कांग्रेस नेतृत्व की दिशाहीनता से बढ़ रहा राज्य इकाइयों में अंदरूनी घमासान, नाकाफी साबित हो रही समाधान की कोशिश
पंजाब से लेकर राजस्थान और केरल व गुजरात जैसे मजबूत आधार वाले राज्यों में गुटबाजी चुनौती को बना रही गंभीर। पंजाब में कांग्रेस का घमासान तो इस मुकाम पर पहुंच गया है कि हाईकमान को वरिष्ठ नेताओं की समिति बनाकर समाधान तलाशने की मशक्कत करनी पड़ रही है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की दिशाहीनता और कमजोरी अब राज्यों में भी पार्टी की मुसीबत बढ़ा रही है। पंजाब और राजस्थान ही नहीं, गुजरात और केरल जैसे कांग्रेस के मजबूत आधार वाले राज्यों में पार्टी की अंदरूनी उठापटक और गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही। इसमें भी कांग्रेस नेतृत्व की दुविधा और निर्णायक फैसले लेने में देरी पार्टी की राजनीतिक चुनौती को लगातार गंभीर बना रही है। इसी कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद सरीखे चेहरे कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने में नहीं हिचक रहे हैं।
पंजाब में कांग्रेस का घमासान तो इस मुकाम पर पहुंच गया है कि हाईकमान को वरिष्ठ नेताओं की समिति बनाकर समाधान तलाशने की मशक्कत करनी पड़ रही है। अगले साल की शुरुआत में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी दूसरी बार सत्ता में वापसी की तैयारियां करने के बजाय अपने नेताओं के झगड़े में ही फंसी है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर ¨सिह पार्टी के विरोधी खेमे के नेताओं नवजोत ¨सिह सिद्धू से लेकर प्रताप ¨सिह बाजवा आदि को अपनी एकछत्र सियासत में प्रतिस्पर्धी बनने की गुंजाइश नहीं देना चाहते। वहीं, महत्वाकांक्षी सिद्धू अपनी लोकप्रियता के दम पर कैप्टन की बेलाग कप्तानी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसी कारण पंजाब कांग्रेस का घमासान चंडीगढ़ से दिल्ली तक पार्टी का सियासी तापमान बढ़ा रहा है।
इसी तरह 10 महीने पहले विद्रोह की दहलीज से लौटे सचिन पायलट और उनके समर्थक राजस्थान की सत्ता और संगठन में वापसी के लिए अब भी इंतजार कर रहे हैं। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब भी पायलट खेमे को दरकिनार रखने की रणनीति से पीछे नहीं हटे हैं। जाहिर तौर पर पायलट और उनके समर्थकों का धैर्य जवाब देने लगा है और वे खुलकर विद्रोह खत्म करने के लिए किए गए वादों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं। हाईकमान भी पायलट की अहमियत बहाल करने के पक्ष में है, मगर गहलोत राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की दुविधा का फायदा उठाते हुए मसले को लगातार टालते आ रहे हैं। जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद अब सचिन ने भी मौका देखकर गहलोत और हाईकमान दोनों को दबाव में लाने का सियासी दांव चल दिया है। कांग्रेस के असंतुष्ट समूह-23 के एक प्रमुख नेता कपिल सिब्बल ने इस स्थिति के लिए स्पष्ट तौर पर पार्टी में संवादहीनता को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि राजनीति में सबसे अहम है लोगों की बातें सुनना और जब कोई संगठन बातें सुनना बंद कर देता है तो उसका विकास वहीं रुक जाता है।
केरल में कांग्रेस हाईकमान ने जरूर वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथेला और पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी को झटका देकर वीडी सतीशन को विधानसभा में नेता विपक्ष और के. सुधाकरण को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राज्य में पार्टी के गिरते ग्राफ को थामने में कुछ तत्परता दिखाई है। लेकिन हकीकत यह भी है कि गुटों में बुरी तरह विभाजित केरल इकाई के बीच समन्वय बनाना अब भी आसान नहीं है और यहां से सांसद राहुल गांधी के लिए चेन्निथेला और चांडी को पूरी तरह दरकिनार करना संभव नहीं है।
गुजरात में 2017 के चुनाव में राहुल गांधी ने प्रदेश इकाई को एकजुट कर पार्टी को सत्ता की होड़ में जरूर ला दिया था, लेकिन आज इस राज्य में भी कांग्रेस अंदरूनी खींचतान का सामना कर रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा को बदले जाने की लंबे समय से चर्चा चल रही है तो राज्य के चार दूसरे दिग्गज एक दूसरे को पटखनी देने की कोशिश में संगठन को कमजोर कर रहे हैं। भरत सोलंकी अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर फिर प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं तो अर्जुन मोडवाडिया और सिद्धार्थ पटेल भी दावेदारी मजबूत करने में जुटे हैं। इस अंदरूनी गुटबाजी के बीच हाईकमान से निकटता के सहारे शक्ति ¨सह गोहिल भी इस होड़ में पीछे नहीं रहना चाहते।