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चुनावी बांड ने खोई चमक, राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में कतराने लगे हैं लोग

सरकार को उम्मीद है कि चुनाव नजदीक आने पर चुनावी बांड की बिक्री एक बार फिर रफ्तार पकड़ सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 07:39 PM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 12:00 AM (IST)
चुनावी बांड ने खोई चमक, राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में कतराने लगे हैं लोग
चुनावी बांड ने खोई चमक, राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में कतराने लगे हैं लोग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयास संभवत: फीके पड़ रहे हैं। चुनावी बांड के जरिए चंदा देने की मुहिम शुरू करने की कोशिश रफ्तार पकड़ती नहीं दिख रही है। कम से कम चुनावी बांडों की बिक्री के आंकड़ों का ताजा रुख तो यही संकेत कर रहा है। अब तक चार चरणों में हुई बिक्री में न केवल बिकने वाले बांडों की संख्या में कमी आई है बल्कि उसकी राशि भी कम हो रही है।

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सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ सुथरा बनाने के लिए साल 2017-18 के बजट में चुनावी बांड स्कीम की घोषणा की थी। मार्च में पहले चरण में बांडों की बिक्री शुरु हुई और जुलाई में इसका चौथा चरण पूरा हुआ। चारों चरणों के बिक्री आंकड़े बताते हैं कि बांडों की बिक्री की संख्या लगातार घट रही है।

मार्च 2018 में कुल 520 बांडों की बिक्री हुई जिससे सरकार को 222 करोड़ रुपये मिले, लेकिन बांडों की यह संख्या जुलाई तक आते आते 82 तक सीमित रह गई है। सूत्रों का कहना है कि इस अवधि में केवल 32.5 करोड़ रुपये के ही बांडों की बिक्री हुई है।

चार चरण में 470.80 करोड़ रुपये के कुल 1062 बांडों की हुई बिक्री

सरकार ने चुनावी बांडों की बिक्री की जिम्मेदारी देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक को सौंपी है। अब तक हुए चार चरणों में कुल 470.80 करोड़ रुपये की राशि के ही बांडों की बिक्री हुई है।

संसद में सरकार की तरफ से पेश आंकड़ों के मुताबिक पहले तीन चरण (मार्च, अप्रैल, मई 2018) में 438.3 करोड़ रुपये के कुल 980 बांडों की बिक्री हुई, लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने केवल 959 बांडों को ही भुनाया था जिनसे उन्हें 427.3 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ।

सूत्र बताते हैं कि चौथे चरण में बिकने वाले 82 बांडों में अधिकांश बांड बड़ी राशि यानी दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये वाले हैं। एक हजार और दस हजार रुपये की राशि वाले बांडों की संख्या नगण्य रही है। जहां तक बांड खरीदारी में आगे रहने वाले शहरों की बात है तो उसमें मुंबई और दिल्ली का नाम शामिल है।

वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक चुनावी बांडों की बिक्री संख्या में कमी यह बता रही है कि राजनीतिक पार्टियों को बांडों के जरिए चंदा देने में कतराने लगे हैं। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि चुनाव नजदीक आने पर चुनावी बांड की बिक्री एक बार फिर रफ्तार पकड़ सकती है।

सरकार ने बजट में घोषणा करने के लगभग एक साल बाद जनवरी 2018 में इसकी अधिसूचना जारी की थी। मार्च में 520 बांडों के मुकाबले अप्रैल की बिक्री में 114.90 करोड़ रुपये के 256 बांड बिके। जबकि मई में हुए तीसरे चरण में 101.40 करोड़ रुपये की राशि के 204 बांडों की बिक्री हुई।


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