अपने लिए संकट खड़ा करने का पर्याय बनी कांग्रेस, राहुल और प्रियंका के वादों को नहीं मान कर रहे पार्टी के पुराने दिग्गज
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी तय करने को लेकर सियासी घमासान मच गया है। इस सियासी खींचतान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस खुद ही अपने लिए राजनीतिक संकट पैदा करने का पर्याय बन गई है। पढ़ें यह रिपोर्ट...
संजय मिश्र, नई दिल्ली। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी तय करने को लेकर मचे घमासान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस खुद ही अपने लिए राजनीतिक संकट पैदा करने का पर्याय बन गई है। बीते एक साल के दौरान पहले पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और अब राजस्थान में अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी तय करने में पार्टी हाईकमान की रणनीतिक चूक ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।राजस्थान में सचिन पायलट से किया गया वादा निभाने के प्रयास में कांग्रेस हाईकमान की साख दांव पर लग गई है और कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया के बीच पार्टी गहरे संकट में घिर गई है।
पंजाब में सियासी संकट देख चुकी है कांग्रेस
दिलचस्प है कि पिछले साल नवजोत सिंह सिद्धू से वादा निभाने के प्रयास में हाईकमान ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को आनन-फानन में हटाया और यहां से कांग्रेस का जो सियासी ग्राफ लुढ़का उसने चुनाव में पार्टी का सफाया कर दिया।
बड़े बदलाव की पहल पार्टी के लिए घातक
कांग्रेस नेतृत्व के इन दोनों फैसलों की सियासी पृष्ठभूमि से साफ है कि जमीनी राजनीतिक स्थिति का पूरी तरह से आकलन किए बिना बड़े बदलाव की पहल पार्टी के लिए घातक साबित हो रही है। इतना ही नहीं नई पीढ़ी के नेताओं को राज्यों का सिरमौर बनाने की हाईकमान के प्रयासों को पुराने धुरंधर और दिग्गज नेता सहजता से स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
पायलट की क्षमता पर संदेह नहीं
कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सचिन पायलट की क्षमता और राजनीतिक लोकप्रियता पर किसी को संदेह नहीं है। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस के ढांचे की सियासी वास्तविकता यही है कि अशोक गहलोत के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिलता। पार्टी के 108 में से करीब 90 से ज्यादा विधायकों का हाईकमान के फरमान को मानने से इन्कार करना इसका साफ सुबूत है।
कांग्रेस कमजोर और उसके क्षत्रप मजबूत हुए
कांग्रेस की राष्ट्रीय और राज्यों की सियासत में कमजोर हुई स्थिति के बाद उसके बचे खुचे चुनिंदा क्षत्रप मजबूत हुए हैं और आंख मूंदकर हाईकमान का फैसला स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। गहलोत तो शुरुआत में राजस्थान की सियासत छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे। सोनिया गांधी ने काफी प्रयास के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए उन्हें राजी किया।
पायलट का राजतिलक असंभव
गहलोत किसी सूरत में राजस्थान की कमान अपने प्रतिद्वंद्वी विरोधी सचिन पायलट को देने के लिए तैयार नहीं है। इस जानते हुए भी कांग्रेस नेतृत्व ने पायलट को कमान सौंपने की त्वरित पहल कर दी। हाईकमान की यह त्वरित पहल अकारण भी नहीं थी क्योंकि उसे मालूम था कि गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पायलट का राजतिलक लगभग असंभव होगा।
वादा पूरा करने का जोखिम उठाया
इस आशंका को देखते हुए ही नेतृत्व ने अपना वादा पूरा करने का जोखिम उठाया, मगर कांग्रेस की राजनीति में जादूगर कहे जाने वाले गहलोत और उनके समर्थक विधायकों ने हाईकमान के इस सियासी दांव को पढ़ लिया। राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन के लिए जिस तरह हाईकमान के सामने तीन शर्तें रखी गई हैं उससे साफ है कि गहलोत समर्थकों ने पायलट को सत्ता सौंपने के नेतृत्व के इरादे को फिलहाल नाकाम कर दिया है।
गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर संशय
इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस के अंदरूनी सियासी समीकरण पर गहरा असर होगा और गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर ही अब संशय गहरा गया है। यह भी साफ हो गया है कि चाहे पंजाब हो या राजस्थान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का अपने नेताओं से किया गया वादा निभाने का प्रयास कांग्रेस के गले की फांस बना है। राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजस्थान कांग्रेस में 2020 में हुई बगावत से सचिन पायलट को वापस लाते हुए उन्हें समय आने पर मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। इसी तरह का वादा इन दोनों शीर्ष नेताओं ने सिद्धू से भी किया था।
कई राज्यों में सत्ता हाथ से निकली
बीते सालों में कुछ प्रमुख राजनीतिक घटनाओं को देखा जाए तो कांग्रेस अपने राजनीतिक संकट के लिए बहुत हद तक खुद ही जिम्मेदार रही है। गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव में 17 सीटें जीतने के बावजूद हाईकमान से संवाद में देरी ने सूबे में पार्टी की लुटिया डूबो दी और भाजपा ने उसके जबड़े से सत्ता छीन ली। मणिपुर में दो-तीन सीटें बहुमत से कम रहने के बावजूद रणनीतिक प्रबंधन की कमजोरी ने उसे सत्ता से बेदखल कर दिया।
बगावत को कांग्रेस नहीं संभाल पायी
करीब ढाई साल पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत को कांग्रेस नहीं संभाल पायी और सूबे की सत्ता विधायकों के टूटने के साथ गंवा बैठी। अभी पिछले ही साल मेघालय में कांग्रेस के 13 विधायकों ने पूर्व सीएम मुकुल संगमा के नेतृत्व में पाला बदलकर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसी महीने गोवा में पार्टी के 11 में से आठ विधायक भाजपा में शामिल हो गए।
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