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कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, रद हो भेदभावपूर्ण कानून

यह कानून भेदभाव करता है क्योंकि इसमें मनमाने तरीके से सिर्फ तीन देशों के छह धर्मावलिंबयों को शामिल किया गया है और एक धर्म और भाग को छोड़ दिया गया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 13 Dec 2019 08:50 PM (IST)Updated: Sat, 14 Dec 2019 01:29 AM (IST)
कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, रद हो भेदभावपूर्ण कानून
कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, रद हो भेदभावपूर्ण कानून

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती दी है। शुक्रवार को इन दोनों के अलावा भी कई याचिकाएं दाखिल हुईं। करीब आधा दर्जन दाखिल याचिकाओं में नागरिकता संशोधन कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद करने की मांग की गई है।

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समानता के अधिकार का उल्लंघन

जयराम रमेश की याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन कानून 2019 को समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला ठहराते हुए रद घोषित करे। इसके अलावा कोर्ट घोषित करे कि यह कानून 1985 के असम समझौते के खिलाफ है।

CAB अंतरर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन

यह कानून सुप्रीम कोर्ट के सरबानंद सोनोवाल में दिये गए फैसले का भी उल्लंघन करता है इसलिए इसे रद किया जाए। जयराम रमेश की यह भी मांग है कि कोर्ट घोषित करे कि नागरिकता संशोधन कानून अंतरर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करता है जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किये हैं।

जयराम की याचिका कपिल सिब्बल ने की तैयार

जयराम की यह याचिका कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जानेमाने वकील कपिल सिब्बल ने तैयार की है। याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान में प्राप्त बराबरी (अनुच्छेद 14) और जीवन (अनुच्छेद 21) के अधिकारों का सीधा उल्लंघन करता है। इस कानून को तैयार करने में संयुक्त संसदीय समिति की 7 जनवरी 2019 की रिपोर्ट की अनदेखी की गई है।

1985 को हुए असम समझौते का उल्लंघन

इसके अलावा यह कानून केंद्र सरकार, एएएसयू और एएजीएसपी के बीच 15 अगस्त 1985 को हुए असम समझौते में फारेन नेशनल इशू के मुद्दे का उल्लंघन करता है। याचिका मे कहा गया है कि इस कानून के जरिये मूल कानून में संशोधन करके अवैध रूप से देश में घुसे लोगों (घुसपैठिये) की परिभाषा बदल दी है। जिसमें से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसियों को बाहर कर दिया गया है। इसके अलावा इसमें इन धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए देश में निवास करने की अवधि घटा दी गई है।

भेदभावपूर्ण कानून

यह कानून भेदभाव करता है क्योंकि इसमें मनमाने तरीके से सिर्फ तीन देशों के छह धर्मावलिंबयों को शामिल किया गया है और विशेषतौर पर एक धर्म और भाग को छोड़ दिया गया है। इस कानून में भारत भूमि पर रहने वाले सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया गया है जबकि कानून के समक्ष समानता मौलिक अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका दाखिल

जयराम के अलावा तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, आसू, पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटीजन अगेंस्ट हेट, एहतशाम हाशमी और सिब्योसिस के ला स्टूडेंट, जन अधिकार पार्टी, असम में नेता विपक्ष देबबत्रा, वकील एमएल शर्मा और बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त देब मुखर्जी और उनके साथ दो आइएएस अधिकारियों सोम सुंदर बरुआ और अमिताभ पांडे ने भी शीर्ष अदालत में शुक्रवार को याचिकाएं दाखिल की। इसके अलावा केरल के राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने गुरुवार को ही याचिका दाखिल कर दी थी।


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