विपक्षी खेमे के वैचारिक मतभेद जनता के सामने रखेगी भाजपा, पार्टी को यूपी चुनाव से पहले ही एकता के प्रयास ध्वस्त होने की उम्मीद
बैठक में तृणमूल और वाम दल के नेता भले मौजूद थे लेकिन कुछ महीने पहले तक वामदलों की ओर से ही कहा जा रहा था कि भाजपा से बड़ी दुश्मन तृणमूल है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा के बीच किस तरह तनातनी है यह किसी से छिपा नहीं है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भाजपा के खिलाफ विपक्षी लामबंदी की कोशिशें शुरू हो गई हैं। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बुलावे पर लगभग डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों ने इसकी मंशा भी जता दी है और एकजुटता का दावा भी हो रहा है। वहीं भाजपा इन दलों के आपसी द्वंद्व और वैचारिक मतभेद को सार्वजनिक कर जनता के सामने यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि यह एकजुटता व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए है। वैसे भाजपा का मानना है कि एकजुटता के दावे की पोल उत्तर प्रदेश चुनाव तक ही खुल जाएगी।
गौरतलब है कि शुक्रवार को सोनिया की वर्चुअल बैठक में 2024 चुनाव में एकजुटता की बात की गई थी जो अभी लगभग तीन साल दूर है। उससे पहले उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव सामने खडे़ हैं। रोचक यह है इस बैठक से सपा प्रमुख अखिलेश दूर रहे और बसपा और आम आदमी पार्टी को कांग्रेस की ओर से कोई आमंत्रण ही नहीं मिला। भाजपा के एक पदाधिकारी के अनुसार पंजाब चुनाव के मद्देनजर आप को नहीं बुलाया गया है। यह व्यक्तिगत हित की सोच से अलग नहीं है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव बहुत अहम हैं। लेकिन वहां सपा और बसपा जैसे दलों की ओर से कांग्रेस को साथ रखने की बात नहीं हो रही है। वैसे भी सपा, कांग्रेस और बसपा दोनों के साथ तालमेल बिठाकर देख चुकी है और उसे घाटे के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ।
बैठक में तृणमूल और वाम दल के नेता भले मौजूद थे लेकिन कुछ महीने पहले तक वामदलों की ओर से ही कहा जा रहा था कि भाजपा से बड़ी दुश्मन तृणमूल है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा के बीच किस तरह तनातनी है यह किसी से छिपा नहीं है।
अगर वैचारिक मतभेद की बात की जाए तो इन दलों के बीच अनुच्छेद 370 को लेकर शिवसेना का रुख बाकी विपक्षी दलों से पूरी तरह अलग हैं। सीएए जैसे मुद्दे पर भी कई दलों में मतभेद हैं। यह बताने की भी कोशिश होगी कि संप्रग की पहली सरकार में जब वामदल समर्थन दे रहे थे तो किस तरह आर्थिक नीतियों को लेकर सरकार बेबस थी। सुधार के सारे प्रयास औंधे मुंह पड़े थे। इस तथाकथित गठबंधन में कई दल ऐसे हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के समर्थन में थे और वहीं कांग्रेस समेत कुछ दल सवाल खड़े कर रहे थे।
कृषि सुधार के मुद्दे पर संसद में शिवसेना और यहां तक कि राकांपा ने भी कुछ शर्तों के साथ समर्थन दिया था जबकि कांग्रेस ने विरोध किया था। बाद के दिनों में शरद पवार भी इसकी पैरवी करते रहे हैं लेकिन राजनीतिक रुख देखकर बयान बदलते भी रहे हैं।
हाल के दिनों में देश के कई हिस्सों में केंद्रीय मंत्रियों की जन आशीर्वाद यात्रा चल रही है। नेताओं ने इन मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि आने वाले दिनों में पूरी तैयारी के साथ विपक्षी एकजुटता पर हमला होगा और यह बताया जाएगा कि यह कोशिश सिर्फ व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए हो रही है।