कांग्रेस के सामने चार पांच माह में ही सफल होने की चुनौती
चुनावी नतीजों के बाद जहां भाजपा के लिए भावी लड़ाई की मुश्किलें साफ दिख रही हैं वहीं तीन राज्यों में जीत के घोड़ों पर सवार कांग्रेस के लिए भी चुनौती बढ़ने वाली है।
नई दिल्ली, आशुतोष झा। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद जहां भाजपा के लिए भावी लड़ाई की मुश्किलें साफ दिख रही हैं वहीं तीन अहम राज्यों में जीत के घोड़ों पर सवार कांग्रेस के लिए भी अब चुनौती बढ़ने वाली है।
दरअसल 2019 की बड़ी लड़ाई में वक्त बहुत कम है और कांग्रेस को उसके अंदर ही अपनी प्रशासनिक और वादा निभाने की क्षमता का प्रदर्शन करना होगा। सबसे बड़ी कसौटी भी वही किसान ऋण माफी घोषणा बनेगी जो जीत का आधार भी बनी।
किसान ऋण माफी एक चुनाव जिताऊ फार्मूला साबित हो गया है। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस ने ऋण माफी की घोषणा की थी। उससे पहले पंजाब और कर्नाटक में भी यह बड़ा मुद्दा बना था। डर यह है कि कहीं यही फार्मूला संकट न बन जाए। बड़ी समस्या है वक्त की।
लोकसभा चुनाव में महज चार पांच महीने का वक्त है। जबकि इन राज्यों की तैयारियों और खजाने को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि इतने कम वक्त में क्रियान्वयन टेढ़ी खीर है। खासकर तब जबकि कांग्रेस शासित पंजाब और कर्नाटक का उदाहरण भी सामने है।
पंजाब में सरकार गठन को लगभग डेढ़ साल हो गया है और कार्यान्वयन अभी पहले चरण का पूरा हुआ है जिसमें केवल सीमांत किसान आते हैं। कर्नाटक में तो हाल यह है कि पिछले महीने ही खुद मुख्यमंत्री के क्षेत्र में एक किसान ने आत्महत्या कर ली और चिट्ठी लिखकर सरकार को दोषी ठहरा दिया।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार दावा कर रही है कि उसने ऋण माफी का वादा पूरा कर दिया है लेकिन वहां भी कई शर्ते जोड़ी गईं और आखिरकार लगभग बीस हजार करोड़ में ही वह ऋण माफी योजना पूरी हो गई जिसके लिए शुरूआत में लगभग 36 हजार करोड़ की जरूरत मानी जा रही थी। जाहिर है कि किसानों का एक बड़ा वर्ग मायूस हुआ होगा।
छत्तीसगढ़ में ऋण माफी के साथ साथ कृषि खरीद में समर्थन मूल्य के अलावा बड़ा बोनस देने का वादा किया गया है। ऐसे में ऋण माफी के लिए जरूरी लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ के अलावा लगभग 5 हजार करोड़ का बोझ आएगा। वहां करीब 75 लाख टन अनाज खरीद की संभावना है। सरकार इसके लिए कितना तैयार है यह दो महीने के अंदर कर दिखाना होगा।
मध्य प्रदेश में तो फिलहाल नौकरशाहों को ही पता नहीं है कि ऋण माफी का ढांचा क्या होगा। राजस्थान में लगभग साठ लाख किसानों की कर्जमाफी होनी है। कुल मिलाकर चुनाव में सफल और कार्यान्वयन में ढुलमुल कर्जमाफी योजना ही कांग्रेस की सफलता असफलता का मापदंड बनेगी और चाहे अनचाहे कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से पहले इस पर खरा उतरते दिखना होगा। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि कांग्रेस लोकसभा से पहले भी ऐसी घोषणा कर सकती है।
दूसरी चुनौती महागठबंधन को साधने की होगी। नतीजों ने यह तो साबित कर दिया कि कांग्रेस इसकी धुरी बन सकती है लेकिन इन राज्यों में कोई भी पासा पलटता दिखा तो परेशानी बढ़ेगी। राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह सपा और बसपा ने संकेत दिया है कि वह कांग्रेस की बजाय कोर्ट पर भरोसा करती है वह बहुत कुछ कहता है। दरअसल, उन्हें इंतजार है और रहेगा उस पल का जिसमें उनका पलड़ा हावी रहे। और अगर कांग्रेस शासित किसी भी राज्य में कोई भी गड़बड़ी हुई तो साथी दल मौका नहीं चूकेंगे।
यह सच्चाई है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की 65 में से 60 पर काबिज भाजपा को विधानसभा में कांग्रेस ने झटका दिया है लेकिन कांग्रेस को इसका भी अहसास होना चाहिए कि इन तीन राज्यों के साथ साथ पंजाब और कर्नाटक में भी उसकी ही सरकार है और सत्ताविरोधी लहर उनके खिलाफ भी लागू होगा। खासतौर से जिस तरह नेताओं की आपसी भिड़ंत दिखी है उसके बाद आशंका ज्यादा है। भाजपा के खिलाफ सीधी लड़ाई में जीत से कांग्रेस का नैतिक बल जाहिर तौर पर बढ़ा है। पर अब जवाबदेही का अंकुश भी लग गया है।