भागवत ने कहा, हमें अच्छे-बुरे का भेद करने की दृष्टि विकसित करनी होगी
दबे पांव, चोरी छिपे आ रहे सांस्कृतिक संकट से अपने परिवार और समाज को बचाने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा।
जयपुर, ब्यूरो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि हमें अच्छे-बुरे का भेद करने की दृष्टि विकसित करनी होगी। हमें अपने कार्यो में यह देखना होगा कि वे कानून सम्मत के साथ ही नैतिक और प्रकृति सम्मत भी हों। भागवत शनिवार को जयपुर के इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान में मातृ शक्ति संगम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिला नारी शक्ति के बजाय मातृ शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है, जबकि पश्चिम में महिला को मात्र स्त्री और पत्नी के रूप में देखा गया है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारी सशक्तीकरण आंदोलन पश्चिम की देन माना जाता है, लेकिन वहां पुरषष को अधिकार--सक्षम और महिला को गुलाम मान कर नारी मुक्ति पर बल दिया गया। इसका परिणाम वहां परिवार और विवाह संस्था पर खतरे के रूप में सामने आया।
उन्होंने कहा कि भारत में परिवार संस्था कई विषम परिस्थितियों को झेलने के बाद भी सुदृ़़ढ बनी हुई है, जिससे सीख लेते हुए आज पश्चिम में भी परिवार संस्था को पुन: मजबूत करने के प्रयास होने लगे हैं। भागवत ने महिलाओं की सुरक्षा के बारे में कहा कि महिला सुरक्षा के लिए कठोर कानून की आवश्यकता है परंतु कानून की अपनी सीमाएं है। सिर्फ कठोर कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। समाज जागरण से ही इसका पूरा समाधान होगा।
पुरुषों को महिलाओं को देवी अथवा दासी मानने के स्थान पर वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप उनके प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। पौराणिक कथाओं में ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं कि जब देवता भी किसी कार्य को पूर्ण नहीं कर सके तो वे उसके लिए जगतजननी की शरण में गए। इसलिए महिलाओं का अपने कल्याण के लिए पुरषषों की ओर देखने के बजाय स्वयं ही जाग्रत होना होगा।
इंटरनेट के ब़़ढते दखल से चिंता भागवत ने परिवार में संस्कारों का स्तर गिरने और इंटरनेट सहित बाहरी प्रभावों के कारण बाल मनोवृत्ति पर हो रहे दुष्प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि दबे पांव, चोरी छिपे आ रहे सांस्कृतिक संकट से अपने परिवार और समाज को बचाने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा।
संघ में व्यक्ति नहीं परिवार जु़डता है
भागवत ने कहा कि संघ से व्यक्ति नहीं परिवार जु़डता है। महिलाओं के सहयोग के बिना पुरुषों के लिए संघ के कार्य को पर्याप्त समय देना संभव नहीं है। संघ के व्यापक तौर में सीधे रूप से सेवा, संपर्क प्रचार, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता आदि में भी मातृशक्ति सहयोग कर रही है। जिस प्रकार महिलाएं परिवार का कुशल नेतृत्व करती आई हैं, उसी प्रकार आज वे समाज के प्रमुख कार्यो में भी नेतृत्व दे रही है और यह हमारे लिए अच्छा संकेत है।