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किसान संगठनों से वार्ता आज, सरकार को समाधान की उम्मीद, अमित शाह से मिले नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल

सरकार भी किसानों के आंदोलन को जल्द-से-जल्द समाप्त कर इस समस्या से निजात पाने की कोशिश में है। सरकार की ओर से लगातार यह बात कही जा रही है कि वह किसानों की शंका के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।

By Arun kumar SinghEdited By: Published: Sun, 03 Jan 2021 08:50 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 06:46 AM (IST)
किसान संगठनों से वार्ता आज, सरकार को समाधान की उम्मीद, अमित शाह से मिले नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल
गृह मंत्री अमित शाह से उनके आवास पर चर्चा की

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। कृषि सुधार के लिए संसद के पिछले सत्र में पारित कृषि कानूनों को हटाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी को लेकर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों और सरकार के लिए सोमवार का दिन काफी अहम होने वाला है। समझौता वार्ता का यह सातवां दौर होगा, जिसमें दोनों पक्ष सर्वसम्मत समाधान पर पहुंचने की कोशिश करेंगे। हालांकि, किसान संगठनों को भड़काने वाले कुछ नेता और एनजीओ वार्ता की सफलता में बाधा बन सकते हैं। 

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छुट्टी के बावजूद कृषि मंत्रालय में हुई उच्च स्तरीय बैठक 

ऐसे लोग पिछली वार्ता में सरकार द्वारा दो प्रमुख मांगें मान लिए जाने को कमतर बताकर बातचीत में रोड़ा डालने की फिराक में हैं। इसके बावजूद सरकार हर हाल में सोमवार की चर्चा में समाधान तक पहुंचने की कोशिश में है। केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने उम्मीद जताई कि प्रस्तावित बातचीत से समाधान निकल सकता है और कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन खत्म हो सकता है। उन्होंने कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों पर किसानों को भड़काने का भी आरोप लगाया। कृषि मंत्रालय में छुट्टी के बावजूद रविवार को उच्च स्तरीय बैठक हुई। 

किसान संगठनों और उनके समर्थकों की मुश्किलें बढ़ीं 

कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और रेल व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों से वार्ता करने से पहले गृह मंत्री अमित शाह से उनके आवास पर चर्चा की। दिनभर थम-थमकर हुई बारिश के चलते किसान संगठनों के बीच कोई औपचारिक बैठक नहीं हो सकी। शनिवार की रात से ही हो रही बारिश और कड़ाके की ठंड ने दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चा लगाए किसान संगठनों और उनके समर्थकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इससे किसान संगठनों पर आंदोलन को लंबा नहीं खींचने का दबाव होगा। कठिन परिस्थितियों को देखते हुए आंदोलन को समाप्त किया जा सकता है। 

सरकार भी किसानों के आंदोलन को जल्द-से-जल्द समाप्त कर इस समस्या से निजात पाने की कोशिश में है। सरकार की ओर से लगातार यह बात कही जा रही है कि वह किसानों की शंका के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। संसद के पिछले सत्र में कृषि सुधार के तीन कानून पारित किए गए हैं। इसके तहत मंडी कानून में सुधार करते हुए किसानों को उनकी उपज को मंडी के बाहर भी बेचने की आजादी दी गई है। दूसरा कानून कांट्रैक्ट खेती का है, जिसमें छोटे-बड़े किसान किसी कंपनी अथवा व्यक्ति के साथ अनुबंध करके मूल्य का पहले ही निर्धारण कर खेती कर सकते हैं। तीसरा कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का है। इससे कृषि प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों और अन्य बड़े उपभोक्ताओं को भरपूर खरीद की छूट मिल गई है। इसका लाभ भी किसानों को मिलेगा। 

किसान संयुक्त मोर्चा ने अपनाई दबाव की रणनीति

सरकार के साथ सोमवार को पूर्व निर्धारित बैठक के बावजूद किसान संयुक्त मोर्चा ने दबाव की रणनीति अपनाई है। इसके तहत आगामी आंदोलन की रूपरेखा एक बार फिर घोषित कर दी गई है। संयुक्त किसान मोर्चा अपनी आगामी रणनीति के तहत छह जनवरी को किसान ट्रैक्टर मार्च निकालेगा, जबकि 15 जनवरी तक भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का घेराव करने का फैसला किया गया है। 23 जनवरी को सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर सभी राज्यों में राज्यपाल भवन तक मार्च किया जाएगा। 26 जनवरी को पूरी ताकत से राजधानी दिल्ली में किसानों की परेड निकालने की योजना है। यह योजना तब लागू की जाएगी, जब सोमवार को होने वाली बैठक में कोई नतीजा नहीं निकलेगा। 


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