भीमा कोरेगांव केस: पांचों वामपंथी हुए हाउस अरेस्ट, जानिए- 'नज़रबंदी' के मायने
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ ने पांचों को छह सितंबर तक उनके घरों में नजरबंद रखने का आदेश दिया है।
नई दिल्ली, एएनआइ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हत्या की साजिश और भीमा कोरोगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार पांच लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में छह सितंबर तक हाउस अरेस्ट यानी नज़रबंद रखने के आदेश दिए हैं। इसका मतलब है कि गिरफ्तार वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस अपने-अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाएंगे। पुलिस द्वारा इन व्यक्तियों को थाने या फिर जेल नहीं ले जाया जा सकता है।
पुलिस ने कोर्ट के आदेशानुसार पांचों गिरफ्तार लोगों को हाउस अरेस्ट कर लिया है। आमतौर पर कोर्ट किसी आरोपी को हाउस अरेस्ट करने का आदेश इसलिए सुनाती है, ताकि आगे कोई अपराध होने और सबूतों या फिर गवाहों को अभियुक्त प्रभावित न कर सके। ऐसे में आरोपी के घर के बाहर पुलिस तैनात रहती है। आरोपी अपने घर से बाहर नहीं जा सकता। लेकिन वह घर में अपने तरीके से रह सकता है। हालांकि भारतीय क़ानून में हाउस अरेस्ट का ज़िक्र नहीं है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ ने पांचों को छह सितंबर तक उनके घरों में नजरबंद रखने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है। इसे रोका तो यह फट जाएगा।
गौरतलब है कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच के दौरान पुणे पुलिस ने इसी साल जून में पांच माओवादी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। उनसे पूछताछ के आधार पर मंगलवार को पुणे पुलिस ने छह राज्यों में छापे मार कर पांच और माओवादी कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून और आइपीसी के तहत गिरफ्तार किया। इनमें राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुधा भारद्वाज, मपंथी विचारक वरवर राव, वकील अरुण फरेरा, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और वेरनन गोंजाल्विस शामिल हैं। इतिहासकार रोमिला थापर सहित पांच लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर गिरफ्तारियों को चुनौती दी है।