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नागरिकता बिल को लेकर केंद्र ने साफ की उत्‍तर पूर्व के लोगों में भ्रम की स्थिति, जानिए इस बारे में

केंद्र सरकार ने साफ किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) से असम में बंगाली भाषियों का वर्चस्व नहीं हो जाएगा और न ही यह राज्य के मूल लोगों के हितों के विरुद्ध है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 11 Dec 2019 12:14 AM (IST)Updated: Wed, 11 Dec 2019 12:14 AM (IST)
नागरिकता बिल को लेकर केंद्र ने साफ की उत्‍तर पूर्व के लोगों में भ्रम की स्थिति, जानिए इस बारे में
नागरिकता बिल को लेकर केंद्र ने साफ की उत्‍तर पूर्व के लोगों में भ्रम की स्थिति, जानिए इस बारे में

नई दिल्ली, प्रेट्र। पूर्वोत्तर में व्यापक प्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार ने मंगलवार को साफ किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) से असम में बंगाली भाषियों का वर्चस्व नहीं हो जाएगा और न ही यह राज्य के मूल लोगों के हितों के विरुद्ध है।

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'मिथक तोड़ो' हैशटैग से केंद्र सरकार के प्रेस सूचना कार्यालय (पीआइबी) ने कहा कि कई मिथक हैं जिनमें एक यह है कि कैब बंगाली हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करेगा। पीआइबी ने कहा, लेकिन तथ्य यह है कि कैब बंगाली हिंदुओं को स्वत: ही भारतीय नागरिकता नहीं देगा बल्कि यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के छह अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के लिए समर्थकारी कानून है। यह पूरी तरह मानवीय आधार पर प्रस्तावित किया गया है क्योंकि अल्पसंख्यक धर्म के आधार पर अत्याचार होने के कारण इन देशों से भागे हैं।

ट्वीट में कहा गया है, 'ज्यादातर हिंदू बंगाली असम की बराक घाटी में बसे हुए हैं जहां बंगाली दूसरी राजकीय भाषा घोषित है। ब्रह्मपुत्र घाटी में हिंदू बंगाली छिटपुट स्थानों पर बसे हैं और उन्होंने असमी भाषा को अपना लिया है।'

पीआइबी ने कहा, मिथक है कि कैब हिंदू बंगालियों को बसाकर आदिवासी जमीन हथियाने की चाल है, लेकिन तथ्य यह है कि हिंदू बंगाली ज्यादातर बराक घाटी में बसे हैं और वे जनजातीय क्षेत्रों से दूर हैं। कैब जनजातीय जमीनों की रक्षा से जुड़े कानूनों और विनियमों का उल्लंघन नहीं करता और यह उन क्षेत्रों में लागू नहीं होगा जहां इनर लाइन परमिट और छठी अनुसूची क्षेत्रों के प्रावधान हैं।

यह भी मिथक है कि कैब असम से अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन से संबंधित असम संधि को शिथिल बनाता है। तथ्य यह है कि जहां तक अवैध प्रवासियों के पता लगाने और निर्वासन के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च, 1971 का सवाल है तो वह असम संधि की गरिमा को बिल्कुल आंच नहीं पहुंचाता।

एक मिथक यह भी है कि बंगाली हिंदू असम पर बोझ बन जाएंगे, जबकि तथ्य यह है कि कैब पूरे देश पर लागू होगा और धार्मिक अत्याचार के शिकार लोग सिर्फ असम में ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी हैं। पीआइबी ने कहा, एक मिथक यह है कि कैब मुसलमानों के प्रति भेदभावकारी है, लेकिन तथ्य यह है कि किसी भी देश से किसी भी धर्म का विदेशी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है अगर वह नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत पात्र है।


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