सस्ते कच्चे तेल ने दी मोदी सरकार को राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर राहत
कच्चे तेल की कीमतें अगर 80 डॉलर के स्तर पर रह जाता है तो इससे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंचने से सरकार ने राजनीतिक और आर्थिक दोनो मोर्चो पर राहत की सांस ली है। हाल के तीन हफ्तों में क्रूड की कीमतों में 21 फीसद की गिरावट ने विपक्षी दलों से महंगे पेट्रोल व डीजल के मुद्दे पर छिन लिया है। दूसरी तरफ इसी वजह से राजकोषीय घाटा के लक्ष्य 3.3 फीसद हासिल करने में भी सरकार को अब सहूलियत होगी। वित्त मंत्रालय मानने लगा है कि अगर क्रूड चालू वित्त वर्ष के शेष महीनों के दौरान मौजूदा स्तर पर भी बना रहे तब भी राजकोषीय प्रबंधन की काफी मुश्किलें दूर हो जाएंगी।
क्रूड 20 फीसद सस्ता होकर 70 डॉलर से भी नीचे आया
अगर घरेलू बाजार में पेट्रोल व डीजल की कीमतों को देखे तो 16 अक्टूबर, 2018 के बाद से दिल्ली में ही पेट्रोल 4.94 रुपये और डीजल में 3.11 रुपये सस्ता हो चुका है। जल्द ही चुनाव में जाने वाले राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि) में भी विगत 25 दिनों में पेट्रोल व डीजल की कीमतों में औसतन इतनी ही गिरावट आई है। यह एक वजह है कि अभी तक इन राज्यों में पेट्रोल व डीजल कीमतें कोई बड़ा मुद्दा बनती नहीं दिख रही है।
25 दिनों के दौरान पेट्रोल 4.94 रुपये तो डीजल 3.11 रुपये हुआ सस्ता
पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारी उम्मीद जता रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें फिलहाल इसी स्तर पर बनी रहेंगी। इस नरमी के पीछे अमेरिका के क्रूड उत्पादन में खासी बढ़ोतरी के साथ ही ईराक व इंडोनेशिया जैसे दूसरे अहम क्रूड उत्पादक देशों की तरफ से उत्पादन को बढ़ाना देना भी है।
जनवरी, 2018 के बाद से ही क्रूड की बढ़ती कीमतें राजग सरकार और सरकार के रणनीतिकारों को परेशान करती रही हैं। तेल कंपनियों की तरफ से लगातार हो रही वृद्धि के असर को कम करने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को 4 अक्टूबर, 2018 को तेल कंपनियों के साथ मिल कर 2.50 रुपये की राहत देने का ऐलान करना पड़ा। कई राज्यों ने भी अपनी तरफ से शुल्क में कटौती दे कर 2.50 रुपये की राहत अलग से दी।
भारत ने पिछले वर्ष अपनी जरुरत का 83 फीसद क्रूड आयात किया था। ऐसे में इसकी कीमतों में होने वाला थोड़ा भी बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था को दूर तक प्रभावित करता है। ज्यादा डॉलर खर्च होने की वजह से भारत के चालू खाते में घाटा की स्थिति खराब होती है जिसका असर महंगाई दर पर भी पड़ता है। रुपया भी कमजोर होता है। क्रूड अगर वित्त वर्ष के शेष महीनों में 80 डॉलर या इससे ज्यादा के स्तर पर रह जाता है तो इससे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य 3.3 फीसद को हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।