली बार 1971 में लोकसभा सांसद चुने गए और संसद के निचले सदन में जोरहाट और कलियाबोर का प्रतिनिधित्व किया। एआइसीसी के संयुक्त सचिव के रूप में कार्य करने के बाद, उन्हें 1985 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव नियुक्त किया गया। वह 1986-90 तक असम कांग्रेस के अध्यक्ष थे और 1996 में इस पद पर फिर से नियुक्त हुए।

कांग्रेस ट्रब्लसूटर थे अहमद पटेल

अहमद पटेल को कांग्रेस का ट्रब्लसूटर माना जाता था। उन्होंने कई बार पार्टी को मुश्किलों से उबारा। 2008 में जब वाम दलों के समर्थन के बाद संप्रग सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, तो वह सरकार को बचाने के लिए पर्याप्त संख्या जुटाने में सफल रहे। पार्टी में उनकी जगह भरना लगभग असंभव है। कहा जाता है कि हर पार्टी उनके दोस्त थे। वह पर्दे के पीछे से काम करते थे। 

सोनिया गांधी के सबसे करीबी और विश्वासपात्र नेता

पार्टी के अहमद के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपीए शासनकाल के दौरान सभी मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को उनसे मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट लेना पड़ा था। राजीव गांधी ने जब उन्हें गुजरात कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए चुना तो वह काफी युवा थे। बाद में वह संसदीय सचिव के रूप में राजीव की टीम में शामिल हुए। सोनिया गांधी द्वारा पार्टी का कमान संभालने के बाद वे उनके सबसे करीबी विश्वासपात्र बन गए। राहुल गांधी ने अपने कार्यकाल में उन्हें कोषाध्यक्ष बनाया था।


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