नई खरीद नीति में राज्यों के कमजोर कंधों पर होगा किसानों की आय दुगुनी करने का बोझ!
खरीद नीति की सफलता का पूरा दारोमदार राज्यों के कमजोर कंधों पर डाल दिया गया है।
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में सरकार की ओर से नित नई पहल हो रही है, जिसमें उपज की नई खरीद नीति सबसे अहम है। लेकिन खरीद नीति की सफलता का पूरा दारोमदार राज्यों के कमजोर कंधों पर डाल दिया गया है।
फसलों की खरीद के लिए जिन विकल्पों को रखा गया, उनमें से किसी एक को चुनने में राज्यों के पसीने छूट सकते हैं। किसानों से खरीद करने के लिए राज्यों की सरकारी मशीनरी, फौरी तौर पर रिवाल्विंग फंड, गोदाम और मजबूत मंडी तंत्र की जरूरत पड़ेगी।
अनाज, दलहन और तिलहन खरीद में राज्यों को अपने खजाने से भी मदद देनी होगी। तिलहन खरीद में काम आने वाली भावांतर भुगतान योजना में न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार भाव के अंतर की रकम को सरकारें वहन करेंगी। यानी इसमें केंद्र व राज्यों की भागीदारी पचास-पचास फीसद की होगी। बाजार में तात्कालिक धनराशि के लिए राज्यों को ही रिवाल्विंग फंड का गठन करना होगा। हालांकि बाद में केंद्र इसका समायोजन करेगा।
खाद्यान्न उत्पादक राज्यों में होने गेहूं व चावल की खरीद चालू होने के बाद मंडियों की हालत पतली रहती है। मंडियों का बुनियादी ढांचा चरमरा जाता है। उसी समय तिलहन व दलहन फसलों की खरीद भी होगी। एमएसपी का लाभ सभी किसानों को देने की सरकारी प्रतिबद्धता के चलते खरीद केंद्रों की संख्या और बढ़ानी पड़ेगी।
इक्का दुक्का राज्यों को छोड़कर बाकी जगहों पर यह करना आसान नहीं होगा। जैसे तैसे खरीद कर भी ली गई तो खरीद किये गये खाद्यान्न के भंडारण की समस्या गंभीर चुनौती बनकर उभरेगा। अधिकतर राज्यों की मंडियां खस्ताहाल हैं, जहां न शेड और न ही पक्के प्लेटफार्म। इन मंडियों में उपज की क्वालिटी जांचने वाले प्रयोगशाला नहीं है, जहां इनका परीक्षण किया जा सकेगा।
दलहन फसलों की खरीद के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) लागू होगी, जो पूरी तरह केंद्र पोषित है। इसमें पहले से ही नैफेड जैसी सरकारी एजेंसी दालों की खरीद कर रही है। राज्य भी इसे अपनी तरह से अपना सकते हैं। वे इसकी जगह मूल्य अंतर भुगतान योजना (पीडीपीएस) को भी अपनाने के लिए स्वतंत्र होंगे।
इस योजना में केंद्र व राज्य दोनों की हिस्सेदारी होगी। इसमें तिलहन फसलों की खरीद की जाएगी। तिलहन बेचने वाले किसानों का पंजीकरण पहले से ही कराना होगा। माना जा रहा है कि पीएसएस से सीमित किसानों को ही फायदा मिल सकेगा, जबकि पीडीपीएस का दायरा विस्तृत होगा। इससे ज्यादा किसानों को लाभ मिलेगा। हालांकि इस योजना की निगरानी का पुख्ता इंतजाम करना होगा।
सरकारी खरीद में निजी क्षेत्रों का यह कोई पहला मामला नहीं है। धान की खरीद में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में पिछले कई सालों से प्राइवेट कंपनियां खरीद कर रही हैं। हालांकि उनकी कार्य प्रणाली और उसके प्रभावों का आकलन अभी तक नहीं कराया गया है। तिलहन की खरीद के लिए प्रायोगिक तौर पर आठ जिलों में निजी कंपनियां खरीद करने उतरेंगी। उनके साथ हुए करार का विस्तृत ब्यौरा बाहर नहीं आया है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इसकी गाइड लाइन जल्दी ही आ जाएगी।