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मोदी-चिनफिंग की सितंबर में होने वाली दूसरी वार्ता में कारोबार होगा बड़ा मुद्दा

चीन के साथ कारोबार को लेकर भारत की सबसे बड़ी दिक्कत व्यापार घाटे का संतुलन है जो पूरी तरह से चीन के साथ है। भारत अनौपचारिक वार्ता में आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा जोर दे रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 08:27 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 08:27 PM (IST)
मोदी-चिनफिंग की सितंबर में होने वाली दूसरी वार्ता में कारोबार होगा बड़ा मुद्दा
मोदी-चिनफिंग की सितंबर में होने वाली दूसरी वार्ता में कारोबार होगा बड़ा मुद्दा

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ होने वाली दूसरी अनौपचारिक वार्ता का प्रमुख एजेंडा आर्थिक होगा। वुहान (चीन) में अप्रैल, 2018 में इन दोनो नेताओं के बीच हुई वार्ता ने सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों पर जिस तरह से तनाव को दूर करने का काम किया है उसी तरह से माना जा रहा है कि सितंबर, 2019 में होने वाली दूसरी वार्ता द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों से जुड़े तमाम अड़चनों को दूर करने वाला साबित हो सकता है।

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सोमवार को बीजिंग में भारत व चीन के विदेश मंत्रियों की अगुवाई में दोनो पक्षों के बीच हुई वार्ता में भी द्विपक्षीय कारोबार से जुड़े कई मुद्दों को लेकर सहमति बनी है। मोदी व चिनफिंग की बैठक से पहले दोनो देशों के प्रतिनिधियों के बीच इस बारे में अभी और बातचीत होगी।

मोदी और चिनफिंग के बीच पहली अनौपचारिक वार्ता के बाद दोनो नेताओं ने अपनी-अपनी सेनाओं को साफ निर्देश दिया था कि वे आपसी भरोसे को मजबूत करे। उसके कुछ ही महीने पहले डोकलाम में दोनो देशों की सेनाएं तकरीबन ढ़ाई महीने तक एक दूसरे के आमने-सामने रही थी, लेकिन उक्त बैठक के बाद भारत व चीन के बीच तकरीबन 3500 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति बनी हुई है।

उस बैठक के बाद चीन ने भारत से चावल समेत कुछ अन्य उत्पादों के आयात के लिए अपने बाजार भी खोले हैं, लेकिन इसका अभी तक द्विपक्षीय कारोबार के संतुलन पर असर नहीं पड़ा है। यही वजह है कि भारत दूसरी अनौपचारिक वार्ता में आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा जोर दे रहा है।

चीन की तरफ से भी साफ संकेत है कि वह भारत की तरफ से उठाये जाने वाले मुद्दों को लेकर संवेदनशील है। दरअसल, अमेरिका के साथ बढ़ते आर्थिक तनाव की वजह से भी चीन भारत की आर्थिक चिंताओं को लेकर अब ज्यादा गंभीर है।

चीन के साथ कारोबार को लेकर भारत की सबसे बड़ी दिक्कत व्यापार घाटे का संतुलन है जो पूरी तरह से चीन के साथ है। वर्ष 2018-19 में दोनो देशों के बीच तकरीबन 95.5 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ था और इसमें 57 अरब डॉलर का व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में था। यानी भारत से जितना आयात चीन करता है उससे 57.86 अरब डॉलर का निर्यात वह भारत को करता है। इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान व्यापार संतुलन 51.72 अरब डॉलर का था।

चालू वर्ष के पहले दो महीनों की बात करें तो भारत से चीन को होने वाले निर्यात में और चीन से होने वाले आयात में कमी आई है। मई में इनके द्विपक्षीय कारोबार में 5 फीसद की गिरावट हुई है। हालांकि व्यापार संतुलन पर बहुत फर्क नहीं पड़ा है। भारत से चीन होने वाले निर्यात में भारी वृद्धि के बगैर व्यापार घाटे की स्थिति में बहुत फर्क नहीं दिख रहा है।

भारत चीन के बीच लंबित कारोबारी मुद्दे

1. भारतीय आइटी कंपनियों के लिए चीन में कई तरह के अवरोध

2. अनुमति के बगैर भारत के लिए चावल, सोयाबीन जैसे खाद्य उत्पादों का निर्यात करना आसान नहीं

3. द्विपक्षीय कारोबार में भारतीय रुपये के इस्तेमाल पर चीन नहीं है तैयार

4. अपनी आइटी कंपनी हुवई के लिए चीन चाहता है अनुकूल माहौल

5. चीन से आयातित इस्पात व लौह अयस्क पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाने पर विचार।

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