बोफोर्स मामले में सीबीआइ ने किया था दिल्ली हाई कोर्ट को गुमराह, RTI में खुलासा
1437 करोड़ की डील भारत व स्वीडन की हथियार कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 24 मार्च 1986 में हुई थी।
नई दिल्ली, पीटीआइ। एक भाजपा नेता व अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि बोफोर्स मामले में सीबीआइ ने दिल्ली हाई कोर्ट को गुमराह किया था। एजेंसी ने अदालत में कहा था कि जांच में 250 करोड़ रुपये खर्च हो गए, जबकि आरटीआइ के जवाब में बताया गया कि जांच का खर्च 4.77 करोड़ था, इसमें देश व विदेश में वकीलों को दी फीस भी शामिल है।
गौरतलब है कि अजय अग्रवाल ने भाजपा के टिकट पर कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली से 2014 में चुनाव लड़ा था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बोफोर्स मामले में सीबीआइ ने हाई कोर्ट में गलत बयानी की। अग्रवाल की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2005 को स्वीकृत की थी। उसी साल 31 मई को हाई कोर्ट ने यूरोप में रह रहे उद्योगपतियों व हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ आरोप खारिज कर दिए थे।
सीबीआइ 90 दिनों के भीतर फैसले को चुनौती देने में नाकाम रही, तब अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका कहना है कि 2011 में आरटीआइ के एक जवाब में उन्हें बताया गया कि जांच में कुल 4.77 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज आरएस सोढ़ी ने हिंदुजा बंधुओं श्रीचंद, प्रकाशचंद व गोपीचंद समेत बोफोर्स कंपनी के खिलाफ लगाए आरोप खारिज करने के साथ सीबीआइ को इस बात के लिए लताड़ लगाई कि जनता की गाढ़ी 250 करोड़ की कमाई को खर्च करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं किया जा सका।
गौरतलब है कि 1437 करोड़ की डील भारत व स्वीडन की हथियार कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 24 मार्च 1986 में हुई थी। 16 अप्रैल 1987 को स्वीडन के रेडियो ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि डील को सिरे चढ़ाने के लिए भारत में राजनेताओं के साथ नौकरशाहों को भारी भरकम रिश्वत दी गई है। 22 जनवरी 1990 को सीबीआइ ने मामला दर्ज करके जांच शुरू की थी। मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी।
यह भी पढ़ें: सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या सरकार खोल सकती है बोफोर्स केस