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मोदी सरकार के आरटीआइ कानून में बदलाव के खिलाफ मुखर हुए सूचना आयुक्त

आरटीआइ कानून में बदलाव करने के सरकार के प्रस्तावित कदम के खिलाफ अब केंद्रीय सूचना आयोग के अंदर से आवाज उठी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 09:35 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 12:26 AM (IST)
मोदी सरकार के आरटीआइ कानून में बदलाव के खिलाफ मुखर हुए सूचना आयुक्त
मोदी सरकार के आरटीआइ कानून में बदलाव के खिलाफ मुखर हुए सूचना आयुक्त

नई दिल्ली, प्रेट्र। आरटीआइ कानून में बदलाव करने के सरकार के प्रस्तावित कदम के खिलाफ अब केंद्रीय सूचना आयोग के अंदर से आवाज उठी है। सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने आरटीआइ कानून में किसी भी संभावित संशोधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सीआइसी आरके माथुर के छुट्टी पर होने के कारण उन्होंने वरिष्ठतम सूचना आयुक्त यशोव‌र्द्धन आजाद को पत्र लिखकर अपना विरोध जताया है। 19 जुलाई को लिखे पत्र में आचार्युलू ने आजाद से कहा है कि वे सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून में प्रस्तावित संशोधन के मुद्दे पर सभी आयुक्तों की बैठक बुलाकर विवादास्पद विधेयक वापस लेने के लिए आयोग की तरफ से सरकार को पत्र लिखें। उन्होंने इस पत्र की प्रति अपने सभी समकक्ष सूचना आयुक्तों को भी भेजी है।

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प्रेट्र के पास आचार्युलू के पत्र की प्रति मौजूद है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त (सीआइसी) माथुर चूंकि अवकाश पर हैं, इसलिए आचार्यलू की मांग पर आजाद और अन्य सूचना आयुक्तों द्वारा कदम उठाया जाना अभी बाकी है। अपने पत्र में आचार्युलू का साफ कहना है कि प्रस्तावित सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2018 से आरटीआइ कानून 2005 का मकसद ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने इस विधेयक को भारतीय संविधान की मौलिक विशेषता संघवाद की भावना का उल्लंघन करने वाला भी बताया।

सूत्रों के मुताबिक, पत्र में आचार्युलू ने केंद्रीय सूचना आयोग से आग्रह किया है कि वह विवादास्पद आरटीआइ संशोधन विधेयक वापस लेने के लिए सरकार को आधिकारिक तौर पर पत्र भेजे। कानून में संशोधन का विरोध करने वाले सूचना आयुक्त का कहना है कि केंद्र सरकार सीआइसी (मुख्य सूचना आयुक्त) का दर्जा सीईसी (मुख्य चुनाव आयुक्त) से कम मानती है।

आरटीआइ कानून के तहत सूचना हासिल करना संवैधानिक अधिकार है जबकि संशोधन विधेयक के अनुसार ऐसा नहीं है। यदि सीईसी जो संविधान के अनुच्छेद 324 (1) के अंतर्गत एक अधिकार लागू करता है तो वह एक संवैधानिक संस्था है। फिर संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत मौलिक अधिकार लागू करने वाला सीआइसी कैसे एक गैर संवैधानिक संस्था हो जाता है?

आचार्युलू के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर व्यवस्था दी है कि मताधिकार और आरटीआइ दोनों ही मौलिक अधिकार हैं। इस प्रकार सीआइसी और सीईसी का दर्जा बराबर है। उनका कहना है कि संसद ने आरटीआइ एक्ट 2005 के जरिये सीआइसी की निश्चितता एवं निरंतरता सुनिश्चित की है। अब कार्यपालिका इस संशोधन विधेयक के माध्यम से संसद एवं राज्य विधानसभाओं के हाथ से शक्तियां हड़पना चाहती है।


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