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नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष की आज होने वाली बैठक से किनारा कर सकती है बसपा

नागरिकता संशोधन कानून पर होने वाली विपक्ष की बैठक से तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बैठक में शामिल होने से पहले ही इन्कार कर चुकी हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 11:50 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 12:22 AM (IST)
नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष की आज होने वाली बैठक से किनारा कर सकती है बसपा
नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष की आज होने वाली बैठक से किनारा कर सकती है बसपा

नई दिल्ली, प्रेट्र। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के मुद्दे पर विपक्षी दलों की सोमवार को होने वाली बैठक से बहुजन समाज पार्टी (BSP) किनारा कर सकती है। इस बैठक में विपक्षी दल सीएए को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और विश्वविद्यालयों में हिंसा के मुद्दे पर विमर्श करने वाले हैं।

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ममता बनर्जी ने बैठक में भाग लेने से साफ किया मना

सूत्रों बताते हैं कि कांग्रेस के साथ मतभेद के कारण बसपा विपक्षी दलों की बैठक में अपना प्रतिनिधि भेजने से परहेज कर सकती है। वहीं, इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न सिर्फ विपक्ष की बैठक से खुद को अलग किया बल्कि उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में साफ शब्दों में कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगी। इसी दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की थी।

ममता ने कहा था कि मैंने दिल्ली में 13 जनवरी को सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है क्योंकि मैं वाम और कांग्रेस द्वारा कल पश्चिम बंगाल में की गई हिंसा का समर्थन नहीं करती हूं।

राष्ट्रपति कोविंद से मिला था बसपा का संसदीय दल

पिछले साल 17 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के खिलाफ जब विपक्षी दल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले थे, तब बसपा उनके साथ थी। हालांकि, इसके अगले दिन बसपा का संसदीय दल भी इस मुद्दे पर राष्ट्रपति कोविंद से मिला था और बातचीत की थी।

गौरतलब है कि कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की शनिवार को कांग्रेस मुख्यालय में बैठक हुई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नागरिकता संशोधन कानून को भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी कानून करार देते हुए दावा कहा था कि इसका मकसद भारत के लोगों को धार्मिक आधार पर बांटना है।


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