Move to Jagran APP

Ayodhya Verdict: लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा के जरिए बनाया था राम मंदिर को जन आंदोलन

अयोध्या आंदोलन को राजनीति की धुरी बनाकर महज पांच साल में भाजपा को लोकसभा में दो सांसदों से 86 सांसदों की पार्टी बनाने वाले आडवाणी इसकी सफल परिणति के गवाह बने।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 06:33 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 12:18 AM (IST)
Ayodhya Verdict: लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा के जरिए बनाया था राम मंदिर को जन आंदोलन
Ayodhya Verdict: लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा के जरिए बनाया था राम मंदिर को जन आंदोलन

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अयोध्या आंदोलन के सहारे राजनीति और भाजपा को नई धारा देने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन पहले ही 92वां जन्मदिवस मनाया। अयोध्या आंदोलन को राजनीति की धुरी बनाकर महज पांच साल में भाजपा को लोकसभा में दो सांसदों से 86 सांसदों की पार्टी बनाने वाले आडवाणी इसकी सफल परिणति के गवाह बने। जनसंघ की स्थापना से समय से ही जुड़े और भाजपा के संस्थापक सदस्य आडवाणी पर विवादित ढांचे के ध्वंस की साजिश रचने का आरोप भी लगा और इस मामले में सीबीआइ ने उनके खिलाफ अदालत में आरोपपत्र भी दाखिल किया।

loksabha election banner

रथयात्रा के जरिए आडवाणी जन-जन तक पहुंचे

विहिप समेत संघ परिवार भले ही अयोध्या के लिए साधु-संतों व अन्य लोगों को जोड़ने में जुटा रहा हो, लेकिन इस मुद्दे को जन-जन तक पहुंचाने का काम आडवाणी ने अपनी रथयात्रा की बदौलत किया। 1990 में गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई उनकी रथयात्रा को भले ही बीच में ही बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रोक ली हो, लेकिन इसके बदौलत भाजपा 1991 के चुनाव में 120 सीटें जीतने में सफल रही।

राममंदिर निर्माण का संकल्प कभी पीछे नहीं छूटा 

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय खुद मंच पर उपस्थित थे, इसी कारण सीबीआइ ने आपराधिक साजिश में उन्हें आरोपी बनाया। बाबरी मस्जिद विध्वंस की निंदा करते हुए भी आडवाणी ने कभी भी राममंदिर निर्माण के संकल्प को पीछे नहीं छूटने दिया, बल्कि इसे बाकायदा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बना दिया और 1996 में भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई।

आडवाणी की बनी कट्टर हिंदूवादी छवि

भाजपा के असली संगठनकर्ता होने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी जानते थे कि उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि के कारण पार्टी को संसद में सहयोगी जुटाना आसान नहीं होगा और पार्टी ने नरमपंथी अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में आगे किया। लेकिन राजग सरकार में हमेशा नंबर दो पर रहे और बाद में उपप्रधानमंत्री भी बने।

बाद में की छवि सुधारने की कोशिश

एक मंत्री के रूप में उनकी छवि कुशल और सख्त प्रशासक की रही और उन्हें लौहपुरुष तक कहा गया। 2004 के लोकसभा चुनाव में लगे झटके और अटल बिहारी वाजपेयी की बिगड़ती सेहत को देखते हुए आडवाणी ने अपनी छवि को सुधारने की कोशिश की। लेकिन पाकिस्तान में जाकर जिन्ना को सेकुलर बताना संघ को नागवार गुजरा और आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।

2009 के बाद पार्टी पर पकड़ ढीली हुई 

उनके खिलाफ पार्टी के अंदर ही विरोध फूट पड़ा था। इसके बावजूद आडवाणी पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत रखने और राजग से मुख्य सहयोगियों को एकजुट रखने में सफल रहे। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में 2004 से बड़ी हार के बाद आडवाणी की पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ने लगी। पर यह सच है कि जब भी भाजपा की जीवन यात्रा का वर्णन होगा तो आडवाणी शीर्ष पुरुषों में शामिल होंगे। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.