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सिर्फ वार्ता के लिए किसान नेताओं के साथ बातचीत के मूड में नहीं है केंद्र, जानें क्‍या चाहती है सरकार

कोरोना के भय और लगातार कमजोर पड़ते आंदोलन के कारण कृषि कानून विरोधी किसान संगठन वापसी का रास्ता तो ढूंढने लगे हैं लेकिन जिद नहीं छोड़ी है। सरकार को वार्ता का प्रस्ताव भेजने के साथ कानून को रद करने की मांगों को भी दोहराया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 22 May 2021 07:59 PM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 06:55 AM (IST)
सिर्फ वार्ता के लिए किसान नेताओं के साथ बातचीत के मूड में नहीं है केंद्र, जानें क्‍या चाहती है सरकार
लगातार कमजोर पड़ते आंदोलन के कारण कृषि कानून विरोधी किसान संगठन वापसी का रास्ता तो ढूंढने लगे हैं

नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना के भय और लगातार कमजोर पड़ते आंदोलन के कारण कृषि कानून विरोधी किसान संगठन वापसी का रास्ता तो ढूंढने लगे हैं, लेकिन जिद नहीं छोड़ी है। सरकार को वार्ता का प्रस्ताव भेजने के साथ कानून को रद करने की मांगों को भी दोहराया है। वहीं केंद्र सरकार सिर्फ वार्ता के लिए बातचीत के मूड में नहीं है। सरकार का मानना है कि संगठन के नेता खुले दिमाग से आएं और कानून की अड़चनों को दूर करने के लिए उचित विचार करें तो सरकार कभी भी बातचीत कर सकती है।

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इसलिए लंबा खिंचा आंदोलन 

दिल्ली की सीमा पर हरियाणा में धरने पर बैठे पंजाब के कृषि कानून विरोधी किसान संगठनों की जिद की वजह से आंदोलन छह महीने खिंच चुका है। धरना स्थलों पर कोरोना संक्रमण से बचाव का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होने दिया जा रहा है। आंदोलन कर रहे किसान नेता टेस्टिंग, इलाज, आइसोलेशन और टीकाकरण तक को राजी नहीं हैं।

क्‍या कहते हैं आंकड़े 

दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों को न तो कोरोना से बचाव के उपाय करने की हिदायत दी जा रही है और न ही उन्हें टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि धरना स्थल से लगातार आवाजाही और पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह धरना प्रदर्शन की वजह से राज्य में कोरोना संक्रमण की दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक हो चुकी है।

किसान नेताओं की जिद परी भारी 

कोविड-19 की दूसरी लहर के गंभीर होने के साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और राज्य के गृह मंत्री अनिल विज ने किसान संगठनों से वार्ता करने और आंदोलन को वापस लेने का आग्रह किया था। उस समय जिद पर अड़े किसान नेताओं ने कोरोना वायरस जैसे किसी संक्रामक रोग से ही इन्कार करते हुए किसानों को आंदोलन के लिए प्रोत्साहित किया।

बढ़ रही कोरोना से मौतें 

धरना दे रहे आंदोलनकारियों के बीच कोरोना संक्रमण से ग्रसित किसान अपने गांवों को लौटे, जिससे इसका प्रसार और तेजी से हुआ। इन दोनों राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण की रफ्तार नगण्य रही है, जिससे कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

ठोस प्रस्ताव रखे जाने के बाद बातचीत 

केंद्र सरकार के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने स्पष्ट बताया कि किसान संगठनों की ओर से कोई ठोस प्रस्ताव रखे जाने के बाद ही वार्ता की पेशकश पर विचार किया जा सकता है। सरकार की ओर से एक दर्जन बार वार्ता हो चुकी है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। जिन कानूनों को लेकर किसान संगठनों को आपत्ति है, उसके एक-एक प्रविधान पर चर्चा की जा सकती है। लेकिन इसके लिए किसान नेताओं को खुले दिल से वार्ता में आने की हामी भरनी होगी।

जिद के चलते सरकार से बढ़ी दूरी 

किसान नेताओं की जिद का आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट की गठित समिति के समक्ष भी पेश होने से मना कर दिया। कृषि सुधार के कानूनों पर आपत्ति जताने दिल्ली आए किसान संगठनों की मांगों की फेहरिस्त लगातार लंबी होती रही, जिसमें कई गैरवाजिब मांगें शामिल की गई। प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर वार्ता की पेशकश के साथ ही अब उन्होंने अपने आंदोलन को तेज करने की धमकी भी दी है। आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर 26 मई को राष्ट्रीय विरोध दिवस के रूप में मनाएंगे। 


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