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अनुच्छेद 370 पर अपने फैसले को केंद्र सरकार ने सही ठहराया, कहा- दुरुपयोग कर रहे थे आतंकी-अलगाववादी

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देश के बाहरी शत्रुओं के समर्थन से आतंकवादी और अलगाववादी अनुच्छेद- 370 का गलत फायदा उठा रहे थे।

By Manish PandeyEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 10:25 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 07:12 AM (IST)
अनुच्छेद 370 पर अपने फैसले को केंद्र सरकार ने सही ठहराया, कहा- दुरुपयोग कर रहे थे आतंकी-अलगाववादी
अनुच्छेद 370 पर अपने फैसले को केंद्र सरकार ने सही ठहराया, कहा- दुरुपयोग कर रहे थे आतंकी-अलगाववादी

नई दिल्ली, पीटीआइ। केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कई प्रावधानों को रद करने के अपने फैसले को सही ठहराया। सरकार ने कहा कि देश के बाहरी शत्रुओं के समर्थन से आतंकवादी और अलगाववादी इसका गलत फायदा उठा रहे थे। राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए को खत्म करने के फैसले को भी सरकार ने सही ठहराया है।

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अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के प्रावधानों को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले को विभिन्न याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पांच सदस्यीय पीठ 14 नवंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

इन याचिकाओं के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 को उसके मूल रूप में, संविधान में अस्थायी व्यवस्था करार दिया गया था। इसे 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किए जाने के बाद संविधान का हिस्सा बनाया गया था।

न देश और न ही जम्मू-कश्मीर के हित में

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र की तरफ से कहा गया है कि वर्षो से यह देखा जा रहा था कि अनुच्छेद 370 के तहत मौजूदा व्यवस्था और अनुच्छेद 370 (1)(घ) के तहत जारी प्रेसिडेंशियल आदेशों द्वारा भारत के संविधान में किए गए बदलावों और सुधारों के जरिए जम्मू-कश्मीर का देश के साथ पूर्ण विलय का रास्ता आसान होने की जगह और जटिल होते जा रहा था। यह न तो देश के हित में था और न ही जम्मू-कश्मीर राज्य के हित में।

राज्य में अलगाववादी मानसिकता ने जन्म लिया

केंद्र सरकार ने कहा कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए अस्थायी प्रावधान होने के बावजूद सात दशकों तक बने रहे। इससे न सिर्फ जम्मू-कश्मीर का विकास बाधित हुआ, बल्कि वहां के लोगों को समय-समय पर देश के संविधान में होने वाले बदलावों और कानून में संशोधन का लाभ भी नहीं मिल पाया। इससे राज्य में अलगाववादी मानसिकता ने जन्म लिया। इसी को देखते हुए ही राष्ट्र हित और देश की एकता और सुरक्षा के लिए दोनों अनुच्छेदों को खत्म करने का फैसला किया गया था।


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