राजस्थान के राजनीतिक संकट को देख सीएम बघेल ने असंतुष्ट विधायकों को बांटे पद, सरकार को किया मजबूत
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने पिछले दिनों राज्य के वैधानिक निकायों में विभिन्न पदों के लिए कुल 47 विधायकों को नियुक्त किया है।
हिमांशु शर्मा, रायपुर। राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सचिन पायलट के पार्टी से इस्तीफे के साथ ही उनके समर्थक विधायक भी पार्टी छोड रहे हैं। इसी तरह का घटनाक्रम मध्यप्रदेश में हुआ था, जिसके बाद वहां सरकार बदल गई थी। राजस्थान में चल रही इस सियासी उठापटक के बीच छत्तीसगढ की कांग्रेस सरकार अपने आप को मजबूत करने में लगी रही। यहां पिछले पांच दिनों के दौरान कांग्रेस ने अपने खेमे के 69 विधायकों में से अधिकांश को संतुष्ट रखने के लिए पद देने की नीति पर काम किया। यहां इस दौरान 47 विधायकों को निगम- मंडलों में नियुक्ती के साथ ही संसदीय सचिवों के रूप में नियुक्त कर संतुलन बनाए रखने की कोशिश हुई। इसे लेकर विपक्ष ने सरकार को आंतरिक गुटबाजी की वजह से संकट में भी बताया, लेकिन दूसरे मायने में राज्य सरकार ने अपनी स्थिति को इस प्रक्रिया के द्वारा मजबूत किया है।
राजस्थान के राजनीतिक संकट के दौरान राज्य में विधायकों को पद मिले
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने पिछले दिनों राज्य के वैधानिक निकायों में विभिन्न पदों के लिए कुल 47 विधायकों को नियुक्त किया है, जिनमें संसदीय सचिव, बोर्ड और आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद शामिल हैं। एक तरफ राजस्थान में इस बीच राजनीतिक संकट चलता रहा और दूसरी ओर छत्तीसगढ मे सरकार ने अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए यह प्रक्रम किया। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का यह कहना है कि यह महज इत्तेफाक ही है कि राजस्थान के राजनीतिक संकट के दौरान राज्य में विधायकों को पद मिले। यह प्रक्रिया पहले से ही चल रही थी और संयोगवश सूची इस दौरान जारी हुई।
भाजपा से सत्ता छीनकर बनी तीनों जगह कांग्रेस सरकार
बता दें कि छत्तीसगढ सहित मध्य प्रदेश और राजस्थान में इससे पहले भाजपा की सरकार थी। तीनों राज्यों में एक साथ चुनाव संपन्न हुए थे और तीनों जगहों पर भाजपा से सत्ता छीनकर कांग्रेस सत्ता में पहुंची थी, लेकिन समय के साथ मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार चली गई और अब वहां भाजपा की सरकार आई है। मध्यप्रदेश जैसा ही घटनाक्रम राजस्थान में भी जारी है। इन दोनों राज्यों के विपरीत छत्तीसगढ में मजबूत नेतृत्व और जनाधार वाली कांग्रेस सरकार है। यहां 90 सीटों में से 69 सीटों पर कांग्रेस के विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। जो पिछले तीन दिनों में खुद को मजबूत करने के उपाय के रूप में सामने आए हैं। राजस्थान में पार्टी का आंतरिक सत्ता संघर्ष। वर्तमान में नवीनतम प्रवेशकों सहित सभी 69 विधायक राज्य सरकार में विभिन्न पद संभाल रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके 12 मंत्रिमंडल के सहयोगी भी इसमें शामिल हैं। यानी राज्य में सत्ताधारी दल के सभी विधायक किसी न किसी पद पर हैं।
अंतर्कलह को शांत करने के लिए बांटे गए विभाग
राजस्थान के राजनीतिक संकट के दौरान जब छत्तीसगढ कांग्रेस में विधायकों को पद दिए जा रहे थे उस दौरान भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं और पूर्व मंत्रियों की तरफ से प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। बृजमोहन अग्रवाल ने बयान जारी करते हुए कहा था कि राज्य में कांग्रेस के अंदर अंतर्कलह है और इसे ही शांत करने के लिए पद बांटे ज रहे हैं। इसी तरह का बयान अजय चंद्राकर की ओर से भी आया था। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता शैलेष नितिन त्रिवेदी ने दोनों नेताओं के दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कांग्रेस एक मजबूत संगठन है और यहां इस तरह की कोई स्थिति नहीं है, जिसका झूठा दावा विपक्ष द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने उल्टे कटाक्ष करने वाले नेताओं को आडे हाथों लेते हुए कहा कि जिन दो नेताओं के द्वारा कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी कलह बताई जा रही है वहीं दोनों भाजपा में दो अलग-अलग गुट बनाने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें कांग्रेस संगठन की मजबूती पर ऊंगली उठाने की जरूरत नहीं है।