‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का मतलब है देश में भ्रष्टाचार से आजादी
‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का मतलब दरअसल भ्रष्टाचार से आजादी है। उस तानाशाही से आजादी है जो किसी भी दल विशेष के आंतरिक लोकतंत्र का खात्मा करती हो।
[डॉ. शिव कुमार राय]। लोकतंत्र में सभी दल और सभी राजनीतिक विचारधाराएं आकर मिल जाती हैं। और यही लोकतंत्र की खासियत भी है और लोकतंत्र भी तभी मजबूत होता है। अब सवाल यह उठता है कि अगर लोकतंत्र में सभी राजनीतिक दलों की अहमियत है तो फिर ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का मतलब क्या है? दरअसल इसका मतलब भ्रष्टाचार से आजादी है। उस तानाशाही से आजादी है जो किसी भी दल विशेष के आंतरिक लोकतंत्र का खात्मा करती हो। देश या प्रदेश का नेतृत्व वंशानुगत आधार पर नहीं, बल्कि जमीन से जुड़े किसी व्यक्ति को योग्यता के आधार पर देना है। देश में सुशासन का एक नया मार्ग प्रशस्त करना है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ‘कांग्रेस’ बनकर यह साकार हो सकता है? किसी राज्यपाल की मदद से अगर राजनीतिक जोड़ तोड़ कर कर्नाटक में भाजपा की सरकार बन भी जाती तो क्या इसे ‘कांग्रेस मुक्त’ राज्य कहा जा सकता था?
सबसे बड़े दल के रूप में चुना
इसमें कोई दो मत नहीं कि कर्नाटक की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़े दल के रूप में चुना, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं दिया तो जोड़ तोड़ या फिर तथाकथित तौर पर कुछ विधायकों की आत्मा की आवाज पर लिए गए समर्थन के बदले यह बेहतर विकल्प नहीं होता कि भाजपा कर्नाटक विधानसभा में सार्थक विपक्ष की भूमिका निभाती? राज्यपाल के पद के दुरुपयोग की कहानी कांग्रेस के इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। देश में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार केरल में ईएमएस नंबूदरीपाद की अगुआई में 1957 में चुनी गई, लेकिन प्रदेश में कथित मुक्ति संग्राम की आड़ में उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया। आंध्र प्रदेश में पहली बार 1983 में एनटी रामाराव के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी, लेकिन 1984 में तेलुगु देसम पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री एनटी रामाराव को अपने इलाज के लिए विदेश जाना पड़ा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को बर्खास्त करवा दिया था।
सरकारों की गैर लोकतांत्रिक ढंग से हत्या
हालांकि बाद में रामाराव फिर मुख्यमंत्री के तौर पर बहाल हो गए। ऐसे एक दो नहीं, बल्कि कई उदाहरण हैं जब कांग्रेस पार्टी ने राज्य में विरोधी दल की सरकारों की गैर लोकतांत्रिक ढंग से हत्या की। देश की जनता कांग्रेस की गैर लोकतांत्रिक हरकतों से पूरी तरह वाकिफ है, देश की जनता कांग्रेस के शासन में हुए भ्रष्टाचार से अनभिज्ञ नहीं है, देश की जनता कांग्रेस की वंशानुगत राजनीति को भी समझती है और यही वजह है कि देश के एक बड़े हिस्से में जनता कांग्रेसियों की जोड़ तोड़ की राजनीति को पूरी तरह नकार चुकी है। आजादी के पहले कांग्रेस एक विचारधारा थी जिससे हर भारतीय जुड़ा हुआ था, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस एक राजनीतिक दल में तब्दील हुई और एक कांग्रेस पार्टी से कई कांग्रेस पैदा होती गईं।
नेहरू गांधी परिवार तक सिमटी कांग्रेस
देश की राजनीति में उस कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व बना रहा जिसकी कमान नेहरू गांधी परिवार तक सिमटकर रह गई। कांग्रेस में कोई भी फैसला पार्टी के अन्य सदस्यों की आम राय से नहीं, बल्कि नेहरू-गांधी परिवार की मर्जी से लिया जाता है। इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में विकास को एक नई दिशा दी है। सड़क मार्ग हो या फिर गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की बात, देश के हर गांव को बिजली से जोड़ने की यात्र हो या फिर गरीब की रसोई में गैस पहुंचाने की बात, ऐसे कामों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त है जिसने देश की राजनीति में सुशासन की एक नई परिभाषा लिखनी शुरू कर दी है। लेकिन अगर किसी भी राज्य में सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी अगर कांग्रेस के दिखाए रास्ते पर ही चलेगी तो फिर भ्रष्टाचार से मुक्त भारत का सपना अधूरा ही रह जाएगा।
[लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं]