जानिए क्यों कांग्रेस की दयनीय हालत पर चिंता जताने वाले नेता खुला विद्रोह करने से रहे हैं बच
संगठन संचालन की इस शैली पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा जा रहा कि इसकी वजह से आमलोगों में जहां कांग्रेस की पहुंच पर ब्रेक लगी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस में गरमाए चिठ्ठी विवाद को लेकर अंदरखाने सुलग रही चिंगारी ठंढ़ी नहीं पड़ी है लेकिन यह स्थिति कब तक बनी रहेगी कहना मुश्किल है। पार्टी संगठन और नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने वाले नेता राज्यों में कांग्रेसजनों को उन मुद्दों पर मुखर होने के लिए जागरूक कर रहे हैं जिसकी वजह से कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई है। पार्टी के इस वर्ग का साफ मानना है कि फिलहाल गांधी परिवार के नेतृत्व को सीधी चुनौती देना संभव नहीं है। मुद्दों पर धार बनाए रखने के लिए संयुक्त प्रयास तो हो सकता है लेकिन खुला विद्रोह नहीं।
यह चर्चा भी गरम है कि राज्यों के कई नेता और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता चर्चित पत्र में उठाए गए मुद्दों से सहमति जताते हुए कांग्रेस को हाशिए से उबारने की इस आवाज में अपना सुर मिला रहे हैं। लेकिन उतना ही सच यह भी है कि हाईकमान के करीबी इन नेताओं पर अब भी सवाल उठाने से नहीं चूक रहे हैं। हकीकत यह भी है कि पार्टी की दयनीय हालत पर चिंता जताने वाले नेता खुला विद्रोह करने से बच रहे हैं।
राजनीतिक कैरियर पर कांग्रेस में लग सकता है विराम
दरअसल इसकी वजह यह मानी जा रही कि गांधी परिवार के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठाया नहीं कि ऐसे नेताओं के राजनीतिक कैरियर पर कांग्रेस में तो विराम लग ही जाएगा। इस हकीकत की भी अनदेखी नहीं की जा रही कि शीर्ष संगठन से लेकर जिला स्तर तक पार्टी का वर्तमान ढांचा ही नहीं बल्कि कांग्रेसजनों का बड़ा वर्ग मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह जैसी बात सामने आने पर कांग्रेस में सुधार के मुद्दों से भी पीछे हट जाएगा। शायद इस रणनीति को भांपते हुए ही गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा सरीखे पत्र लिखने वाले नेताओं ने विवाद सामने आने के बाद गांधी परिवार के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी होने का बयान भी दिया।
पिछलग्गू या प्रभावशाली लोगों का वर्चस्व
कांग्रेस संगठन के संचालन की बड़ी खामियों का उल्लेख करते हुए पत्र विवाद से जुड़े एक दूसरे नेता ने कहा कि एआइसीसी से लेकर जिला व ब्लॉक स्तर तक संगठन के ढांचे में पिछलग्गू या प्रभावशाली लोगों का वर्चस्व है। नेताओं-कार्यकर्ताओं की यह सोच और उदासीनता इसीलिए ज्यादा गहरी हुई क्योंकि पिछले कई सालों से जिला अध्यक्ष की नियुक्ति भी सीधे कांग्रेस अध्यक्ष के स्तर पर होती है।
दिल्ली से नियुक्त होने वाला अध्यक्ष जिले में नेताओं-कार्यकर्ताओं की परवाह नहीं करता और कई जगहों पर तो संगठन उसका निजी साम्राज्य बन चुका है। इसका उदाहरण गिनाते हुए मध्य प्रदेश में कमल नाथ की उस बात का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि कई जिलों और ब्लॉक में तो उनके पास संगठन ही नहीं था। इसी तरह हरियाणा में छह साल से अधिक समय से संगठन बना नहीं मगर पिछले साल विधानसभा चुनाव हो भी गए।
नेता-कार्यकर्ताओं के बीच टूटा सीधा संवाद
संगठन संचालन की इस शैली पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा जा रहा कि इसकी वजह से आमलोगों में जहां कांग्रेस की पहुंच पर ब्रेक लगी है। वहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का नेताओं-कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद भी कई सालों से टूट गया है।
सेहत की चुनौतियों के बाद पिछले कई सालों से सोनिया गांधी का इस तरह की मेल-मुलाकातों का सिलसिला बंद हो चुका है। जबकि पार्टी में आम शिकायत है कि राहुल गांधी का दरवाजा भी संवाद के लिए विरले ही खुलता है और संगठन में प्रभावी नेता आम नेताओं-कार्यकर्ताओं को उन तक पहुंचने नहीं देते। कांग्रेस में बदलाव के लिए लिखे गए पत्र में इन मुद्दों की ओर साफ इशारा भी किया गया है। शायद इसीलिए इन मुद्दों पर अंदरखाने पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं की निगाहें और उत्सुकता सवाल उठाने वाले वरिष्ठ नेताओं के अगले कदमों की ओर लगी हैं। लेकिन संकेत यही है कि वह भी बहुत आगे बढ़ने के लिए फिलहाल तैयार नहीं है।