राम मंदिर निर्माण के लिए जल्दबाजी नहीं दिखाएगी भाजपा, ऐेसे होगा विपक्ष पर वार
भाजपा को इसका भी अहसास है कि राम मंदिर पर ज्यादा चुप्पी का भी सही संदेश नहीं जाएगा। बल्कि विपक्षी दलों को ही अवसर मिलेगा।
आशुतोष झा,नई दिल्ली। राम मंदिर निर्माण के लिए संघ परिवार से लेकर संत समाज तक की ओर से बढ़ाए जा रहे दबाव में भाजपा नहीं आएगी। हालांकि खुद भाजपा के एजेंडे में राममंदिर के लिए सारे विकल्प शामिल हैं जिसमें कानून भी है, लेकिन इसमें कोई जल्दबाजी नहीं होगी। हर पहलू पर विचार करने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा। फिलहाल तो कोर्ट की अगली सुनवाई की ही प्रतीक्षा होगी। उससे पहले संघ के कोटे से ही सांसद बने राकेश सिन्हा की ओर से संभावित प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए दूसरे राजनीतिक दलों और खासकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश होगी।
राकेश सिन्हा के प्रस्तावित निजी विधेयक से हो सकता है आकलन
राम मंदिर को लेकर पिछले घोषणापत्र में यूं तो भाजपा ने बहुत संक्षिप्त दो लाइन में अपनी बात रखी थी। लेकिन उसी दो लाइन में सभी विकल्प भी खोल कर रख दिए थे। घोषणापत्र में कहा गया था- 'राममंदिर निर्माण के लिए भाजपा संविधान के दायरे में सभी रास्तों की तलाश करेगी।'
सवाल यही है कि क्या अध्यादेश या कानून संविधान के दायरे में होगा? भाजपा सूत्रों की मानें इसकी जांच परख हो रही है, लेकिन इससे परे राजनीतिक तौर पर देखें तो जनमत की भी परख हो रही है। ध्यान रहे कि एक तरफ जहां शिवसेना जैसे दलों ने दबाव बढ़ाया है।वहीं राजग के अंदर ही कई दल ऐसे हैं जो अध्यादेश या कानून के मुद्दे पर साथ नहीं खड़े होंगे। पर सधे कदमों से विपक्षी दलों को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।
कांग्रेस व दूसरे दलों में चुप्पी है। एक दिन पहले ही संघ ने यह कहकर कांग्रेस को भी सामने खड़ा कर दिया है कि 1994 में कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर विवादित स्थान पर राम मंदिर की पुष्टि होती है तो वह मंदिर का समर्थन करेगी। अब कांग्रेस को खुलकर भाजपा के साथ खड़ा होना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने राममंदिर के लिए निजी विधेयक पेश करने की बात कही है। जाहिर है कि वह शीतकालीन सत्र में ही इसे पेश करेंगे।
गौरतलब है कि निजी विधेयक के जरिए कानून का भी प्रावधान है। हालांकि यह बहुत सरल नहीं है और न ही तत्काल इसपर चर्चा होती है। बहरहाल, यह विपक्षी दलों को घेरने का हथियार जरूर होगा। राकेश सिन्हा के पीछे खड़ी होकर ही भाजपा कांग्रेस व कांग्रेस के साफ्ट हिंदुत्व को भी कठघरे में खड़ी करेगी और इसका आकलन भी करेगी कि अगर राममंदिर पर अध्यादेश या कानून लाने की नौबत हुई तो क्या अड़चनें आ सकती हैं।
भाजपा को इसका भी अहसास है कि राम मंदिर पर ज्यादा चुप्पी का भी सही संदेश नहीं जाएगा। बल्कि विपक्षी दलों को ही अवसर मिलेगा। फिर भी भाजपा जनवरी में होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का इंतजार करेगी। वैसे यह तो मानकर चला जा सकता है कि अबकी बार भाजपा के घोषणापत्र मे राम मंदिर की विवेचना थोड़े विस्तार में होगी।