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सीबीआइ विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पांच दिसंबर तक के लिए टली अगली सुनवाई

गुरुवार की सुनवाई से यह भी साफ हो गया कि हाल-फिलहाल आलोक वर्मा को राहत नहीं मिलने वाली है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Thu, 29 Nov 2018 12:20 PM (IST)Updated: Thu, 29 Nov 2018 04:09 PM (IST)
सीबीआइ विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पांच दिसंबर तक के लिए टली अगली सुनवाई
सीबीआइ विवाद: सुप्रीम कोर्ट में पांच दिसंबर तक के लिए टली अगली सुनवाई

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा से कामकाज वापस लिए जाने के आदेश को सही ठहराते हुए गुरुवार को सरकार ने कहा कि चयन और नियुक्ति में अंतर होता है। तीन सदस्यीय समिति सीबीआइ निदेशक के लिए नामों का चयन करती हैं और पैनल तैयार करके सरकार को भेजती है उसमें किसे चुनना है यह सरकार तय करती है और सरकार ही नियुक्ति करती है। चयन को नियुक्ति नहीं माना जा सकता। वहीं गुरुवार की सुनवाई से यह भी साफ हो गया कि हाल-फिलहाल आलोक वर्मा को राहत नहीं मिलने वाली है।

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सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने वर्मा से काम वापस लेने से पहले समिति से मशविरा न किये जाने के आरोपों का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही। दिन भर चली सुनवाई में वकीलों और न्यायाधीशों के बीच कई तरह के सवाल जवाब हुए। बात रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े जाने पर कार्रवाई तक पहुंची लेकिन प्रक्रिया और कानून की दुहाई देने वालों का कहना था कि चयन समिति की इजाजत के बगैर किसी भी परिस्थिति में सीबीआइ निदेशक पर कार्रवाई नहीं हो सकती। उसके दो साल के तय कार्यकाल में कटौती नहीं हो सकती।

सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा ने निदेशक पद का कामकाज वापस लिये जाने के आदेश को चुनौती दी है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और गैर सरकारी संस्था कामनकाज ने वह आदेश रद करने की मांग की है। मामले पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ सुनवाई कर रही है।
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आलोक वर्मा का ट्रांसफर नहीं किया
केके वेणुगोपाल ने सीबीआइ निदेशक के ट्रांसफर से पहले चयन समिति से इजाजत लेने के कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि वर्मा का स्थानांतरण नहीं किया गया है वह अपने दिल्ली के घर में रह रहे हैं। उनसे कामकाज वापस लिये जाने के आदेश को सही ठहराते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार की प्राथमिक चिंता लोगों का सीबीआइ में भरोसा बनाए रखने की थी। सीबीआइ के दो शीर्ष अधिकारियों ने एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए थे। सीबीआइ के बारे मे लोगों की राय खराब हो रही थी इसलिए सरकार ने दखल देने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) को सीबीआइ की पूरी निगरानी का अधिकार है। सीवीसी का यह अधिकार सिर्फ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच तक ही सीमित नहीं है बल्कि सीवीसी कानून मे दिये गए सभी मामलों की निगरानी का अधिकार है।

कोर्ट में यूं चले सवाल जवाब
आलोक वर्मा के वकील फली एस नारिमन की दलील - सीबीआइ निदेशक का कानूनन दो साल का तय कार्यकाल होता है। सेवानिवृति के बावजूद उसमें कटौती नहीं हो सकती। चयन समिति की पूर्व इजाजत के बगैर उसे ट्रांसफर भी नहीं किया जा सकता। वर्मा से कामकाज छीनना ट्रांसफर से बदतर है। सरकार ऐसा नहीं कर सकती।

जस्टिस केएम जोसेफ- आप कह रहे हैं कि सीबीआइ निदेशक पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती। मान लो कोई व्यक्ति रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़ा जाता है, तो क्या तब भी कार्रवाई नहीं हो सकती।

नारिमन - नहीं। पहले चयन समिति या कोर्ट के पास जाकर इजाजत लेनी होगी।

जस्टिस केएम जोसेफ - अगर कोई रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो क्या ऐसे व्यक्ति को एक भी मिनट पद पर रहने देना चाहिए?

नारिमन - फिर भी कार्रवाई नहीं हो सकती। कमेटी नहीं है तो कोर्ट मौजूद है कोर्ट के पास जाएं।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई - खड़गे के वकील कपिल सिब्बल से - आप कह रहे हैं कि समिति की इजाजत के बगैर किसी भी स्थिति में अपवाद तक में सीबीआइ निदेशक को नहीं छुआ जा सकता?

कपिल सिब्बल - हां। कमेटी से पूछे बगैर नहीं छू सकते।

राजीव धवन - कानूनन कमेटी से पूछे बगैर निदेशक को नहीं छू सकते। यह कानून में खामी है और इस खामी को सरकार या सीवीसी दूर नहीं कर सकती। इस खामी को सिर्फ कोर्ट दूर कर सकता है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई - अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से - सीवीसी ने कानून के तहत आदेश जारी किया क्या सरकार ने उसी के आधार पर आदेश (वर्मा के बारे में) किया था या अलग से।

केक वेणुगोपाल - सीवीसी को सीबीआइ की निगरानी का अधिकार है और उसी पर आदेश जारी हुआ।

जस्टिस केएम जोसेफ - वेणुगोपाल से - क्या कैबिनेट सचिव ने (वर्मा पर लगाए गए आरोपों के बारे में) आदेश जारी करने से पहले सोच विचार किया था?

केके वेणुगोपाल - केन्द्र सरकार को ए या बी से कोई लेना देना नहीं। जांच का काम सीवीसी का है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई - राकेश अस्थाना के वकील मुकुल रोहतगी से - आज आप कुछ नहीं बोल रहे।

रोहतगी से पहले कामनकाज संस्था के वकील दुष्यंत दवे बोल पड़े - ये तो इस इस सबसे खुश हैं

वकील मुकुल रोहतगी - हम पीडि़त हैं हमने आलोक वर्मा के खिलाफ शिकायत वापस लेने से मना कर दिया था इसीलिए हमारे खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई।


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