TDP-YSR की लड़ाई में BJP भी खेल रही है बाजी, देख रही है आंध्र में विस्तार का मौका
भाजपा यह मानकर चल रही है कि बहुदलीय आंध्र प्रदेश में अगर अकेले भी लड़ना पड़े तो नुकसान की संभावना बहुत कम है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जा की मांग पर केंद्र सरकार से टीडीपी मंत्रियों का इस्तीफा अगर उनके लिए राजनीतिक मजबूरी थी तो भविष्य में गठबंधन टूटना भाजपा के लिए अवसर भी हो सकता है। भाजपा यह मानकर चल रही है कि बहुदलीय आंध्र प्रदेश में अगर अकेले भी लड़ना पड़े तो नुकसान की संभावना बहुत कम है। यही कारण है कि भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री व टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को समझाने की कोशिश जरूर हुई। लेकिन मान मनौव्वल से परहेज हुआ। दैनिक जागरण ने एक दिन पहले ही इसका स्पष्ट संकेत दिया था।
टीडीपी के दो मंत्रियों के इस्तीफे के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि राजग में टूट बहुत दूर नहीं है। वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी में चल रही आपसी प्रतिस्पर्धा में देर सबेर वह गठबंधन से बाहर जाने की घोषणा करेंगे। भाजपा भी इसके लिए मन बना चुकी है और उसके राजनीतिक कारण भी हैं।
आंध्र प्रदेश से भाजपा के महज दो सांसद और चार विधायक
दरअसल, जिस तरह से भाजपा को देश के चारो कोने में समर्थन मिल रहा है, उसके बाद आंध्र प्रदेश में विस्तार के लिए भी यह अवसर है। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश से भाजपा के महज दो सांसद और चार विधायक हैं जबकि राज्य में लोकसभा की 25 सीटें हैं। लोकसभा चुनाव में टीडीपी ने भाजपा को सिर्फ चार सीटें दी थीं और पार्टी को सात फीसद वोट मिला था। विधानसभा में महज दो फीसद वोट मिला।
पार्टी नेताओं का मानना है कि आंध्र प्रदेश में टीडीपी, वाइएसआर, कांग्रेस, जनसेना जैसी कई पार्टियां है और बहुकोणीय मुकाबले में मोदी के चेहरे के साथ भाजपा कुछ खोने की बजाय ज्यादा पाएगी। इसका नजारा महाराष्ट्र में मिल चुका है। वैसे भी कुछ महीने पहले हुए जिला परिषद चुनाव में टीडीपी के रुख ने भाजपा को आशंकित ही ज्यादा किया था। बताते हैं टीडीपी ने भाजपा के लिए कुछ सीटें छोड़ी तो थीं लेकिन परोक्ष रूप से स्वतंत्र उम्मीदवार को बढ़ावा दे दिया था। जिसके कारण भाजपा कई सीटें हार गई थीं। उसी वक्त पार्टी के अंदर यह मन बनने लगा था कि भाजपा को थोड़ा रिस्क लेते हुए खुद का जनाधार बढ़ाना चाहिए।
प्रदेश में सोशल मीडिया पर सक्रिय है भाजपा
टीडीपी के रुख को देखते हुए भाजपा ने पहले ही प्रदेश में अपना सोशल मीडिया प्रचार तंत्र तेज कर दिया था। एसएमएस, व्हास्टसएप आदि के माध्यम से जनता को यह बताया जा रहा था कि केंद्र सरकार ने राज्य के लिए क्या किया और कितने कम वक्त में किया। सवाल जवाब के स्वरूप में लोगों को यह बताया जा रहा है कि कुछ चूक हुई है तो उसके लिए राज्य सरकार ज्यादा जिम्मेदार है।
टीडीपी मंत्रियों के इस्तीफे का संदेश जरूर थोड़ा असहज करता है। खासतौर पर तब जबकि शिवसेना ने पहले ही यह घोषणा कर दी है कि वह 2019 का चुनाव अकेले लड़ेगी। लेकिन दूसरे सहयोगियों को जोड़े रखने के लिए इतना काफी माना जा रहा है कि दोनों ही मामलों में घोषणा दूसरे दल की ओर से हुई है। भाजपा ने अलग चलने की घोषणा नहीं की। बल्कि खुद प्रधानमंत्री ने चंद्रबाबू से बात कर समझाने की कोशिश की। इसका एक संकेत यह भी माना जा रहा है कि गांठ इतनी मजबूत नहीं पड़ने दी जाएगी कि चुनाव बाद की स्थिति में जुड़े ही न।
आंध्रा की मांग पर झुकना नहीं था संभव
वैसे तो 14वां वित्त आयोग ही विशेष राज्य के दर्जे का प्रावधान खत्म कर चुका है, लेकिन ऐसा न भी होता तो टीडीपी की मांग मानना राजनीतिक रूप से मुश्किल था। दरअसल बिहार समेत कई राज्यों की ओर यह पुरानी मांग रही है। आंध्र को विशेष दर्जा देने का अर्थ था मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना।