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महादायी के पानी में भी छिपा है कर्नाटक का राजनीतिक नतीजा

दस दिन पहले ही येद्दयुरप्पा ने हुबली में जनता के सामने घोषणा की थी कि महादायी नदी के जरिए हुबली-धारवाड़ और आस पास के तीन चार जिलों में पेय जल की आपूर्ति होगी।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sun, 31 Dec 2017 11:23 PM (IST)Updated: Sun, 31 Dec 2017 11:23 PM (IST)
महादायी के पानी में भी छिपा है कर्नाटक का राजनीतिक नतीजा
महादायी के पानी में भी छिपा है कर्नाटक का राजनीतिक नतीजा

आशुतोष झा, नई दिल्ली। नए साल की शुरूआत में सबसे बड़ी चुनावी लड़ाई कर्नाटक में लड़ी जाने वाली है और कांग्रेस ने एक बड़ी चूक कर दी है। पड़ोसी राज्य गोवा की नदी से पेय जल की आपूर्ति के भाजपा के राजनीतिक पैंतरे का विरोध करना भारी पड़ सकता है। कहीं ऐसा न हो कि इस फैसले से प्रभावित होने वाले कर्नाटक की लगभग बीस सीटों पर महादायी का पानी ही कांग्रेस और जनता दल एस को ले डूबे।

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कर्नाटक में जिस तरह कांग्रेस के अंदर शीर्ष स्तर पर खींचतान है उसके बाद यूं तो भाजपा के लिए फिर से सत्ता में आने की संभावना जताई जा रही है लेकिन खुद भाजपा भी मानती है कि लड़ाई बहुत आसान नहीं है। सूत्रों का मानना है कि भाजपा के अंदर भी खेमा सक्रिय है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उसी ढीले पेंच को कसने की कवायद में जुटे हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार और प्रदेश अध्यक्ष बीएस येद्दयुरप्पा लगातार यात्रा के जरिए जनसंपर्क में भी जुटे हैं ताकि जातिगत समीकरण भी दुरुस्त रहे। वहीं तर्क और व्यवहारिकता के आधार पर कांग्रेस और जदएस के बीच समझौते की कोई संभावना न होने के बावजूद इसे अभी तक दोनों पार्टी के शीर्ष से नकारा नहीं गया है। जो भी हो, चुनाव से चार महीने दूर खड़े कर्नाटक में फिलहाल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही लड़ाई में है। ऐसे में मानकर चला जा सकता है हर छोटे मुद्दे को भी बड़ा बनाने की कोशिश हो सकती है। लेकिन उत्तर कर्नाटक मे अकेले महादायी मामला ही बड़ा उलटफेर कर सकता है।

गौरतलब है कि दस दिन पहले ही येद्दयुरप्पा ने हुबली में जनता के सामने घोषणा की थी कि महादायी नदी के जरिए हुबली-धारवाड़ और आस पास के तीन चार जिलों में पेय जल की आपूर्ति होगी। उन्होंने कहा था कि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसके लिए सैद्धांतिक सहमति जताई है। इस घोषणा ने ही पूरे क्षेत्र में लहर पैदा कर दी थी। दरअसल यह कर्नाटक के सुखाड़ वाले क्षेत्रों में शामिल है। राजनीतिक तौर पर यह कितना अहम है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इससे लगभग 18-20 सीट सीधे तौर पर प्रभावित हैं। फिलहाल इनमे से सिर्फ तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पास है और कुछ जदएस के पास। यह भी ध्यान रहे कि यह लिंगायत प्रभाव का क्षेत्र है और यही कारण है कि 2008 में येद्दयुरप्पा इस क्षेत्र से भाजपा के लिए 17 सीटें जीतने मे सफल हुए है। 2013 में येद्दयुरप्पा भाजपा से चले गए थे। अब जबकि येद्दयुरप्पा फिर से भाजपा का चेहरा हैं और महादायी फैक्टर को भुनाने की कोशिश हो रही है तो जाहिर है कि भाजपा सभी 20 सीटों पर कब्जा करना चाहेगी।

यही कारण है कि कांग्रेस ने गोवा के प्रदेश अध्यक्ष शांताराम नाइक के जरिए पैंतरा चला। नाईक ने मनोहर पर्रिकर की ओर से मांडवी नदी से कर्नाटक के लिए पानी छोड़ने के फैसले का विरोध किया और इसे गोवा विरोधी करार दिया। उनका कहना था कि जब मामला ट्रिब्यूनल में है तो मुख्यमंत्री का यह रुख गोवा का केस कमजोर करेगा। हालांकि इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि नाईक का यह बयान कर्नाटक में कांग्रेस की मदद के लिए था। पर इसका उल्टा असर नहीं होगा यह भी नहीं कहा जा सकता है। इसमें शक नहीं कि भाजपा कांग्रेस के इस रुख को खूब भुनाएगी और वह समझाने में सफल हुई कि कांग्रेस के कारण ही पानी आने में देर हो रही है तो महादायी का पानी कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है।

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