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तमाम झंझावटों से छुटकारा पाने के लिए अजीत पवार को लगा भाजपा का साथ ज्यादा सुरक्षित

कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना की साझा सरकार के बजाय अजीत पवार को भाजपा के साथ जाना ज्यादा सुरक्षित लगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 02:38 AM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 02:38 AM (IST)
तमाम झंझावटों से छुटकारा पाने के लिए अजीत पवार को लगा भाजपा का साथ ज्यादा सुरक्षित
तमाम झंझावटों से छुटकारा पाने के लिए अजीत पवार को लगा भाजपा का साथ ज्यादा सुरक्षित

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। शनिवार की सुबह देवेंद्र फड़नवीस के साथ उपमुख्यमंत्री के रूप में अजीत पवार का शपथ लेना एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम तो है ही, पवार के परिवार में चल रही अंतर्कलह के दर्शन भी इसने करा दिए।

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सुप्रिया ने फेसबुक पर लिखा – परिवार और पार्टी दोनों टूट गईं

इस घटना के बाद सामने आए सुप्रिया सुले के बयान और उनकी डबडबाई आंखें बहुत कुछ बोल गईं। शरद पवार की पुत्री एवं अजीत पवार की चचेरी बहन सुप्रिया ने अपने फेसबुक पर लिखा – परिवार और पार्टी दोनों टूट गईं। इसके कुछ देर बाद उन्होंने फिर लिखा – इतना बड़ा धोखा जीवन में नहीं खाया। जब वह मीडिया के सामने आईं तो उनका गला भरा हुआ था और आंखें पनियायी हुई थीं।

पवार के परिवार में अंतिम शब्द शरद पवार के ही होते थे

अब तक माना जाता था कि पवार के परिवार में अंतिम शब्द शरद पवार के ही होते हैं। लेकिन आज यह मिथक टूट गया। माना जा रहा है कि अजीत पवार लंबे समय से चाचा शरद पवार की राकांपा में घुटन महसूस कर रहे थे। आज उन्होंने इस घुटन से बाहर आने की हिम्मत जुटा ही ली।

शरद पवार ने 2004 में अजीत पवार की इच्छाओं को कुचला

अजीत पवार स्वभाव से महत्त्वाकांक्षी और दबंग हैं। जिस बारामती विधानसभा सीट से पहले शरद पवार स्वयं चुनाव लड़ते थे, उसी बारामती से वह सात बार चुनाव जीत चुके हैं। 2004 में जब राकांपा की सीटें कांग्रेस से तीन ज्यादा आईं तो गठबंधन की शर्तों के अनुसार अजीत पवार ने मुख्यमंत्री पद का दावा करने के लिए शरद पवार पर दबाव डाला। उस समय तक शरद पवार दिल्ली की राजनीति में वापसी कर चुके थे। इसलिए मुख्यमंत्री बनने का अवसर अजीत का साफ नजर आ रहा था। लेकिन पवार ने उनकी इच्छाओं को कुचलते हुए कम सीटें पाने वाली कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। यहां तक कि उपमुख्यमंत्री पद भी उन्हें नहीं दिया गया। उनके बजाय आर.आर.पाटिल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

पवार अजीत को मुख्यमंत्री बनवाकर उनका कद ऊंचा नहीं होने देना चाहते थे

अजीत के मन में गांठ तभी से है। राजनीतिक हल्के में धारणा यह है कि पवार उस समय अजीत को मुख्यमंत्री बनवाकर उनका कद ऊंचा नहीं होने देना चाहते थे। क्योंकि उन्हें अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को आगे लाना था। हालांकि मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद वह उपमुख्यमंत्री बने और 2014 तक इसी पद पर रहे। 2019 के लोकसभा सुनाव में उन्हें एक प्रतिरोध फिर झेलना पड़ा। वह अपने पुत्र पार्थ को को लोकसभा चुनाव लड़वाने पर अड़े थे। जबकि पवार खुद भी लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। बाद में पवार ने खुलेआम यह बयान देकर खुद पांव पीछे खींच लिए कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति लोकसभा चुनाव लड़ेगा। अजीत के पुत्र चुनाव लड़े और हारे। इससे परिवार में उनकी निगाहें नीची हुईं।

अजीत पवार को लगा शरद पवार ने मेरा प्रतिद्वंद्वी खड़ा कर दिया

इस बार विधानसभा चुनाव में शरद पवार ने अपने एक और भाई के पौत्र रोहित पवार को विधानसभा चुनाव लड़वाया। वह जीतकर आ। रोहित पार्थ की अपेक्षा ज्यादा तेजतर्रार हैं। युवाओं में उनकी पैठ भी अच्छी है। शरद पवार इन दिनों जहां जाते हैं, रोहित को साथ लेकर जाते हैं। कुछ दिनों पहले जब वह संजय राऊत को देखने लीलावती अस्पताल गए तो वहां भी रोहित उनके साथ थे। संभवतः अजीत पवार को लग रहा है कि शरद पवार अब परिवार में ही उनका प्रतिद्वंद्वी खड़ा करने में लग गए हैं।

अजीत पवार को लगा भाजपा का साथ ज्यादा सुरक्षित

वैसे भी उनके विरुद्ध केंद्र से लेकर राज्य तक की जांच एजेंसियों के पास कई मामले लंबित हैं। इनसे छुटकारा पाने और राजनीति में अपनी और अपने पुत्र की अहमियत बनाए रखने के लिए उन्हें कोई सुरक्षित ठौर चाहिए था। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना की साझा सरकार के बजाय उन्हें भाजपा के साथ जाना ज्यादा सुरक्षित लगा।


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